बात यहां से शुरू करते हैं : भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष की कार्यशैली ने प्रदेश के प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे का रुतबा बढ़ा दिया है। संतोष ने जो व्यवस्था तय की है उसके मुताबिक अब राज्यों से संबंधित मामले संबंधित राज्य के प्रभारी के माध्यम से ही राष्ट्रीय नेतृत्व के ध्यान में लाए जा सकेंगे। इसी का नतीजा है कि शिवराज सिंह चौहान हों या वीडी शर्मा, इन्हें दिल्ली दरबार में अपनी बात विनय सहस्त्रबुद्धे के माध्यम से ही रखना पड़ रही है। इसी का फायदा मंत्रिमंडल विस्तार में ओमप्रकाश सकलेचा को मिला।
मध्यप्रदेश का 'निवेश' दक्षिण में : नौकरशाहों के बीच में यह चर्चा आम है कि मध्यप्रदेश का खूब पैसा पिछले साल डेढ़ साल में दक्षिण की ओर प्रवाहित हुआ है। स्वाभाविक है शंका की सुई इस दौर में मध्यप्रदेश में वजनदार रहे चुनिंदा नौकरशाहों पर ही जाएगी। वैसे हैदराबाद और उसके आसपास बड़े पैमाने पर हुए निवेश के कुछ सूत्र निवेश करने वाले अफसरों के ही कुछ शुभचिंतकों ने जुटाकर सरकार के सामने रख दिए हैं। जिस तरह से कुछ लोग इस मामले में सक्रिय हैं उससे एम गोपाल रेड्डी और पी. नरहरि की चिंता बढ़ना स्वाभाविक है।
सुहास भगत और बीडी शर्मा के तेवर : पिछले 15 साल में आपने कभी ऐसा सुना की मुख्यमंत्री संगठन प्रमुख के सामने मंत्रियों की सूची रखकर कहे कि अब आप ही जो करना हो कर लीजिए... जी हां, ऐसा इस बार हुआ। मंत्रियों के विभागों को लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया दबाव बना रहे हैं यह तो खूब चर्चा में रहा लेकिन बीडी शर्मा और सुहास भगत के जो तेवर इस मामले में थे उसने कई की नींद हराम कर दी। दोनों यह एहसास कराने में सफल रहे की अब संगठन वह नहीं है जैसा पहले हुआ करता था। ऐसा थोडा बहुत एहसास कुछ साल पहले प्रभात झा ने भी करवाया था।
इसे कहते हैं हवन करते ही हाथ जलना : पीआर ब्रोकर मुकेश श्रीवास्तव नई सरकार में अपने लिए कोई मददगार तो नहीं ढूंढ पाए अलबत्ता कुछ ताकतवर अफसरों के माध्यम से अंजाम दिए गए उनके कारनामों की जानकारी प्रधानमंत्री कार्यालय तक जरूर पहुंच गई है। इस मामले में पीएमओ के निर्देश पर ही एक केंद्रीय एजेंसी भी सक्रिय हो गई है। मामला करीब 400 करोड़ रुपए का है और इसमें कुछ अफसरों की स्थिति हवन करते ही हाथ जलने जैसी है।
कमलनाथ के कायल ये भाजपा नेता : भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेता भी एक मामले में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के कायल हैं। वे कहते हैं कमलनाथ ने हमें यह तो सिखा दिया कि अफसरों की जेब से पैसा कैसे निकाला जाता है। प्रमुख सचिव से लेकर अपर मुख्य सचिव स्तर के 5-6 नौकरशाहों का उल्लेख करते हुए भाजपा नेता कहते हैं कि यह अफसर जिस भी महकमे में रहे वहां खूब लूट-खसोट की पर इनका आउटगोइंग हमेशा बंद रहा। कमलनाथ ने इनकी दुखती नस दबाकर ऐसा कमाल किया कि पूछिए मत। आंकड़ा सुनकर आप भी चौंक पड़ेंगे।
चर्चा में राजा बाबू : अपने एक अलग अंदाज के कारण ग्वालियर जोन के एडीजी राजा बाबू सिंह इन दिनों खासे चर्चा में हैं। कोरोना के दौर में वे ग्वालियर के जिम में नई पीढ़ी के लोगों को फिटनेस के गुर सिखाते नजर आए तो कोरोना के कुछ नियंत्रण में आने के बाद वह खड़ाऊ पहनकर और भगवत गीता लेकर ग्वालियर क्षेत्र की गौशालाओं के कायाकल्प में जुट गए। बारिश शुरू होते ही वह पौधारोपण को महाअभियान के रूप में हाथ में ले चुके हैं। रोज की 12 से 14 घंटे की पुलिसिंग से हटकर इस काम ने उनको सुर्खियों में ला रखा है। जलने वाले भले ही जलते रहें।
अब तो पितृ पर्वत ही खास ठिया : यह शायद बहुत कम लोगों को मालूम है कि मंत्रिमंडल विस्तार के एक दिन पहले शाम 6 बजे मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने अपने 'प्रिय' मित्र कैलाश विजयवर्गीय को यह बता दिया था कि रमेश मेंदोला को मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिल पा रहा है। इस सूचना पर विजयवर्गीय का उद्वेलित होना स्वाभाविक था पर वक्त की नजाकत को भांपते हुए वे मेंदोला को लेकर पितृ पर्वत पर चले गए। इन दिनों पितृ पर्वत ही विजयवर्गीय का खास ठिया बना हुआ है।
कौन बनेगा ट्रांसपोर्ट कमिश्नर : डिप्टी ट्रांसपोर्ट कमिश्नर रहते हुए परिवहन महकमे की रग-रग से वाकिफ हो चुके उपेंद्र जैन को ट्रांसपोर्ट कमिश्नर बनाया जा सकता है। जैन सत्ता और संघ दोनों के ही प्रिय पात्र हैं और बहुत मेहनती और मातहतों पर सख्त नियंत्रण रखने वाले अफसर हैं। अब जबकि राज्य चलाने के लिए रेवेन्यू एक बड़ा मुद्दा है, सरकार तेजतर्रार अफसर जैन को इस काम का जिम्मा सौंप सकती है। वैसे हाल ही में खेल संचालक बनाए जाने के बावजूद इस पद के लिए एक और नाम शांत और शालीन आईपीएस अफसर पवन जैन का भी है।
चलते चलते : बदनावर से कांग्रेस के टिकट के लिए 16 स्थानीय दावेदार हैं। सबका दावा जीत का है पर पार्टी की चिंता इस बात को लेकर है कि कहीं यहां भी 2014 के लोकसभा चुनाव में जो स्थिति भिंड में बनी थी वैसी न बन जाए। बाकी आप समझ जाइए।
पुछल्ला : कमलनाथ सत्ता में वापसी के मैनेजमेंट में लगे हैं और उनकी पार्टी के विधायक भाजपा में जाने में... प्रद्युम्न लोधी के बाद चार और विधायक कतार में हैं और चारों बुंदेलखंड से हैं। (इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)