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आपातकाल को लेकर जनता को जागरूक रहना चाहिए : हरेन्द्र प्रताप

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संजय द्विवेदी

माखनलाल चतुर्वेदी राष्‍ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विवि में आपातकाल प्रसंग पर विमर्श
 
प्रख्‍यात चिंतक और विचारक हरेन्‍द्र प्रताप ने आपातकाल के दर्द को बयां करते हुए कहा कि आज की युवा पीढ़ी को आपातकाल के दौर को याद दिलाने की आवश्यकता है। मैंने प्रत्यक्ष तौर पर आपातकाल के दर्द को झेला है। तब लोग 'आपातकाल' जैसे शब्द से परिचित भी नहीं थे। लाखों लोगों को जेल में अकारण बंद कर दिया गया। अनेक तरह की यातनाएं दी गईं। सरकार के पक्ष के कई समाचार पत्रों के विज्ञापन की दरें बढ़ा दी गईं। कई बड़े और छोटे मीडिया संस्थानों को प्रतिबंधित कर दिया गया। 1975 में लगे आपातकाल के बाद जनता को जागरूक रहना चाहिए। राजनेताओं में तानाशाही प्रवृत्तियां हो सकती हैं लेकिन जनता को जगाना पड़ेगा।

 
वे माखनलाल चतुर्वेदी राष्‍ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विवि द्वारा 'आपातकाल, लोकतंत्र और मीडिया' विषय पर आयोजित संविमर्श में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। हरेन्‍द्र प्रताप ने कहा कि वास्‍तव में पं. जवाहरलाल नेहरू ने देश में आपातकाल का बीजारोपण किया था और पहली कम्‍युनिस्‍ट सरकार को भंग कर दिया था। 'व्यक्ति से बड़ा दल, दल से बड़ा देश' यह कहना आसान है लेकिन इसको जीना मुश्किल है। इंदिरा गांधी की अधिनायकवादी नीति ने लोकतंत्र की बुनियाद की धज्जियां उड़ा दी थीं। पार्टी के कई नेताओं को दल से बाहर कर दिया था।

 
संघ ने रखी थी जेपी आंदोलन की नींव : प्रताप ने जेपी आंदोलन और आपातकाल के संघर्ष में स्वयंसेवकों के योगदान का उल्लेख करते हुए कहा कि लाखों स्वयंसेवकों ने आपातकाल के दंश को झेला है, जेल गए हैं और अनेक यातनाएं सही। वास्तव में जेपी आंदोलन की नींव स्वयसेवकों ने ही रखी थी। शुरुआत में स्‍वयं जयप्रकाश नारायण आंदोलन के लिए तैयार नहीं थे। स्वयंसेवकों ने उनसे आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए आग्रह किया। इसके बाद देशभर में आंदोलन की शुरुआत हुई।
 

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दूसरा स्वतंत्रता संग्राम था आपातकाल : केतकर
 
इस मौके पर मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित 'ऑर्गनाइजर' के संपादक और जाने-माने पत्रकार प्रफुल्‍ल केतकर ने कहा कि आपातकाल देश का दूसरा सबसे बड़ा स्वतंत्रता संग्राम था। आपातकाल के विरुद्ध लाखों लोगों ने आंदोलन किया था। देशभर में युवाओं, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तारियां देनी पड़ी थीं। कई लोगों को जेल में रखा गया। अनेक यातनाएं दी गईं। उस समय सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया जा रहा था। सत्ता के साथ-साथ न्यायिक व्यवस्था पर भी इंदिरा गांधी नियंत्रण करने की कोशिश कर रही थीं। कोर्ट के आदेश के बाद भी इंदिरा गांधी ने इस्तीफा नहीं दिया। गुजरात में छात्रों और बिहार से जयप्रकाश नारायण ने आंदोलन को देशव्यापी बनाने का कार्य किया।

 
केतकर ने कहा कि आंदोलन को सक्रिय बनाने में संघ के स्वयंसेवकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने कहा कि जयप्रकाश नारायण ने आंदोलन का नेतृत्व किया लेकिन उसको वास्तविक आधार देने में स्वयंसेवकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। स्वयंसेवकों ने रातोरात पर्चे बांटने और सूचनाओं के आदान-प्रदान का कार्य किया। इस कार्य में महिलाओं ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके इस योगदान पर शोध कार्य किया जाना चाहिए।
 
कुछ लोग आपातकाल के नाम पर लोकतंत्र को खोखला बना रहे हैं : केतकर ने कहा कि आज ऐसे कई लोग हैं, जो कहते हैं कि देश में आपातकाल की स्थिति बन गई है। वास्तव में उन्हें आपातकाल के दर्द का अनुभव नहीं है। उन्हें पता ही नहीं है कि आपातकाल होता क्या है? जब शासन का उपयोग व्यक्तिगत स्वार्थ और परिवारवाद के लिए होता है, तो वह आपातकाल होता है। आज कुछ लोग आपातकाल के नाम पर लोकतंत्र को खोखला बनाने का प्रयास कर रहे हैं।

 
लोकतंत्र की रक्षा के लिए आपातकाल का इतिहास अवश्य पढ़ें : कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति जगदीश उपासने ने मीडिया के विद्यार्थियों से आह्वान किया कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए आपातकाल के इतिहास को अवश्य पढ़ना चाहिए। जो लोग अभी आपातकाल आने को लेकर अक्सर कयासबाजी करते रहते हैं, वे उस दौर में होते तो उन्हें अनुभव होता कि आपातकाल क्या होता है? उस समय कई परिवार बर्बाद हो गए, नौकरियां चली गईं, थानों-जेलों में लोग मर गए, चुन-चुनकर नेताओं के हाथ-पैर तोड़ दिए गए। वे स्वयं भी रायपुर जेल में बंद रहे। पर्चे बांटने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार किया गया। 5 दिनों तक थाने में पुलिस ने तरह-तरह से प्रताड़ित किया। उनके 2 भाई भी जेल में बंद कर दिए गए थे।

 
उन्होंने बताया कि आपातकाल के समय वे रायपुर से प्रकाशित 'युगधर्म' समाचार पत्र में उपसंपादक के पद पर कार्य करते थे। आपातकाल लगने के 1 दिन पहले 25 जून को उन्होंने रायपुर में समाजवादी नेता मधु लिमये की पत्रकारवार्ता और सार्वजनिक सभा को कवर किया। सभा में लिमये ने दिल्ली के अपने स्रोत के आधार पर घोषणा की थी कि आज रात को इंदिरा गांधी बड़ा फैसला करने वाली हैं। इस सूचना के बाद वे लिमये को 'युगधर्म' कार्यालय ले गए और विशेष संस्करण में उनका साक्षात्कार प्रकाशित किया। विशेष संस्करण शहर में वितरण किया गया। तुरंत ही तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल को इसकी खबर लग गई और उन्होंने प्रेस पर छापा डलवा दिया। समाचार पत्र की बिजली काट दी गई और देश में आपातकाल लागू होने से पहले से कार्यालय पर इमरजेंसी लगा दी गई थी।

 
आपातकाल की 'ओरल हिस्ट्री' सरंक्षित की जाना चाहिए : आपातकाल के दौरान समाचार पत्रों के प्रतिनिधियों पर हुए अत्याचारों का उल्लेख करते हुए विश्वविद्यालय के कुलाधिसचिव लाजपत आहूजा ने कहा कि देश में प्रतिवर्ष 1.25 लाख पीएचडी हो रही हैं लेकिन आपातकाल को लेकर बहुत कम शोध हुआ है। इसे लेकर लोगों के अनुभव को 'ओरल हिस्ट्री' के रूप में संरक्षित किया जाना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ी को पता लग सके कि देश के लोग और समाचार पत्र उस दौरान किन हालातों से गुजरे। उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान समाचार पत्रों ने पहली बार जाना कि सेंसरशिप क्या होती है? 'ऑर्गेनाइजर' समाचार पत्र ने तो देश में संविधान लागू होने के साथ ही सेंसरशिप का सामना किया था।

 
उन्होंने कहा कि समाचार पत्रों ने उस दौरान किस्से-कहानी के माध्यम से आपातकाल के विरुद्ध संदेश दिए और आम जनता को जागरूक किया। आपातकाल को लेकर शाह आयोग बनाया गया। लेकिन कांग्रेस की सरकार आने के बाद सभी स्थानों से आयोग की रिपोर्ट की प्रतियां वापस बुला ली गईं। अब ऑस्ट्रेलिया के एक पुस्तकालय में रिपोर्ट की प्रति उपलब्ध है और उसे भारत लाया जाना चाहिए।
 
कार्यक्रम में शहर के प्रबुद्धजन, पत्रकार व विद्यार्थी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन कुलसचिव प्रो. संजय द्विवेदी ने किया।
 
डॉ. पवित्र वास्तव (निदेशक, जनसं‍पर्क)
 
 

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