Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

स्वाभिमान किस चिड़िया का नाम है?

हमें फॉलो करें स्वाभिमान किस चिड़िया का नाम है?
webdunia

स्वरांगी साने

‘माझे मंगलसूत्र माझा स्वाभिमान’… इस मराठी वाक्य का मतलब है ‘मेरा मंगलसूत्र मेरा स्वाभिमान…’ एक विज्ञापन है उसमें एक शिक्षिका यह कह रही है…पुणे के जाने-पहचाने सराफा व्यवसायी की दुकान का यह विज्ञापन है, जिसमें एक आधुनिक शिक्षिका दिखती है और उसकी यह सीख है कि उसका स्वाभिमान, उसका मंगलसूत्र है मतलब आप यदि स्त्री हैं तो आपका भी यही स्वाभिमान होना चाहिए।
 
इसमें चुभने वाली बात क्या है?
तो इसी पुणे में स्त्रियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए महात्मा ज्योतिबा फुले ने सन् 1848 में एक स्कूल खोला था। यह इस काम के लिए देश में पहला विद्यालय था… कोई शिक्षिका नहीं मिल रही थी तो उन्होंने अपनी पत्नी सावित्रीबाई को पहले अपनी शिष्या बनाया और फिर उस स्कूल की शिक्षिका…मंत्र दिया कि हर महिला के कान में फूँक दो कि ‘शिक्षित होना स्वाभिमान से जीने की पहली सीढ़ी है’। पुणे विश्वविद्यालय का नाम भी उन्हीं सावित्रीबाई के नाम पर है।
 
और हाय री विडंबना! कि चक्र ऐसा घूमा कि आज की शिक्षिका फिर अठारहवीं सदी में ले जा रही है। महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म सन् 1827 ई. में पुणे में हुआ था और सोने को चमकाने की दुनिया में पीएनजी का नाम सन् 1832 से है।
 
दु:ख क्यों हो?
गाडगील परिवार सांगली में रहता था, वहाँ से वे लोग पुणे आए और दाजीकाका गाडगील ऊर्फ अनंत गणेश गाडगील ने पुणे में ‘मेसर्स पुरुषोत्तम नारायण गाडगील एंड कंपनी (पीएनजी)’ नाम से सराफा दुकान की स्थापना की। शुद्ध सोने के लिए उनका नाम आदर से लिया जाता है। उनकी पत्नी आधुनिक पाणिनी कहलाने वाले काशीनाथ शास्त्री अभ्यंकर की बुद्धिमान पुत्री कमलाबाई थीं। मतलब उनके बेटों और बेटों के बेटों में प्रगतिशील विचार, परंपरा में आने चाहिए थे लेकिन इस घराने की छठी पीढ़ी ने यह विज्ञापन बनवाया…केवल मंगलसूत्र किसी का स्वाभिमान होता है…
 
ग़लत क्या है?
इसमें ग़लत क्या है?..किसी के लिए उसका मंगलसूत्र उसका स्वाभिमान हो सकता है…और कट्टरपंथी तो यह भी कहेंगे कि होना ही चाहिए…लड़की के लिए शादी के समय पति के हाथों पहनाया गया मंगलसूत्र केवल मंगल का परिणय सूत्र नहीं बल्कि उसका सौभाग्य होता है…तभी तो वह सौभाग्यशाली होती है…सुहागन होती है...तो उसके लिए मंगलसूत्र ही सब कुछ है। जिस स्त्री के पास मंगलसूत्र नहीं, उसका जीवन ही शून्य।
 
क्या इतनी ही सोच?
स्वाभिमान क्या होता है? कभी पाठशाला में ही संधि विच्छेद में पढ़ा था कि स्व का अभिमान मतलब स्वाभिमान, स्व मतलब खुद, आप स्वयं..जबकि मंगलसूत्र किसी और के नाम का (मतलब पति के नाम का) पहना जाता है..पति मतलब आपसे अलहदा कोई, वह आप कैसे हुए…आपका स्वाभिमान उसके नाम का कैसे हुआ? क्या यह दासत्व नहीं?
 
जिसके गले में मंगलसूत्र नहीं उसका स्वाभिमान ही नहीं..या कि स्त्रियों का स्वाभिमान केवल गले में पड़े मंगलसूत्र से जुड़ा है, जैसा कि उनका अस्तित्व ही केवल उतना है। जबकि महान् दार्शनिक सात्र कहते हैं- ‘यह मैं हूँ, मेरा अस्तित्व है, जहाँ से सोचने की प्रक्रिया शुरू होती है’। तो क्या महिलाओं के सोचने की प्रक्रिया केवल मंगलसूत्र से मंगलसूत्र तक सीमित है। क्या अंतर है हरियाणा और महाराष्ट्र में? 
 
‘कुछ दिन पहले हरियाणा शासन के ‘हरियाणा संवाद’ नामक मासिक के मुखपृष्ठ पर ‘घूंघट की आन-बान म्हारे हरियाणा की पहचान’ लिखा विज्ञापन था। ‘माझे मंगलसूत्र माझा स्वाभिमान’ लिख दो या कि ‘घूंघट की आन-बान म्हारे हरियाणा की पहचान’…क्या अंतर है महाराष्ट्र और हरियाणा में, क्यों हम महाराष्ट्र को तिस पर पुणे को प्रगतिशील मानें? कवि सरोज कुमार की पंक्तियाँ अनायास याद आती हैं कि ‘बाड़ लग जाए जो रक्षा हो जाती है’…मतलब क्या बाड़ (चाहे घूँघट हो या मंगलसूत्र) न हो तो लड़की सुरक्षित नहीं?
 
केवल विज्ञापन ही तो है…
जी, केवल विज्ञापन ही है, लेकिन विज्ञापन आसमान से नहीं आते, वे हमारी-आपकी सोच को दर्शाते हैं। विज्ञापन ऐसे ही बनाए जाते हैं जो उपभोक्ता को अपनी ओर खींच सकें…बाज़ार का दिमाग ऐसे ही दौड़ता है कि ‘क्या है वह टेग लाइन जो उसके लक्षित उपभोक्ता को अपनी ओर खींचेगी?’..बच्चों के लिए विज्ञापन हो तो ‘मम्मी भूख लगी’, युवाओं के लिए हो तो ‘नया क्या है…?’ महिलाओं के लिए हो तो ‘उसकी साड़ी, मेरी साड़ी से सफ़ेद कैसे?’..मतलब वे वाक्य जो उस वर्ग के दिमाग में सबसे पहले आते हैं…तो आज भी क्या स्त्रियों के दिमाग में सबसे पहले यही वाक्य आता है कि उनकी शादी ही उनका जीवन है। या सालों-साल से उनकी कंडीशनिंग ही ऐसी की गई है कि उन्हें कुछ और दिखता ही नहीं…
 
और इन सवालों के जवाब कौन देगा? 
• जिसका पति नहीं, तो उसके पास मंगलसूत्र नहीं …मतलब क्या उसके पास स्वाभिमान नहीं?
• पढ़ी-लिखी आत्मनिर्भर, आर्थिक तौर पर स्वावलंबी स्त्री यदि शादीशुदा नहीं तो उसके पास मंगलसूत्र नहीं तो क्या वह स्वाभिमानी नहीं है?
• तलाकशुदा स्त्रियां आपकी नज़र में किस कैटेगरी में होंगी?
• उन महिलाओं का क्या जो बतौर फैशन मंगलसूत्र पहनती हैं या बतौर फैशन नहीं भी पहनतीं, तो क्या वे स्वाभिमानी नहीं?
• पति से रोज मानसिक, शारीरिक-आर्थिक शोषण का शिकार हो रही मंगलसूत्र पहनी महिला स्वाभिमानी ही होगी न?
• घरेलू हिंसा की शिकार पर समाज के डर से चुप्पी साध लेने वाली गले में मंगलसूत्र, हाथ भर चूड़ियाँ और मांग भर सिंदूर लगाने वाली, तो शायद सबसे ज्यादा स्वाभिमानी होगी, है न?
• अपने बूते पर जीने वाली, किसी भी अन्याय को न सहन करने वाली, पति के तानों को रस्सी पर तान देने वाली…पति को छोड़ देने वाली…आपकी नज़र में कदापि स्वाभिमानी नहीं है न? आपकी नज़र में वह क्या है…क्या कहते हैं आप ऐसी औरतों को….
 
…. कहिए न क्यों न हो इस विज्ञापन का विरोध, इस मानसिकता का विरोध, इन झूठे आडंबरों का विरोध...

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

रेखा राजवंशी के ग़ज़ल संग्रह 'मुट्ठी भर चांदनी' का लोकार्पण