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स्‍मार्ट दुनिया... चिकने-चुपड़े चेहरों पर चिकनी-चुपड़ी हंसी

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स्वरांगी साने

जिस तरह से फ़ोटो ऐडिट किए जाते हैं, जिस तरह फ़ोटो शॉप का इस्तेमाल कर असली दुनिया में नकलीपन का तड़का लगाया जा रहा है वह बच्चों या कह लीजिए युवाओं की फ़ंतासी को नए पंख दे रहा है। चूंकि यह फ़ंतासी है, इसलिए असल में कोई लड़का या लड़की उतने स्मार्ट हों या न हों पर वे स्मार्ट दिख रहे हैं।

स्मार्ट के मायने समझदारी से कदापि नहीं है, स्मार्ट होना मतलब लुकवाइज देखा जा रहा है कि कौन कैसा दिखता है या कौन कैसा रहता है, उसका रहन-सहन कैसा है, वो क्या पहनता है। फ़ैशन की दुनिया इससे पहले कभी इतनी मज़बूत नहीं रही होगी, जितनी आज है। आम दिनों में बाज़ार करने जाते हुए भी युवा सजधज कर जाने लगे हैं, कैज़ुअल लुक में भी स्मार्टनेस और ट्रेंडीनेस ढूंढने लगे हैं।

पहले हर कोई स्मार्ट नहीं होता था और उस दौर की वैसी ज़रूरत भी नहीं थी। कवि-पत्रकार झोले उठाए दिखते थे, आंदोलनकारी झोलाछाप माने जाते थे, पढ़ाकू मोटा चश्मा लगाए होते थे, घरेलू तेल चुपड़े बालों में दिखते थे पर अब हर कोई रैम्प वॉक की अदा में लहराता है। शायद यह आज के दौर की ज़रूरत है कि यदि स्मार्ट न दिखे तो कोई आपको दो मिनट खड़ा भी नहीं करेगा।

एक कहावत सुनी थी कि ख़राब किताब भी आकर्षक कवर के दम पर चल जाती है, लेकिन अब वह कहावत केवल किताबों के बारे में ही नहीं, हर मामले में सच होती दिख रही है। आकर्षक कवर चढ़ाकर हर चीज़ बेची जा रही है। आप कितने हुनरमंद से ज़्यादा आप कितने अच्छे सेल्समैन हैं, इस पर आपका सफल होना टिका है। यह ख़तरनाक दौर है लेकिन इसे ख़तरनाक कहने का समय भी किसी के पास नहीं है।

खुरदुरेपन की दुनिया बहुत पीछे छूट गई है। अब हर कोई चिकना-चुपड़ा होना चाहता है, चिकने-चुपड़े चेहरे पर चिकनी-चुपड़ी हंसी के साथ चिकनी-चुपड़ी बातें करने में लगा है। अधिक चिकनाई भरी सड़क पर पैर फिसलने का ख़तरा अधिक होता है और तब और संभलकर चलना पड़ता है, यह कौन समझाएगा, क्योंकि समझाने वाली पीढ़ी भी ग्लैमरस होने में लगी है। अस्सी साल का सत्तर का दिखना चाहता है, सत्तर साल वाला साठ का और साठ वाला खुद को पचास का समझता है। पचास साल की उम्र के लोग खुद को चालीस-पैंतालीस के हैं कहते हैं, चालीस वाले खुद को बमुश्किल पैंतीस का जताते हैं, पैंतीस के तीस का और तीस वाले पच्चीस साल वालों की तरह जीते हैं, पच्चीस साल के कॉलेज गोइंग दिखना चाहते हैं और बीस साल के खुद को टीन एजर्स ही मानते हैं। कौन किसको बहने से रोकेगा।

कोई इस बहाव को रोक पाए तो बता दें कि तेज़ धार किनारों को काटती चली जाती है, मिट्टी को बहाकर ले जाती है और मिट्टी न होने से जड़ मजबूत नहीं रह पाती, चुटकियों में बड़े से बड़े पेड़ भी धराशायी हो जाते हैं। यह बहाव बता रहा है कि हर समय फ़्रैश दिखना है, ताज़ा, नए दिखना है, नए कपड़े, नया फ़र्नीचर, नए कॉस्मेटिक्स लेने हैं। जितना नया आप खरीदेंगे उतना पैसा फ़ैशन इंडस्ट्री में जाएगा। फ़ैशन इंडस्ट्री के बड़े ब्रांड्स विदेशी हैं और सारा पैसा विदेशों में जा रहा है, लेकिन रंगीन चश्मा लगाए आप इस अंतहीन में दौड़ रहे हैं, थोड़ रुकिए भी, थोड़ा सोचिए भी।

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