सुशांत, एक नाम जिसने अपने जाने के बाद बॉलीवुड की जहरीली शांति को अशांत कर दिया है, एक नाम जिसने आज नींद छीन ली है उन लोगों की जो गोलियां खा कर कभी अपने काले कारनामों को भूल जाया करते थे, एक नाम जो इंसाफ के लिए पूरे देश को एक जुट कर रहा है....
14 जून को सुशांत संदिग्ध तरीके से मृत पाए जाते हैं और 14 अगस्त तक कहानी डिप्रेशन, आत्महत्या, करण जौहर, पानी फ़िल्म, महेश भट्ट, रिया चक्रवर्ती,सिद्धार्थ, अंकिता लोखंडे, सलमान, सूरज , दिशा सालियान जैसे नामों से होती हुई एक राजनीतिक घराने की चौखट से जा टकराती है...और पलट कर दूसरी ही कहानी का रूप ले लेती है...
हर दिन एक राज, हर दिन एक रहस्य, हर दिन एक खुलासा... किस पर भरोसा करें किस पर न करें.... एक लड़की है जो मायावी अंदाज़ में महत्वाकांक्षा के बादल पर सवार बस उड़ने पर यकीन करती है और उन्हीं कंधों को जख्मी करती है जिन पर सवार होकर वह बादलों पर चढ़ी थी...
एक लड़की के पैसे की हवस उस इंसान को भी निगल जाती है जो अपने सारे बैंक एकाउंट भी उसी के हवाले रखता है, एक लड़की जो प्रवेश करती है जिंदगी में प्यार बनकर और निकलती है कत्ल का कारण बनकर...
कितने गहरे हैं रहस्य, कितनी सारी हैं परतें कोई नहीं जानता, या फिर हर कोई जानता है.... सवाल जानने का नहीं, सवाल एक खूबसूरत जिंदगी के अचानक से खामोश कर दिए जाने का है, सवाल एक जिंदगी को बेरहमी से कुचल देने का है...
कभी-कभी सोचती हूँ कि अगर सुशांत किसी धर्म विशेष का होता तो क्या मानव अधिकार के झंडे ज्यादा लहराते, ज्यादा फहराते फिर झटक देती हूं सोच को,नहीं ऐसा नहीं है बात जब ताकत और प्रतिभा के बीच की जंग की होगी तो धर्म आड़े नहीं आएगा...
अब तक ताकत जीतती रही है लेकिन पहली बार ऐसा हुआ है कि प्रतिभा और मासूमियत आगे चल रही है...
बिना किसी पीआर कंपनी के एक फ़िल्म का ट्रेलर मुंह के बल गिर जाता है... सिर्फ यही नहीं हर जगह पीआर कंपनियां बौखलाई सी घूम रही हैं, सोशल मीडिया पर कोई विंडो हाथ नहीं आ रही है, कोई हैशटैग मिल नहीं रहा है...एक साथ इतनी आवाजें मिल गई है कि ताकतवर सियार कान बंद करने को मजबूर है...
एक आम इंसान की ज़िंदगी को कैसे तमाशा बना कर गिद्ध चीखते रहे हैं आज सारे गिद्ध अपनी खून सनी चोंच को पोंछने का असफल प्रयास कर रहे हैं... जाने कितनी रूहें अपनी मौत का हिसाब मांगने के लिए दौड़ी चली आ रही है परवीन बॉबी, श्रीदेवी, जिया खान, प्रत्युषा, दिशा सालियान... नाम सब मिल रहे हैं आपस में पर कातिलों के नाम धुंधले नहीं हैं दिन बीत रहे हैं और वे नाम उभर कर और स्पष्ट हो रहे हैं...
संभव है की कुछ राज दिशा ने जान लिए हो, कुछ राज सुशांत तक पहुंचे हो वे बेपर्दा हो उससे पहले उनको उन्हीं राज के साथ खत्म कर उन्हें ही 'राज' बना दिया हो...
अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं है, खुद को बचाने के लिए गंदे आरोपों का घिनौना खेल खेल रहे हैं माहिर लोग और चाहते हैं कि इंसाफ की लड़ाई अपनी इज़्ज़त के नाम पर खामोश हो जाए जैसा कि अमूमन होता रहा है...लेकिन इस बार मौसम कुछ अलग है, माहौल कुछ अलग है मंज़र कुछ अलहदा है,हर कहानी की तरह नहीं होगा इसका अंत, देश की जनता होने नहीं देगी....
सुशांत तुम शांत होकर भी कितना बोल रहे हो, एक आवाज बन गए हो, देख रहे हो तुम ...आलीशान गलीचे के नीचे से कितने जहरीले कीड़े निकल रहे हैं .... इंसाफ आज तुम्हें नहीं पूरे देश को चाहिए... क्योंकि हर जिंदगी को जीने का हक है हर ज़िंदगी को मुस्कुराने का हक है, सितारों, किताबों, म्यूजिक,अपने अपने 'फ़ज़' और जिम के साथ खिलखिलाने का हक है..
ये दिल बेचारा नहीं, सबका प्यारा था इसे गुनगुनाने का हक था...
सुशांत ये चिंगारी जो तुम्हारी गहरी नींद ने सुलगाई है ज्वाला बनकर जाने कितनी नींदों को बर्बाद कर रही है और इस बार बहुत दर्द के साथ ये सुकून है कि सब साथ हैं तुम्हारे... साथ है एक निहायत सादा जिंदगी के....