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भगोरिया में सियासी रंग, आदिवासी वोटों के लिए 'थिरके' शिवराज

हमें फॉलो करें भगोरिया में सियासी रंग, आदिवासी वोटों के लिए 'थिरके' शिवराज
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अरविन्द तिवारी

, सोमवार, 21 मार्च 2022 (10:25 IST)
राजवाड़ा टू रेसीडेंसी
 
बात यहां से शुरू करते हैं
 
कोई माने या ना माने लेकिन यह सौ फीसदी सही है कि भाजपा के संगठन महामंत्री पद से सुहास भगत की रवानगी में इंदौर की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इंदौर के कुछ भाजपा नेताओं से भगत की निकटता जिस स्वरूप में संघ के शीर्ष नेतृत्व तक पहुंची, वह उनके लिए परेशानी का बड़ा कारण बनी। गौरतलब है कि जो बातें नागपुर तक पहुंची थीं, उसकी तहकीकात भी इंदौर के ही संघ के कुछ दिग्गजों से ही करवाई गई। और इसके जो निष्कर्ष निकले, वही उनकी रवानगी का कारण बने। बात कितनी बिगड़ी हुई थी, इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि संघ में वापसी के बाद भगत को मध्यक्षेत्र का बौद्धिक प्रमुख तो बनाया गया लेकिन मुख्य धारा से अलग करते हुए मुख्यालय जबलपुर कर दिया गया।
 
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान इस बार भगोरिया में जिस तरह रंगे दिखे, उससे यह स्पष्ट है कि भाजपा ने मालवा-निमाड़ की आदिवासी सीटों पर 2013 के नतीजों को दोहराने की तैयारी शुरू कर दी है। दरअसल, 2018 के चुनाव में मालवा-निमाड़ की आदिवासी सीटों पर बुरी तरह शिकस्त खाने के कारण ही भाजपा को सत्ता से बाहर होना पड़ा था। इन सीटों पर भाजपा की वापसी के लिए संघ अभी से मैदान संभाल चुका है लेकिन मुख्यमंत्री भी कोई कोर-कसर बाकी नहीं रख रहे हैं। यही कारण है कि थांदला के भगोरिया में अपने उपस्थिति दर्ज करवाने के बाद मुख्यमंत्री बड़वानी के पाटी भी पहुंचे और परंपरागत आदिवासी परिधान में मामाओं के मामा बनते नजर आए।
 
मध्यप्रदेश में ही पूरी तरह रम गए कमलनाथ के दिल्ली जाने की चर्चा फिर चल पड़ी है। यह तय है कि यदि वे दिल्ली गए तो फिर मध्यप्रदेश के 20 से ज्यादा कांग्रेस विधायक भी पाला बदलने में देर नहीं करेंगे। इनमें से ज्यादातर वे विधायक हैं, जो पहली बार चुने गए हैं। ये विधायक जब भी भोपाल में होते हैं, एक-दूसरे के संपर्क में रहते हैं और दावत करने में भी पीछे नहीं रहते हैं। ये विधायक मानते हैं कि यदि कमलनाथ दिल्ली चले गए तो फिर मध्यप्रदेश में इनका कोई धनी-धोरी नहीं बचेगा। अपनी भावना को ये पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व तक भी पहुंचा चुके हैं।
 
आने वाले समय में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा बदले अंदाज में नजर आए तो चौकन्ने होने की जरूरत नहीं। इसका मुख्य कारण होंगे पार्टी के नवनियुक्त संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा। पुराने संगठन महामंत्री सुहास भगत के साथ शर्मा की ट्यूनिंग एक घोषित मजबूरी थी और इसका फायदा दोनों को ही मिला। नए संगठन महामंत्री के साथ शर्मा का तालमेल बहुत अच्छा है। दोनों एक-दूसरे के हितों को बहुत अच्छे से समझते हैं। मैदानी स्तर पर अपने नेटवर्क को बहुत मजबूत कर चुके प्रदेश अध्यक्ष अब शर्मा का सधा हुआ साथ मिलने के कारण संगठन में भी बहुत मजबूत हो जाएंगे। कुल मिलाकर भगत के जाने के बाद संगठन में 50-50 का दौर अब समाप्त हो जाएगा और प्रदेश अध्यक्ष की पसंद को ज्यादा तवज्जो मिलने लगेगी। बावजूद इसके, भगत समर्थकों को निराश होने की जरूरत नहीं।
 
कांग्रेस मंडल और सेक्टर के साथ ही बूथ स्तर पर मजबूत करने में लगे कमलनाथ के लिए झाबुआ-आलीराजपुर जिले की कांग्रेस राजनीति में इन दिनों जो चल रहा है, वह बड़ी चिंता का विषय है। यहां जोबट में भगोरिया वाले दिन जो कुछ हुआ, उससे यह साफ हो गया है कि अब कांतिलाल भूरिया और महेश पटेल के बीच सुलह की कोई संभावना नहीं है। अब तो कांग्रेस से बाहर किए जाने के बाद महेश और खुले हो गए हैं। भूरिया विरोधी धड़े को उनका बाहर से समर्थन मिलना तय है। भाजपा के लिए भी महेश को साधना ज्यादा मुश्किल कम नहीं है। ऐसे में सबसे ज्यादा नुकसान डॉक्टर विक्रांत भूरिया को होना है, जो आने वाले समय में झाबुआ-रतलाम क्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। देखते रहिए आगे क्या होता है?
 
सालभर पहले जब आईएएस अफसर एमबी ओझा ग्वालियर के संभाग आयुक्त पद से सेवानिवृत्त हुए थे तब से उनके पुनर्वास की चर्चा चल रही थी। अलग-अलग पदों के लिए उनका नाम चर्चा में था लेकिन बात बन नहीं रही थी। ओझा, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बहुत पसंदीदा अफसरों में से एक हैं और मुख्यमंत्री की पसंद के चलते ही उन्हें राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण जैसी महत्वपूर्ण संस्था को लीड करने का मौका दिया गया है। वैसे सहकारिता मंत्री अरविंद सिंह भदोरिया यहां अपने पसंदीदा अफसर नरेश पाल को काबिज करवाना चाहते थे, लेकिन जो स्थिति इन दिनों मुख्यमंत्री और भदोरिया के बीच है, उसके चलते उन्हें सफलता नहीं मिली।
 
'ना काहु से दोस्ती ना काहु से बैर' कहावत का अनुसरण करने के कारण ही आईपीएस अफसर आदर्श कटियार सत्ता के हर दौर में महत्वपूर्ण भूमिका में रहे हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति उनके साथ पुलिस मुख्यालय में है। चाहे विवेक जोहरी डीजीपी रहे हो या फिर नए डीजीपी सुधीर सक्सेना, पुलिस मुख्यालय में कटियार का ही दबदबा बना रहा। कहा यह जा रहा है कि केंद्र से प्रतिनियुक्ति पर लौटने के बाद मध्यप्रदेश के डीजीपी की कमान संभालने वाले सक्सेना एडीजी INT की भूमिका निभा रहे कटियार पर बहुत-बहुत भरोसा कर रहे हैं और फील्ड के मामले में जो इनपुट उनसे मिल रहा है, उसी से मैदानी पदस्थापना वाले कई अफसरों का भविष्य तय होता नजर आ रहा है।
 
चलते-चलते...
 
तत्कालीन डीजीपी विवेक जोहरी की इच्छा के विरुद्ध मुरैना के एसपी बने और डीआईजी पद पर पदोन्नति के बाद भी कुछ महीने वहीं बरकरार रहे आईपीएस अफसर ललित शाक्यवार भले ही अब पुलिस मुख्यालय में आ गए हो लेकिन जो कागज डीजीपी रहते जोहरी आगे बढ़ा गए थे, वे उनके लिए परेशानी का कारण बने हुए हैं।
 
पुछल्ला...
 
या तो गांधी भवन के वास्तु में दोष है या फिर पद के साथ कोई दुर्योग जुड़ा है कि उजागरसिंह चड्ढा और प्रमोद टंडन के बाद शहर कांग्रेस अध्यक्ष पद पर बैठने वाले विनय बाकलीवाल भी परेशानी में आ गए हैं। मुंबई में हुई एक बड़ी सर्जरी के बाद बाकलीवाल इन दिनों इंदौर में घर पर ही आराम कर रहे हैं।

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