Delhi airport accident: हर साल तय दिनांक से पहले इनकम टैक्स रिटर्न भरने वाले लोग खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। वे विकास की अंधी दौड़ में मुंह के बल गिरते सिस्टम से हैरान हैं। उन्हें यह देख कर परेशानी हो रही है कि जब एक रात की बारिश में देश की राजधानी डूब रही थी, तब राजनीतिक दल एक-दूसरे पर दोष मढ़ रहे थे। पिछले 70 वर्षों में अगर कोई विकास नहीं हुआ तो पिछले 10 साल के विकास की पोल भी हर दिन खुल रही है।
बिहार में पुलों का गिरना, हिमालय के राज्यों में पहाड़ों का धंसकना तो आम बात हो गई है, लेकिन नए भारत के चमकते दमकते एयरपोर्ट की ढहती छतें और पश्चिमी देशों को टक्कर देते हाइवे और ब्रिजों की दरारें देश में विकास की विनाशकारी तस्वीरें पेश कर रही हैं। सामान्य ट्रेनों में भेड़-बकरियों की तरह भरे लोग अब सुप्रीम कोर्ट को दिखने लगे हैं। लेकिन मेट्रो और बुलेट ट्रेन की दौड़ में व्यस्त सरकार को नहीं दिखते।
दिल्ली एयरपोर्ट के टर्मिनल 1 की छत के नीचे दबकर मरे रमेश कुमार भी GST और सर्विस टैक्स भरते थे। उन्होंने अपने परिवार को पालने के लिए सेकेंड हैंड कार लेकर टैक्सी अटैच की थी। उनकी बेटी अब पूछ रही है कि उनके पापा अकेले कमाते थे, अब घर कौन चलाएगा? एयरपोर्ट किसने और कब बनाया, यह सब अब महत्वहीन हो गया है, क्योंकि उनके पापा तो चले गए।
नेताजी ने मृतकों के लिए 20 लाख और घायलों के लिए 3 लाख मुआवजे की घोषणा की, लेकिन यह रकम उनकी जेब से नहीं, बल्कि उसी टैक्स की है जो आप, हम और रमेश कुमार जैसे करोड़ों भारतीय भर रहे हैं। श्रीराम की नगरी की बदहाल सड़कों से लेकर महाकाल लोक की उखड़ी मूर्तियां भ्रष्टाचार की कहानियां बयां कर रही हैं। टीवी, सोशल मीडिया और अखबारों में इन तस्वीरों को देखकर टैक्स भरने वाले सोच रहे हैं कि जब भगवान को नहीं छोड़ा जा रहा तो आम आदमी की क्या बिसात है।
कई नेता गर्व से 56 इंच का सीना फुलाकर विकास की गाथाएँ गाते हैं और एक महान विकास पुरुष को भारत का उद्धारक बताते नहीं थकते। वहीं, सोशल मीडिया पर इस विनाशकारी विकास पर 'मन की बात' करने वाले आम आदमी को आईटी सेल के ट्रोलर पाकिस्तान भेजने की धमकी दे रहे हैं। (एक आम भारतीय की व्यथा)