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प्राण प्रतिष्ठा के साथ घटित हो रही क्रांति

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अवधेश कुमार

HIGHLIGHTS
* अयोध्या श्री राम जन्मभूमि मंदिर में श्रीराम विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा संपन्न। 
* भारत बना विश्व में ऐतिहासिक घटना का केंद्र। 
* भारत सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और धार्मिक क्रांति का अनोखा अध्याय।

Ayodhya Shri Ram Temple : अयोध्या इस समय श्री राम जन्मभूमि मंदिर में श्रीराम विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के साथ भारत में ऐसी घटना का केंद्र बन गया है, जिसकी तुलना विश्व में घटित किसी घटना से नहीं हो सकती है। जो अयोध्या में रहकर प्राण प्रतिष्ठा के पूर्व, उसके दौरान और बाद के यहां के साथ संपूर्ण देश के परिदृश्यों को गहराई से देखेगा उसे ही यह क्रांति समझ में आएगी। अयोध्या में रहते हुए मैं ऐसा घटित होते हुए साक्षात देख रहा हूं जिसकी कभी कल्पना नहीं की गई होगी। 
 
प्राण प्रतिष्ठा के बाद अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह केवल प्राण प्रतिष्ठा नहीं सर्वकालिक उद्गम है। उन्होंने यहां से भारत के उत्कर्ष और उदय की बात की। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंचालक डॉक्टर मोहन भागवत ने प्रधानमंत्री की प्राण प्रतिष्ठा के पूर्व की गई तपस्या के बाद अब संपूर्ण भारत को वैसे तपस्या करने का आह्वान किया जिससे हिंदुत्व और राम के चरित्र को साकार हो। यानी हम सब एक-दूसरे के लिए जियें, एक दूसरे के लिए सब कुछ दान करने, सेवा के लिए अपने को अर्पित करने का चरित्र स्वयं में पैदा करें। यही वह भाव है जिससे अयोध्या के केंद्र से घटित होते हुए भारत की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और धार्मिक क्रांति विश्व के क्रांतियों के इतिहास में एक अनोखा अध्याय बन रहा है।
 
1980 और 90 के दशक में श्री रामजन्मभूमि मंदिर निर्माण के आंदोलन को भी देश और दुनिया के राजनेता, एक्टिविस्ट, बुद्धिजीवी और पत्रकार नहीं समझ सके। इसकी व्याख्या ऐसे की गई मानो सांप्रदायिक शक्तियां भारत में मुसलमानों के विरुद्ध उन्माद पैदा कर सत्ता पर कब्जा करना चाहती है।

6 दिसंबर, 1992 के बाबरी विध्वंस को नाजीवादी और फासिस्टवादी हिंसक शक्तियों का कार्य घोषित किया गया। राजधानी दिल्ली की पत्रकारिता और बौद्धिक क्षेत्र का वातावरण ऐसा था जिसमें विवेकशील तरीके से बात करने वाले को हिंसक प्रहार तक का सामना करना पड़ता था। मैं स्वयं इसका प्रत्यक्ष गवाह हूं।‌ 
 
प्राण प्रतिष्ठा की तिथि घोषित होने के साथ अभी तक अयोध्या एवं पूरे देश की तस्वीर भारत की अंतर्निहित सामूहिक चेतना का प्रमाण दे रहा है। आपको अयोध्या में इस समय संपूर्ण भारत का दर्शन होगा। स्त्री, पुरुष, किशोर, युवा, वयस्क, ‌बूढ़े सब भारी कष्ट उठाकर अयोध्या पहुंच रहे थे।

आप अयोध्या के आसपास कई किलोमीटर तक जनसमूह को देख सकते थे। इसमें गहराई से समझने वाली बात है कि किसी के चेहरे पर परेशान या दुखी होने का भाव तक नहीं है। पैदल चलने से पैरों में दर्द होगा, सही समय पर भोजन नहीं मिलने से भूख भी लगी होगी, पर चेहरे पर आपको विलक्षण हंसी और गर्व का भाव दिखेगा। 
 
किसी से पूछिए कि क्या सोच कर आए तो उत्तर एक ही होगा, हमारे प्रभु राम 500 वर्ष के बाद मंदिर में विराजे हैं, उन्हीं का दर्शन करने आया हूं। बात करने पर कइयों की आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं।
 
अभी तक हमने स्थापित सत्ता के विरुद्ध हिंसक-अहिंसक विद्रोह को ही क्रांतियों की संज्ञा दी है। यह ऐसी क्रांति है जिसमें सामने कोई विरोधी नहीं, जहां किसी को उखाड़ फेंकना नहीं है, लोगों की सोच और व्यवहार से ऐसा परिवर्तन हो रहा है जिसका प्रभाव सैकड़ो वर्षों तक रहेगा। आधुनिक युग में सत्ता की व्याख्या पहले यूरोप और आज संपूर्ण पश्चिम की देन है। वहां मूलत: राजनीतिक सत्ता की ही बात होती है। वहां की रिलिजन सत्ता (धर्म सत्ता नहीं) भी राजनीतिक सत्ता के समानांतर रही है। 
 
भारतीय संस्कृति और व्यवस्था में धर्मसत्ता को सर्वोच्च स्थान मिला, उसके बाद समाज सत्ता, फिर राजसत्ता, और तब अर्थ सत्ता। तीनों का नियंता धर्म सत्ता। अयोध्या से निकल रही क्रांति भारत में धर्मसत्ता की पुनर्स्थापना है। यह ऐसी सत्ता है जिसमें कोई आदेश-निर्देश देने वाला तंत्र नहीं, कोई आदेश-निर्देश का पालन न करे तो उसे प्रत्यक्ष सजा देने वाला नहीं। धर्म का पालन करने वाला हर व्यक्ति स्वयंमेव उसके नियमों यानी सबके प्रति करुणा, मनुष्य से लेकर चर-अचर, जीव-अजीव के प्रति संवेदनशीलता से अपने दायित्व का निर्वहन करेगा, सच्चाई, ईमानदारी और नैतिकता का पालन करते हुए उस अमूर्त सत्ता के प्रति स्वयं को समर्पित करता है। 
 
इसके लिए आधुनिक संदर्भ में राजसत्ता की तरह किसी लिखित संविधान-कानून, के पालन करने की बाध्यता नहीं, या न पालन करने पर दंडित करने वालों की आवश्यकता नहीं। स्पष्ट है कि इस तरह की धार्मिक-आध्यात्मिक-सांस्कृतिक-सामाजिक क्रांति के ही परिणाम स्थायी होंगे। यह परिणाम राजनीति में भी परिलक्षित होता रहेगा। यह सामूहिक भाव तभी पैदा होता है, जब अपने प्रति तथा धर्म-संस्कृति व राष्ट्र के प्रति गौरव का बोध हो। उस आत्मगौरव को नष्ट करने के लिए ही हमारे उन स्थलों को आक्रमणकारियों ने ध्वस्त किया जो हमें धर्मसत्ता को सर्वस्व मानकर जीवन जीने, सबके अंदर स्वयं को ही देखने तथा धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करने, बलिदान करने के लिए प्रेरित करती थी। 
 
स्वाभाविक ही अयोध्या की क्रांति कालचक्र को आधुनिक संदर्भ में फिर से उस स्थल पर ले जाने का द्योतक है जहां से इसके ध्वंस और हमारे अंदर आत्महीनता पैदा करने की शुरुआत हुई। तो प्राण-प्रतिष्ठा के साथ इस क्रांति को और घनीभूत करते हुए भारत की स्थायी वृत्ति बनानी होगी ताकि फिर ऐसी स्थिति न पैदा हो जहां हमारे मान बिंदुओं को ध्वस्त कर भारत के आत्मविश्वास को खत्म किया जाए। ऐसा हुआ तो संपूर्ण विश्व फिर उसी एक-दूसरे के विरुद्ध दुश्मनी, शोषण, दमन और रक्तरंजीत स्थिति को प्राप्त होगा जो हजार सालों से हो रहा है। 
 
प्रभु राम के चरित्र में अपने घोर दुश्मन के प्रति भी दुश्मनी का भाव नहीं। रावण की मृत्यु के बाद राम विभीषण को उसका विधिपूर्वक श्राद्ध करने को कहते हैं ताकि उसकी आत्मा को मुक्ति मिले। अयोध्या से निकला यही भारत आत्मसक्षम होने के साथ न केवल भारतीयों बल्कि संपूर्ण विश्व के कल्याण के लिए स्वयं को हर क्षण आगे रखने वाला होगा। इस तरह यह एक अनोखी वैश्विक क्रांति का भी घोष माना जाएगा।

इसलिए इस विषय को गहराई से समझने वाले हर भारतवंशी का उत्तरदायित्व बढ़ जाता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सहित उन सारे संगठनों को भी इसे गहराई से समझते हुए नए सिरे से अपना उत्तरदायित्व और व्यवहार निर्धारित करना होगा।
 
विरोधी अभी भी यही राग अलाप रहे हैं कि आरएसएस और भाजपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव का ध्यान रखते हुए प्राण प्रतिष्ठा कराई ताकि इसका चुनावी लाभ  मिले। दो राय नहीं की पूरा संघ परिवार कार्यक्रम में लगा था। यह सिद्ध भी हो गया कि इतना बड़ा कार्यक्रम करने की क्षमता संपूर्ण विश्व में किसी के पास है तो वह संघ परिवार ही है। प्राण प्रतिष्ठा ऐसा कार्यक्रम था जैसा पहले न कभी हुआ, न आगे कभी होगा। ऐसे कार्यक्रम को इतनी व्यवस्थित तरीके से पूर्ण कर देना असाधारण उपलब्धि है। निश्चित रूप से संघ परिवार में नीचे स्तर के लोगों ने आमंत्रण में दृष्टिहीनता के अभाव में ऐसे लोगों को भी बुलाया जो इस ऐतिहासिक अवसर में सम्मानित होने के पात्र नहीं थे। निस्संदेह, सुपात्रों को वंचित किया गया। किंतु इससे इस दीर्घकालिक परिणामों की ओर अग्रसर क्रांति को ग्रहण नहीं लग सकता। 
 
पूरे अयोध्या में आपको एक भी भाजपा का कार्यकर्ता लोगों से यह कहते नहीं मिलेगा कि हमारा कार्यक्रम है, चुनाव में हमारा सहयोग करिए। इसके भी प्रमाण नहीं कि इतनी भारी संख्या में लोगों को अयोध्या लाने के पीछे भाजपा की भूमिका हो। भाजपा को अगर इसका चुनावी लाभ मिलेगा तो इसलिए कि अयोध्या में प्रभु श्रीराम का मंदिर बनने और विग्रह प्रतिष्ठापित होने की अदम्य आकांक्षाएं पूरी हुईं हैं। जिस संगठन परिवार ने, जिस पार्टी ने और जिस सरकार ने पूरा करके दिखाया उसके प्रति गहरी आत्मीयता और उसका समर्थन स्वाभाविक है। 
 
राजनीतिक नेतृत्व में शीर्ष पर होने के कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस समय संपूर्ण भारत ही नहीं, विश्वभर के भारतवंशियों के शीर्ष पुरुष बन चुके हैं। आप अयोध्या में मोदी और योगी के बारे में कोई प्रश्न पूछिए उनके चेहरे का भाव बता देगा किया समर्थन नहीं, श्रद्धा भाव है। नेताओं के प्रति भी ऐसे भाव को भी क्रांतिकारी परिवर्तन की तरह देखना गलत नहीं होगा। 
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

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