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हिन्दू धर्म-आस्था एवं प्रतीकों को अपमानित करने की छूट क्यों?

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कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल

सिनेमा का समाज में व्यापक प्रभाव होता है। दृश्य एवं चलचित्र व्यक्ति के मनोमस्तिष्क में गहरे पैठ बनाने में सशक्त होते हैं। सृजनात्मकता, सकारात्मकता एवं विकृतियों पर प्रहार तथा सभ्य सामाजिक तरीके से स्वस्थ मनोरंजक शैली में संवेदनात्मक सन्देश प्रसारित करना सिनेमा का नैतिक उद्देश्य होता है।

भारतीय सिनेमा अपने प्रारंभिक दौर में इन्हीं मानकों पर चलता रहा,जब सामाजिक-राजनैतिक मुद्दों के साथ आम जनजीवन को दृश्य पटल पर उकेरने के लिए फिल्मों, धारावाहिकों का निर्माण होता था। धीरे-धीरे भारतीय सिनेमा एजेंडा-अर्थतंत्र पर अवलम्बित होकर नैतिकता, मूल्यों की तिलांजलि, अश्लीलता, फूहड़ता,अपशब्द, विद्वेष को परोसकर करोड़ों पैसे वसूलने के साथ-साथ समाज में विभिन्न विकृतियों को परोसने में अपनी भूमिका निभाई।

केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड जैसी नियामक संस्थाएा केवल औपचारिकताओं की खानापूर्ति का माध्यम बनकर रह गईं। सेंसरशिप कागजी शब्दावली का एक शब्द बन कर रह गया तथा सेक्युलरिज्म, अभिव्यक्ति की आड़ लेकर व्यापक पैमाने पर सिनेमा के माध्यम से हिन्दू धर्म, धार्मिक प्रतीकों,भगवान, पूजा पध्दति, आस्था, हिन्दू ऐतिहासिक वीर नायक /नायिकाओं के विरूध्द विधिवत षड्यंत्र के तहत फिल्मों व धारावाहिकों,कॉमेडी का निर्माण किया जाने लगा।

वर्तमान में सेंसर बोर्ड या अन्य नियामक संस्थाओं की कानूनी औपचारिक बाध्यताओं से स्वतंत्र- ओटीटी प्लेटफार्म एक ऐसे अड्डे एवं हथियार के रुप में उभरा है जिसमें वेबसीरीज के माध्यम से हिन्दू विरोध, देवी देवताओं एवं धर्म को अपमानित करने की खेप पर खेप इन्टरनेट के माध्यम से लगातार पहुंचाई जा रही है।

हिन्दू धर्म से नफरत करने वाले फिल्म निर्माता- निर्देशक-पटकथा लेखक इस बेलगाम अनियंत्रित प्लेटफार्म के द्वारा लगातार ऐसी वेबसीरीज बनाकर परोस रहे हैं जिनके निशाने पर सिर्फ़ और सिर्फ़ हिन्दू धर्म एवं उसकी आस्था,धार्मिक स्थल व प्रतीक हैं।

इन सभी का तंत्र बेहद शातिर है, जो जानबूझकर हिन्दू धर्म की आस्था एवं भावनाओं से खिलवाड़, अपमानित करता है। इनमें बौध्दिक व अर्बन नक्सली, अकादमिक लफ्फाज,छद्म पत्रकार, राजनैतिक तोपची,देशद्रोही वामपंथियों का गिरोह व विभिन्न माफियाओं समेत भारत विरोधी अराजक तत्वों की गैंग शामिल है जो विविध तरीके से एक-दूसरे के लिए माहौल निर्मित करती है। हिन्दू धर्म विरोध, अपमान के पीछे इनकी वही नफरत है जो इनके विभिन्न कार्यकलापों, बयानों से प्रायः सामने आती रहती है। हिन्दू धर्म व उसकी व्यवस्था तथा आस्था इनके लिए आसान सा लक्ष्य है,क्योंकि इन्हें यह बखूबी पता होता है कि हिन्दू अपने धर्म, आस्था के प्रति उतना दृढ़ नहीं है और मुंहतोड़ जवाब नहीं देता है। साथ ही जो इनके कुकृत्यों के विरोध में आता है उसे ये अपने 'अभिव्यक्ति' शब्द के जुमले से ढंकने का प्रयास करते हैं।

इन फिल्म निर्माताओं, पटकथा लेखकों, फिल्म निर्देशकों, प्रसारणकर्ताओं का जो तंत्र होता है वह एक वैचारिकी के घेरे से बंधा हुआ व इन्हीं लक्ष्यों को प्रसारित करने के उद्देश्य के लिए ही सिनेमा में आया हुआ है कि- उन्हें हर हाल में 'हिन्दू-हिन्दुत्व' के विरोध,धार्मिक आस्था को चोट पहुंचाने के लिए काम करना है, जिसे वे सिनेमा के माध्यम से आसानी के साथ साध लेते हैं।

चाहे फिल्मों के नाम हों याकि उसके दृश्य, धारावाहिक, कॉमेडी, वेबसीरीज या अन्य दृश्य सामग्री जिन्हें विवादित कहा गया हो तथा जिन पर समाज ने आपत्ति दर्ज करवाकर विरोध किया हो। उन सभी का गहराई से विश्लेषण करने पर सबके मूल में एक बात ही सामने आती है कि फिल्म निर्माता,निर्देशकों ने इसके पीछे खास रणनीति के तहत काम किया है।

वे जानबूझकर ऐसे नाम, दृश्य, डॉयलॉग इत्यादि उसमें सम्मिलित करते हैं जिससे 'विवाद' की स्थिति निर्मित हो। अब ऐसा करने के पीछे यही है कि प्रथमतः वह विवाद के द्वारा अपनी फिल्म, सीरीज का बिना पैसे के प्रचार प्रसार कर लेते हैं। दूसरा यह कि जिस विशेष उद्देश्य के अन्तर्गत उन्होने फिल्म,धारावाहिक, वेबसीरीज में जानबूझकर 'विवादित' चीजें जोड़ी हैं। उन सबको व्यापक स्तर पर फैलाने में भी सफल हो जाते हैं। क्योंकि जब कोई चीज चर्चा में होती है तब लोग जिज्ञासावश उसे देखते हैं कि-आखिर! इस फिल्म या धारावाहिक में ऐसा क्या है कि जिससे इतना बवाल मचा हुआ है। बस यहीं से वे अपने उद्देश्य में सफल हो जाते हैं। मुफ्त में उनकी फिल्म, धारावाहिक, वेबसीरीज का प्रचार और उनका कुत्सित मंसूबा दोंनों एक साथ सध जाते हैं।

इसके साथ जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य है वह यह कि इन फिल्म या धारावाहिक, वेबसीरीज निर्माताओं द्वारा विवाद उत्पन्न करने के उपरांत शाब्दिक भ्रमजाल के सहारे 'माफीनामा' व फिल्म, वेबसीरीज के टाईटल, दृश्य, डॉयलॉग में मामूली फेरबदल कर बड़ी ही चतुराई के साथ अपना दामन बचा लेने में सफल हो जाते हैं। उनकी हिन्दू विरोधी मानसिकता से भरी 'फिल्म और नैरेटिव' दोनों हिट हो जाते हैं और वे आर्थिक वारा-न्यारा करने के साथ-साथ हिन्दू भावनाओं को आहत कर मदमस्त रहते हैं।

हिन्दू समझते हैं कि विरोध करके उन्हें आर्थिक नुकसान पहुंचा दिया याकि विजय हासिल कर ली है,जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। क्योंकि इसके पीछे उनका तंत्र है जिसे फिल्म, वेबसीरीज हिट या फ्लाफ होने से नहीं बल्कि 'हिन्दू विरोध', धार्मिक भावनाओं को आहत करने के उद्देश्य की सफलता से मतलब है। इसके लिए उन्हें चाहे जैसा भी तरीका अपनाना पड़े, उसे वे अपनाते हैं। इसके बदले में उन्हे करोड़ों रुपयों की फण्डिंग करने वाले देश व विदेशों में बैठे हुए देशद्रोहियों सहित भारतीय संस्कृति को विकृत करने वाले कई बड़े गिरोहों के चेहरे व अपराधिक पृष्ठभूमि से जुड़े हुए लोग शामिल होते हैं।

इन सबमें बचकाने तर्क के लिए वे केवल 'कला की रचनात्मक अभिव्यक्ति' का अपना चिर परिचित जुमला पेश करते हैं। बड़े आश्चर्य की बात है कि यह सब पैंतरे केवल हिन्दू धर्म के लिए ही हैं। इनकी रचनात्मकता अन्य मजहबों ,धर्मों की विसंगतियों या उनके धार्मिक प्रतीकों, प्रवर्तकों, धार्मिक स्थलों पर अपनी हुनरबाजी दिखलाने में कभी नहीं दिखती? क्यों भाई क्यों? क्या सारी रचनात्मकता स्वंतत्रता केवल हिन्दू धर्म के लिए ही है? याकि इनकी अन्तरात्मा व वह कलाकार तब मर जाता है जबकि इन्हें अन्य धर्मों या उससे सम्बंधित किसी भी पात्र, स्थल, घटना का चित्रण करना पड़ जाए? सारी रचनात्मकता का भार हिन्दू धर्म के सिर पर ही क्यों?क्या हिन्दू धर्म के विरूद्ध यह एक रणनीतिक षड्यंत्र नहीं है?

इन सिनेमाई फनकारों के फन इतिहास के उस रक्तिम अध्याय को क्यों नहीं पलटते कि कैसे बर्बर अरबी, तुर्क, मुगल लुटेरों ने भारत की भूमि को इस्लाम के नाम पर लहुलुहान किया और इस्लामी तलवारों ने यहाँ की सभ्यता, संस्कृति को नष्ट कर मन्दिरों को क्षत विक्षत किया, बलात्कार, धर्मपरिवर्तन व क्रूरताओं से समूची मानवता को शर्मसार किया। उनके अन्दर का कला पारखी या पटकथा लेखक क्या -कश्मीर, बंगाल, मोपला, पाकिस्तान विभाजन जैसे नरसंहार,दिल्ली दंगे,संसद में हमले,ताज होटल हमले या विश्व को आतंकवाद से त्रस्त करने वाले उन नारों, इस्लामिक राज्य की स्थापना की चिंघाड़,लवजिहाद, कोरोना के समय डाक्टरों नर्सों से अभद्रता करने वालों, आन्ध्रप्रदेश में भगवान की मूर्तियों को तोड़ने वालों, लव जिहाद के बाद हत्या व अन्य ऐसी ही किसी क्रूरतम् घटना याकि वामपंथियों की हिंसा,मिशनरियों के द्वारा चलाए जा रहे धर्म परिवर्तन जैसे किसी भी विषय पर फिल्म या वेबसीरीज बनाने की हिम्मत जुटा सके।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सेक्युलरिज्म, कला का मतलब क्या केवल हिन्दू विरोध, भारत विरोध है? जितनी आसानी से हिन्दू धर्म को निशाना बनाकर उसके देवी देवताओं, पूजास्थलों की गरिमा, आस्था को ठेस पहुंचाने के बाद भी ठेठी दिखलाते हैं। क्या उतनी ही आसानी से अन्य धर्मों पर भी ऐसा कुछ बना लेने का साहस होगा? यदि हिन्दू इस पर प्रतिकार करने उठता है तो वह असहिष्णु हो जाता है। इस देश में गजब का तमाशा चल रहा है एक तो हिन्दू धर्म से घ्रणा कर उसके धर्म पर विमर्श या कला के नाम पर अनर्गल टीका, टिप्पणी, फिल्म, वेबसीरीज बनाकर अपमानित करना और दूजा कि वह चुपचाप सबकुछ बैठकर सहता रहा आए। क्यों भाई तथाकथित ठेकेदारों क्यों? इतनी नफरत और घ्रणा क्यों? क्या हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं,धर्म का कोई भी स्थान नहीं है? कला के नाम पर एकतरफा एजेंडा किसलिए? केवल यही न कि 'हिन्दू -हिन्दुत्व' विरोध?

हमारी शासन सत्ताओं को तो 'सेक्युलरिज्म' का ऐसा नशा चढ़ा है कि इसका अर्थ ही उन्होंने 'हिन्दू धर्म' के अलावा सबको अपनी परिभाषा में रख लिया है। हिन्दू धर्म,धार्मिक प्रतीकों,देवी-देवताओं, परंपराओं, मन्दिर, पूजा पध्दति को चाहे कोई भी आहत, अपमानित करे, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से लेकर इस क्षेत्र को नियंत्रण में रखने वाली विभिन्न एजेंसियों, अधिकारियों को कभी इस बात से फर्क ही न पड़ता कि 'हिन्दू धर्म' की आस्था एवं उनकी भावनाओं के आदर को बनाए रखने की भी कोई जरूरत है।

शासनतंत्र उसके अधिकारी क्या इतने पंगु एवं अन्धें -बहरे हैं कि उन्हें कुछ भी दिखाई और सुनाई नहीं देता है? यह आखिर कब तक चलेगा? हिन्दुओं के इस देश में हिन्दुओं के साथ शासन,सत्ता का यह दोहरा रवैय्या कब तक? अपने ही देश में अपनी ही सरकार के सामने हिन्दू समाज इतना बेबस एवं लाचार क्यों है कि कोई भी दो कौड़ी का फिल्म निर्माता-निर्देशक-लेखक ताल ठोंककर हिन्दुओं के धार्मिक विश्वासों ,देवी देवताओं के खिलाफ अभद्र,अपमानजनक, अश्लील ,सिनेमा सामग्री का निर्माण कर उसे प्रसारित कर लेता है और हिन्दू समाज कुछ भी नहीं कर पाता?क्यों आखिर क्यों? यह छूट क्यों और कब तक चलेगी?

हालांकि पिछले कई वर्षों से हिन्दू समाज इस पर जाग उठा है और उसने अकादमिक, सिनेमाई षड्यंत्र को समझकर प्रतिकार करने का साहस जुटाया है,लेकिन इस साहस में स्थायी उबाल व दृढ़ता नहीं दिखती।यदि धर्म की रक्षा करनी है तो इन सबकी जड़ों में प्रहार करना होगा अन्यथा ये सिनेमाई विधर्मी इसी तरह से अपमानित एवं आस्था से खिलवाड़ करते रहेंगे। यदि धार्मिक भावनाओं को आहत करने एवं हिन्दू धर्म के विरोध में बनाई गई फिल्मों, धारावाहिकों, वेबसीरीज के निर्माता, निर्देशक,लेखक, अभिनय टीम के विरूद्ध हिन्दू समाज समूचे देश में मुकदमे दर्ज करवा कर कानूनी कार्रवाई करवाने का अभूतपूर्व साहस दिखलाने के साथ ही राजनैतिक हुक्मरानों की कॉलर पकड़कर उनकी जवाबदेही तय करवाने का काम करते तो किसी की इतनी मजाल ही न होती कि वह हिन्दू धर्म को अपमानित कर सके। शासन ,सत्ता तो अपनी जिम्मेदारी समझने से रहे लेकिन यदि हिन्दू समाज नहीं जागता व शासन, सत्ता से यह निर्णय नहीं करवा पाता कि जो भी तत्व उसकी धार्मिक भावनाओं, आस्था से खिलवाड़ करेंगे। उन पर विधिवत दण्डात्मक कार्रवाई होगी। तब तक हिन्दू धर्म को सिनेमाई विधर्मी अपमानित करने व घ्रणा फैलाने में सफल होते रहेंगे।

(इस आलेख में व्‍यक्‍त विचार और अभिव्‍यक्‍ति लेखक की निजी अनुभूति है, वेबदुनिया का इससे कोई संबंध नहीं है)

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