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नागपुर हिंसा के पीछे की सोच को समझना होगा

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अवधेश कुमार

, शुक्रवार, 28 मार्च 2025 (12:32 IST)
नागपुर के दृश्य निस्संदेह फिर देश को भयभीत कर रहे हैं। 33 से ज्यादा पुलिसकर्मियों का घायल होना, भारी संख्या में वाहनों की तोड़फोड़ या जलाना, जगह-जगह घरों और दुकानों का क्षतिग्रस्त होना बताता है कि हमले सुनियोजित थे।

विधानसभा में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बयान भी दिया कि यह सुनियोजित हमला लगता है। नागपुर पुलिस की प्राथमिकी, अभी तक की छानबीन तथा हिंसा के पैटर्न बताते हैं कि यह त्वरित उत्तेजना और गुस्से की परिणति नहीं थी। तत्काल किसी मुद्दे, विषय या बयान से उत्तेजना हो तो छिटपुट समूह निकलकर हल्की-फुल्की हिंसा कर सकता है। 
 
वीडियो फुटेज में हमलावर चेहरे ढंके हुए हैं, नकाबपोश हैं, कई के पत्थरबाजी, तोड़फोड़ करते समय चेहरे से नकाब उतार रहे हैं, फिर वे लगा रहे हैं। पेट्रोल बम तक चले। इतने व्यापक क्षेत्र में बगैर पूर्व योजना और षड्यंत्र के वैसी हिंसा संभव नहीं। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 13 प्राथमिकी दर्ज हो चुकी है तथा 100 से ज्यादा लोगों की गिरफ्तारी भी।
 
घटनाक्रम देखिए। विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल ने 17 मार्च को औरंगजेब की कब्र हटाने के लिए विरोध प्रदर्शन किया और छत्रपति शिवाजी महाराज चौक पर प्रतीकात्मक पुतला जलाया। माइनॉरिटी डेमोक्रेटिक पार्टी के शहर अध्यक्ष फ़हीम अहमद लगभग 50-60 लोगों को लेकर गणेशपेठ पुलिस थाना पहुंचा और लिखित शिकायत दर्ज कराई कि हरे कपड़े पर पवित्र कुरान की आयत लिखकर जलाया जा रहा है। 
 
सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाई गई कि पवित्र कुरान की आयतें जलाई गई है, लोगों के घर से निकलने की अपील की गई। सोशल मीडिया पर झूठ फैलाया गया कि हिंसा में दो लोगों की मृत्यु हो गई है। एक सोशल मीडिया अकाउंट बांग्लादेश से मिला है जिसमें लिखा गया कि यह छोटा दंगा था, इससे बड़ा दंगा आगे होगा। फहीम खान थाने से आकर 400-500 लोगों, जिनके हाथों में हथियार थे को लेकर छत्रपति शिवाजी महाराज चौक यानी धरना स्थल पर पहुंच गया। 
 
पुलिस द्वारा भीड़ से वापस जाने के आग्रह को अनसुना करते हुए भड़काऊ और उकसाऊ नारे लगे। आप सोचिए, अगर कुछ निहत्थे लोग मांगों के लिए प्रदर्शन कर रहे हों, पुतले जल रहे हों और वहां कुल्हाड़ियों, पत्थरों, लाठी, रोड और अन्य ऐसी सामग्रियां लेकर 400-500 लोग लहराने लगें तथा दृश्य ऐसे हों मानो टूट पड़ने वाले हैं तो लोगों की कैसी मनोदशा होगी। 
 
इसी दौरान भालदारपुरा में पुलिस पर पत्थरों से हमले की भी घटना हुई। सबसे शर्मनाक अंधेरे का लाभ उठाकर महिला पुलिस के साथ छेड़खानी और दुर्व्यवहार था। गीतांजलि चौक पर भीड़ ने पुलिस वाहनों पर पेट्रोल बम से हमला किया और पुलिस के दो वाहनों में आग लगा दी।

गंजीपुरा में फ्लाईओवर निर्माण के लिए खड़ी दो क्रेन को पेट्रोल बम से आग लगा दी गई। ड्यूटी पर मौजूद पुलिस अधिकारियों पर पत्थरों और घातक हथियारों से हमलाकर घायल कर दिया गया। बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग आक्रामक तेवर और तैयारी में महल, कोतवाली, गणेशपेठ और चिटनिस पार्क समेत शहर के विभिन्न इलाकों में हिंसा करने लगे। 
 
नागपुर के सीए रोड, भालदारपुरा, गंजी पेठ, हंसापुरी, गांधी बाग, चिटनवीस पार्क, आदि क्षेत्र में ज्यादातर दुकानें पुराने मोटरसाइकिल एवं ऑटो स्पेयर पार्ट्स की हैं। सभी दुकानें मुस्लिम समुदाय की है। सोमवार को दुकानें सुबह से ही बंद रखी गई थी। क्यों? मोबिनपुरा में 150 गाड़िया इन्हीं लोगों की खड़ी रहती थी, वहां एक भी गाड़ी नहीं थी।  क्यों? शाम की हिंसा में केवल हिंदू घर एवं दुकान ही निशाना बने। नागपुर के डीसीपी निकेतन कदम पत्‍थरबाजी की घटना में घायल हुए। 
 
उनका वक्तव्य देखिए, ‘जिस तरह से हर तरफ से पत्थरबाजी हुई, उसमें कई अधिकारी घायल हो गए। एक घर में कुछ लोग छिपकर पत्थरबाजी कर रहे थे। टीम वहां गई तो दूसरी ओर से 100 से ज्यादा लोगों की भीड़ आई। मैंने उन्हें रोकने की कोशिश की तो एक ने कुल्हाड़ी से हमला कर दिया।

कई छतों से पत्थर फेंके जा रहे थे। पत्थर छत पर कैसे पहुंचे, कुछ तो प्लानिंग थी।’ भीड़ उन्मादित और कुछ भी करने पर उतारू थी तो कारण सामान्य नहीं हो सकता। पुलिस वालों से मोर्चाबंदी कर रहे हैं, घायल कर रहे हैं तो इसका गहराई से विश्लेषण करना होगा। 
 
ऐसी घटना को हम सामान्य राजनीतिक और दलीय चश्मे से देखेंगे तो भविष्य में होने वाले भयावह परिणामों के भागीदार बनेंगे। सच को सच के रूप में समझ कर स्पष्ट न बोला जाए तो परिणाम सतत भयावह से भयावहतम की ओर बढ़ेंगे। सामान्य सामाजिक व्यवहार की दृष्टि से देखें तो इस हिंसा का कोई कारण नहीं था। कोई समूह किसी विषय पर लोकतांत्रिक तरीके से विरोध प्रदर्शन कर रहा है तो उसे मजहब विरोधी कार्रवाई मानकर हमले की व्याख्या कैसे की जाएगी? 
 
साफ है कि ऐसा कुछ जलाया ही नहीं गया जिसका प्रचार किया गया। असदुद्दीन ओवैसी ने बयान दिया कि हरे कपड़े पर पवित्र पाक कुरान शरीफ की आयतें लिखकर जलाई गई है। इस तरह के अफवाह फैलाने वाले कौन हो सकते हैं? भारी संख्या में सोशल मीडिया अकाउंट बंद किए गए हैं और उनके आधार पर लोगों की गिरफ्तारियां हुई है। मानकर चलना चाहिए कि प्रदेश सरकार या अगर जांच केंद्रीय एजेंसी को दी जाती है तो केंद्र दोषियों को अंतिम सीमा तक दंड दिलाएगा। 
 
केवल दंड दिलाने से ऐसी समस्याओं का निदान नहीं हो सकता। विचार करने वाली बात है कि पूरे देश में जगह-जगह इस तरह की हिंसा के पैटर्न क्यों पैदा हो रहे हैं?  इतने ईंट, पत्थर, पेट्रोल बम आदि तत्काल पैदा नहीं हो सकते। इसकी पूरी तैयारी करनी होती है। हाल में महू, संभल से लेकर नागपुर तक मोटा-मोटी एक ही तरह का पैटर्न देखा जिसमें हमलावर पूरी तरह तैयार थे तथा सबके पास हमले की पर्याप्त सामग्रियां थीं। कोई औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग कर रहा है तो उससे इतनी संख्या में किसी समुदाय के लोगों के अंदर गुस्सा क्यों पैदा हो गई? 
 
औरंगजेब जैसे आततायी, धर्मांध, बुरे शासक के लिए उसकी मृत्यु के 300 से ज्यादा वर्षों बाद इतने लोगों के अंदर उसे अपना या इस्लाम का आदर्श मानने की इतनी संवेगी भावना कि मरने-मारने को उतारू हो जाएं कैसे पैदा हो गई? पहले भी सोशल मीडिया पर औरंगजेब का महिमामंडन कर हिंसा फैलाने की कोशिश की गई है। केवल औरंगजेब नहीं, महमूद गजनवी और उसके भांजे सालार मसूद तक के प्रति इतना समर्थन कैसे कि उन पर प्रश्न उठाने के विरुद्ध खुलेआम बयानबाजी और हिंसा तक की घटनाएं हो रही हैं? 
 
क्या कल कोई नादिर शाह और अहमदशाह अब्दली को भी इस्लाम का ध्वजवाहक मानकर लड़ना शुरू कर देगा? कल्पना करिए कि कोई जनरल डायर, लॉर्ड क्लाइव आदि के पक्ष में खड़ा हो तो देश उसे किस दृष्टि से दिखेगा? यही दृष्टि औरंगजेब, महमूद गजनवी, सालार मसूद गाजी जैसों के प्रति क्यों नहीं पैदा होती? 
 
यह विचारधारा है जिसमें इस्लाम के नाम पर काफिरों या विरोधियों के विरुद्ध अत्याचार, पवित्रतम स्थलों को ध्वस्त कर इस्लामी ढांचा खड़ा करना सही माना जाता है। इस्लाम को उच्च तथा काफिरों या विरोधियों के साथ बुरे व्यवहार की विचारधारा को व्यापक स्वीकृति मिलती दिख रही है।
 
यही आचरण दुनिया में आतंकवाद और अन्य प्रकार की हिंसा का है। भारत विभाजन के पीछे भी यही था। इसलिए दलीय बयानबाजी द्वारा ऐसे तत्वों को परोक्ष समर्थन देना इनको हिंसा के लिए प्रोत्साहित करना है जो भविष्य में आत्मघाती साबित होगा।

शिवसेना नेता संजय राऊत का बयान देखिए, 'नागपुर में हिंसा होने का कोई कारण नहीं है। यहीं पर आरएसएस का मुख्यालय है। यह देवेंद्र जी का निर्वाचन क्षेत्र भी है। यहां हिंसा फैलाने की हिम्मत कौन कर सकता है? हिंदुओं को डराने, अपने ही लोगों से उन पर हमला करवाने और फिर उन्हें भड़काकर दंगों में शामिल करने का यह एक नया पैटर्न है।' 
 
हिंसा कौन कर रहे थे साफ दिख रहा है और संजय राऊत को भाजपा और संघ दोषी नजर आ रहा है। इसी समय बेंगलुरु में संघ की प्रतिनिधि सभा से अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील अंबेकर का बयान है कि औरंगजेब अप्रासंगिक है और हिंसा अनुचित। सामना के संपादकीय में औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग करने वालों को हिंदू तालिबान कहा गया। लिखा गया कि औरंगजेब की कब्र मराठों और शिवाजी के शौर्य का प्रतीक है और उसे खत्म करने की मांग करने वाले इतिहास को समझने की कोशिश नहीं कर रहे। 
 
जब अबू आजमी ने औरंगजेब को महान शासक बताया तो अखिलेश यादव ने एक्स पर सच्चाई छुप नहीं सकती जैसे पोस्ट कर दिया। संसद के अंदर और बाहर सारा विपक्ष हमलावरों की आलोचना की जगह केवल प्रदेश और केंद्र की भाजपा सरकार को घेरने पर लगा रहा। भाजपा की आलोचना और विरोध करिए किंतु इतने बड़े खतरे की अनदेखी कर आप कैसे तत्वों को प्रोत्साहित कर रहे हैं, इसका परिणाम क्या होगा इन पर अवश्य विचार कर लीजिए।

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

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