Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

राहुल की यात्रा महान लोकतंत्र के राम की 'प्राण-प्रतिष्ठा' है!

हमें फॉलो करें राहुल की यात्रा महान लोकतंत्र के राम की 'प्राण-प्रतिष्ठा' है!
webdunia

श्रवण गर्ग

, मंगलवार, 23 जनवरी 2024 (20:03 IST)
Rahul Gandhi 6,713 km journey : 15 राज्य, 110 ज़िले, 6,713 किलोमीटर लंबा रास्ता और 66 दिनों का सड़कों पर सफ़र। जनता के बीच, जनता के लिए। 'लोकतंत्र के राम' की देश की 140 करोड़ जनता के हृदयों में प्राण-प्रतिष्ठा के लिए। एक लगातार चलने वाली यात्रा। लोगों की आंखों में आंखें डालकर उनके आंसुओं में ख़ुशी और ग़मों की तलाश करने का यज्ञ। जनता से उसकी ही ज़ुबान में ही बातचीत करने की कोशिश। कोई छोटा-मोटा काम नहीं हो सकता।
 
यह यात्रा उस 4,000 किलोमीटर के साहस से भिन्न है जिसे कन्याकुमारी से कश्मीर तक पैदल नापा गया था और जिसने देशभर में उम्मीदें जगा दी थीं कि चीजें और सत्ताएं बदली जा सकती हैं। ज़रूरत सिर्फ़ एक ईमानदार संकल्प की है। 
 
वक्त के मान से पहली 'भारत जोड़ो यात्रा' ज़्यादा लंबी थी, पर इसलिए छोटी थी कि नदियों, पहाड़ों, जंगलों और निर्जन स्थलों से गुज़रते वक्त भी लोगों का एक बड़ा समूह हरदम साथ चलता था। वह यात्रा 150 दिनों की थी, यह सिर्फ़ 66 दिनों की है। अभी सिर्फ़ 3 राज्य और 2 सप्ताह ही पूरे हुए हैं। इस यात्रा में सुनसान रास्तों से गुज़रते वक्त बस में कुछेक सहयोगी और केवल एक यात्री ही रहने वाला है। बस की खिड़की से बाहर बसे भारत को चुपचाप निहारता हुआ।
 
हज़ारों किलोमीटर की इस अद्भुत और ऐतिहासिक यात्रा के दौरान कभी एक क्षण ऐसा भी आ सकता है, जब राहुल गांधी स्वयं से सवाल करने लगें कि भारत की जिस तस्वीर को वे बदलना चाह रहे हैं, वह अगर 2024 के चुनावों के बाद भी नहीं बदली तो वे क्या करने वाले हैं? क्या देश का धैर्य उनका लंबे वक़्त तक साथ देने के लिए तैयार होगा? अगर चीजें नहीं बदलीं तो क्या उन्हें इसी तरह की या और ज़्यादा कठिन कई नई यात्राएं करना पड़ेंगी? उन यात्राओं की तब दिशा क्या होगी? सहयात्री कौन बनेंगे? क्या देश को तब तक ऐसी स्थिति में बचने दिया जाएगा कि उनके जैसा कोई व्यक्ति जनता को जगाने वाली किसी भी यात्रा के लिए सड़कों पर निकल सके?
 
राहुल गांधी की पहली 'भारत जोड़ो यात्रा' के समय जो भय व्यक्त किया था, वह आज भी क़ायम है। उसमें कोई कमी नहीं हुई है। मैंने तब लिखा था कि 'यात्रा को विफल करने और नकारने के लिए तमाम तरह की ताक़तें आपस में जुट गई हैं, संगठित हो गई हैं। राहुल के पैदल चलने की थकान ये ताक़तें अपने पैरों में महसूस कर रही हैं। यात्रा की सफ़लतापूर्वक समाप्ति के लिए इसलिए प्रार्थनाएं की जानी चाहिए कि किसी भी देश के जीवन में इस तरह के क्षण बार-बार उपस्थित नहीं होते।'

राहुल की पहली यात्रा निर्विघ्न समाप्त हो गई थी। इस समय सवाल यह है कि क्या इस दूसरी यात्रा को बिना किसी बाधा के पूरा होने दिया जाएगा? राहुल को गुवाहाटी से मिल रही धमकियां किस ओर इशारा कर रही हैं?
आश्चर्य नहीं होता कि देश के भीतर व्याप्त व्यापक नागरिक उत्पीड़न और सीमाओं पर उपस्थित अशांत माहौल के बीच भी वे तमाम लोग जिनका सत्ता पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नियंत्रण है, अपनी राजनीतिक सुरक्षा और व्यावसायिक संपन्नता के प्रति पूरी तरह से निश्चिंत और आश्वस्त हैं? इसके पीछे कोई तो कारण अवश्य होना चाहिए, जो देश की जानकारी में नहीं है और जनता को उसके प्रति चिंता भी व्यक्त करना चाहिए। राहुल गांधी शायद उस अज्ञात कारण को जानते हैं। इस यात्रा को उसी का परिणाम माना जाना चाहिए?
 
संदेह होता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम की प्रतिमा के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह को योजनाबद्ध तरीक़े से एक राष्ट्रीय उत्सव में इसीलिए तो नहीं तब्दील किया जा रहा है कि राहुल गांधी की यात्रा से उत्पन्न होने वाला नागरिक उत्साह उसके प्रचारात्मक शोर-शराबे में गुम हो जाए? सारे मणिपुर और कश्मीर लोकसभा चुनावों तक चलने वाले राष्ट्रव्यापी समारोहों की राजनीतिक गूंज में सफलतापूर्वक दफ़्न कर दिए जाएं? क्या ऐसा कर पाना संभव हो पाएगा?
 
विश्व-इतिहास में शायद पहली बार अनोखा प्रयोग हो रहा है कि एक तरफ़ तो एक अकेला इंसान जनता को न्याय दिलाने की आकांक्षा और संकल्प के साथ सड़कों पर निकला हुआ है और दूसरी ओर दुनिया के सबसे बड़े प्रजातांत्रिक मुल्क की हुकूमत ने अपनी समूची सामर्थ्य को सिर्फ़ इस काम में झोंक दिया है कि जनता को धर्म के नशे में इतना लीन कर दिया जाए कि वह यात्रा को देखने के लिए भी आंखें नहीं खोल पाए।
 
राहुल गांधी की महत्वाकांक्षी यात्रा जनता को अपने पैरों पर खड़े करने की कोशिशों की दिशा में एक लंबे समय तक के लिए आखिरी प्रयास मानी जा सकती है। कहा नहीं जा सकता कि देश के जीवन में इस तरह का क्षण आगे कब उपस्थित होगा? मणिपुर से प्रारंभ हुई यात्रा की लोकसभा चुनावों के ठीक पहले मुंबई में समाप्ति के साथ राहुल गांधी का काम पूरा हो जाएगा। अपनी 2 यात्राओं (दक्षिण में कन्याकुमारी से उत्तर में कश्मीर और पूर्व में मणिपुर से पश्चिम में मुंबई) के ज़रिए वे देश को अपना सब कुछ दे चुके होंगे।
 
सवाल यह है कि क्या देश की जनता ने सोचना प्रारंभ कर दिया है कि राहुल गांधी उसके लिए क्या कर रहे हैं? क्यों चल रहे हैं? यात्रा का मक़सद क्या है? यात्रा के क्या परिणाम निकलने वाले हैं? यात्रा की सफलता-असफलता में भारत का भविष्य कैसे छुपा हुआ है? अभी सोचा नहीं गया होगा कि राहुल गांधी अगर चलना बंद कर दें तो दूसरा कौन है, जो चलने वाला है? इतने बड़े देश में क्या कोई और नज़र आता है, जो भविष्य की किसी भारत जोड़ो यात्रा के लिए राहुल के हाथ से लेकर मशाल अपने हाथों में थाम लेगा?
 
राहुल की यात्रा की सफलता के लिए की जा रहीं प्रार्थनाओं के स्वर सत्ता-प्राप्ति के मंगलाचरणों में नहीं डूबने दिए जाने चाहिए!
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

82 वर्ष पू्र्व, जब नेताजी बोस और हिटलर का आमना सामना हुआ