बात यहां से शुरू करते हैं : कांग्रेसी मत बनो...अपने ही सरकार के खिलाफ गाहे-बगाहे तीखे तेवर अख्तियार करने वाले कृषि मंत्री कमल पटेल को पिछले दिनों संघ ने सख्त हिदायत दे डाली। संघ के एक शीर्ष पदाधिकारी ने पटेल को तलब कर कहा कि कांग्रेसी मत बनो। पटेल की अति वाचालता से सरकार और संगठन दोनों तो पहले से ही नाराज थे, पर हाल ही में जब उन्होंने नरसिंहपुर के कलेक्टर के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए जबलपुर के कमिश्नर को पत्र लिख डाला तो फिर संघ को मोर्चा संभालना पड़ा और मूलतः संघ की नर्सरी से ही राजनीति के इस मुकाम तक पहुंचे पटेल को सख्त हिदायत दे दी गई।
निकाय चुनाव के टिकटों की बंदरबांट : ऐसा लगता है कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस के नेताओं ने एक-दूसरे को नीचा दिखाने की सौगंध खा रखी है। संगठन लुंज-पुंज पड़ा है और नेता नगरीय निकाय चुनाव के टिकटों की बंदरबांट में लग गए हैं। उन्हें लग रहा है कि अपन तो बस टिकट दिला दो फिर उम्मीदवार जाने। कमलनाथ जरूर सक्रिय हैं, पर उनकी सक्रियता का अंदाज़ कुछ अलग है। इससे इतर भाजपा में विधानसभा के बाद अब मंडलवार संवाद शुरू हो गए हैं और पार्टी के जिम्मेदार नेता वार्ड के लोगों के साथ बैठकर रणनीति बनाने में लगे हैं। प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने जिस अंदाज़ में दौरे शुरू कर दिए हैं उससे स्पष्ट है कि चुनाव अभी हो या 6 महीने बाद, भाजपा ने मैदान संभाल लिया है।
गोडसे का स्तुति गान और अरुण यादव : नाथूराम गोडसे का स्तुति गान करने वाले बाबूलाल चौरसिया के कांग्रेस प्रवेश के बाद अरुण यादव की मुखरता दरअसल कांग्रेस के आदमकद नेता कमलनाथ के खिलाफ उनके बगावती तेवरों का संकेत ही है। कमलनाथ ने मुख्यमंत्री रहते हुए यादव की जमकर उपेक्षा की और मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद भी उन्हें भाव नहीं दे रहे थे। उपचुनाव के दौर में जरूर उन्हें यादव की याद आ गई थी और वह उन्हें साथ लेकर घूमे थे। अब यादव फिर गुमनामी में हैं, पर उनकी पीठ पर दिग्विजय सिंह का हाथ उन्हें समय-समय पर राजनीतिक हैसियत का एहसास कराता रहता है। देखना यह भी है कि यादव के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कांग्रेस की राजनीति करने वाले और उनके प्रदेश अध्यक्ष रहते शेडो अध्यक्ष की भूमिका में रहे केके मिश्रा इस दौर में किसका साथ देते हैं।
राजेंद्र पांडे के तेवरों चर्चा : सालों पहले मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैलाश नाथ काटजू को डॉ. लक्ष्मी नारायण पांडे ने जावरा विधानसभा सीट पर शिकस्त देकर नया इतिहास रचा था। अब दोनों ही इस दुनिया में नहीं हैं, पर डॉक्टर पांडे के पुत्र और जावरा से तीसरी बार के विधायक डॉ. राजेंद्र पांडे के तीखे तेवरों की बड़ी चर्चा है। डॉक्टर पांडे ने इस बार अलग-अलग विभागों से संबंधित 69 प्रश्न विधानसभा में लगाए थे इनमें से पांच रतलाम मेडिकल कॉलेज की अनियमितताओं को लेकर थे। जाहिर है, ये सदन में आते तो हंगामा होता ही पर सत्र शुरू होने के पहले डॉक्टर पांडे कोरोना पॉजिटिव हो गए और लगा कि अब बात नहीं बन पाएगी। लेकिन हर हालत में सदन में जाने पर आमादा विधायक ने जब पुनः परीक्षण करवाया तो वह नेगेटिव हो गए। देखते हैं अब क्या होता है।
सोचा नहीं था संघवी को इतना नुकसान होगा : मुख्य सचिव रहते हुए एसआर मोहंती ने जिस तरह इकबाल सिंह बैंस को निपटाया था उसका नुकसान इंदौर के रियल एस्टेट कारोबारी सुरेंद्र संघवी को इतना ज्यादा उठाना पड़ेगा यह किसी ने सोचा भी नहीं था। मोहंती मुख्य सचिव थे तब इंदौर में संघवी की तूती बोलती थी। एम. गोपाल रेड्डी से भी संघवी के बहुत मधुर संबंध थे। जैसे ही निजाम बदला और इकबाल सिंह मध्य प्रदेश के सबसे शक्तिशाली नौकरशाह हो गए उन्होंने मोहंती और उनसे जुड़े लोगों को सीधे निशाने पर लिया। उनसे जुड़े मामले बंद बस्तों से निकाले गए और जैसे ही अयोध्यापुरी का मामला आला अफसरों के ध्यान में आया संघवी और उनके बेटे दोनों को निशाने पर ले लिया गया। हालत ऐसी है कि संघवी के शुभचिंतक नौकरशाह चाहते हुए भी मदद नहीं कर पा रहे हैं।
क्यों नहीं जम पाए जुलानिया : इसी साल रिटायर हो रहे तेजतर्रार आईएएस अफसर राधेश्याम जुलानिया के पांव मध्यप्रदेश में इस बार क्यों नहीं जम पाए, इसके अलग-अलग कारण बताए जा रहे हैं। पहला कारण अपने ही बेसमेंट मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस से जुलानिया की पटरी नहीं बैठना, दूसरा बैंस के दबदबे के कारण मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा भी जुलानिया से दूरी बनाए रखना और तीसरा इस बार संघ के जुलानिया के मददगार की भूमिका में खड़ा न होना। वरना कोई कारण नहीं कि माध्यमिक शिक्षा मंडल का अध्यक्ष रहते हुए जुलानिया ने जो निर्णय लिए थे उसे अमल में लाकर बोर्ड को देश का नंबर 1 बोर्ड बनाने में मददगार होने की बजाय उन्हें वहां से भी रुखसत कर दिया गया। वह भी मंत्रालय में ओएसडी की भूमिका में।
मुख्यमंत्री की संवेदनशीलता : अफसरों से जमकर काम लेने के लिए ख्यात मुख्यमंत्री उनकी निजी जरूरतों को लेकर भी बहुत संवेदनशील रहते हैं। जब वीरेंद्र सिंह रावत को भिंड के कलेक्टर पद से एनवीडीए का फील्ड कमिश्नर बनाकर इंदौर पदस्थ करने के आदेश हुए तो कहा गया कि रेत माफिया पर नियंत्रण में असफल रहने और गोहद क्षेत्र के एक वजनदार भाजपा नेता से पंगा लेने का खामियाजा रावत को भुगतना पड़ा। यह पूरी तरह गलत निकला। दरअसल गंभीर रूप से अस्वस्थ अपनी पत्नी के इलाज के लिए रावत इंदौर में पदस्थापना चाहते थे और उन्होंने खुद भिंड से हटने की पेशकश की थी। मामले की गंभीरता को समझते हुए मुख्यमंत्री ने उनके अनुरोध को स्वीकार किया और उन्हें इंदौर में ही पदस्थापना मिल गई।
मनीष नाम की महिमा : मनीष...इस नाम से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बहुत प्रभावित हैं। इसे कुछ यूं समझिए मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी, नगरीय प्रशासन विभाग के भावी प्रमुख सचिव मनीष सिंह, मुख्यमंत्री के ओएसडी मनीष श्रीवास्तव, सीएमओ में अहम भूमिका निभाने वाले मनीष पांडे और इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह। इसे महज संयोग न मानें, इन नामों को तवज्जो मिलने का कारण कहीं ना कहीं इनकी प्रशासनिक दक्षता और कुशल मैनेजमेंट भी है। अपनी इस पारी में मुख्यमंत्री अहम प्रशासनिक पदों पर मेरिट और मैनेजमेंट को ज्यादा प्राथमिकता दे रहे हैं और उसी का नतीजा है इन 5 मनीष नाम के अफसरों का महत्वपूर्ण किरदार में होना।
चलते-चलते : पुलिस मुख्यालय में इन दिनों एक बहुत ही वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी चर्चा में हैं। चर्चा का कारण भी अधिकारी की पत्नी ही हैं, जो उक्त अधिकारी से जुड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में अब सीधी दखलंदाजी करने लगी हैं। इसके पीछे उनका मकसद यह भी हो सकता है कि कहीं सेवानिवृत्ति के बाद रुतबा कम होने की स्थिति में भागीदार आंखें न दिखाने लगे।
भोपाल में रोजबेरी और इंदौर में एटम के नाम से स्पा संचालित करने वाली नीलम की पकड़ का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसके प्रतिष्ठानों पर कई बार छापे पड़ने और अनैतिक कृत्यों की पुष्टि होने के बाद भी आज तक पुलिस उसे गिरफ्तार नहीं कर पाई है।
पुछ्ल्ला : सरकारें तो आती-जाती रहती हैं, लेकिन बदलाव के इस दौर में भी आईएएस अफसर सत्येंद्र सिंह के पांव कैसे जमे रहते हैं यह पता लगाना चाहिए।