Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

स्वागत, खिलाड़ी की तरह हो लड़की होने की वजह से नहीं...

हमें फॉलो करें स्वागत, खिलाड़ी की तरह हो लड़की होने की वजह से नहीं...
webdunia

प्रज्ञा मिश्रा

रियो ओलंपिक्स समाप्त हुआ और भारत का खाता भी खुला .... साक्षी और पी वी सिंधु की जितनी तारीफ़ हो कम है। पहले दीपा करमाकर के शानदार प्रदर्शन के बाद दिल को बहलाने का खिलौना तो मिल ही गया था। और अब तो हर तरफ सिवाय लड़कियों की तारीफ़ के और कुछ बात ही नहीं है। ... बहुत ख़ुशी की बात है कि हरियाणा, त्रिपुरा से आई लड़कियों ने पूरी दुनिया के सामने देश का नाम चमकाया।  लेकिन क्या सिर्फ उन्हें एक खिलाड़ी़ मान कर, अपने खेल में माहिर मान कर उनकी तारीफ़ नहीं होना चाहिए? 
पिछले कुछ दिनों से इन मैडल जीती लड़कियों को देश की बेटी कहने में सबका सीना 56 इंच का हो रहा है लेकिन वही 56 इंच की छाती वाले प्रधानमंत्री कहते हैं कि अगर बेटी पैदा हो तो एक पेड़ लगाओ ताकि उसके दहेज़ का इंतज़ाम हो सके। ... वो यह नहीं कह पाते कि बेटी पैदा हो या बेटा पेड़ लगाओ और उन्हें खुद अपनी शादी का इंतेज़ाम करने लायक बनाओ।  
 
शोभा डे ने रियो ओलंपिक्स में गए खिलाड़ियों पर एक बात क्या कही लोग यूं पिल पड़े जैसे कि गौ माता का मामला हो। शोभा डे की बात भले ही कुछ तल्ख़ और कड़वी थी और यह एक बिलकुल ही अलग मुद्दा है कि दुनिया में दूसरे नम्बर की आबादी वाला देश होने के बावजूद हमारे देश में खिलाड़ी न के बराबर है। अभी तो बात है लड़कियों पर गर्व करने की, उनको बढ़ावा देने की। ... क्या सिर्फ पदक लाना ही आगे बढ़ने की निशानी है ?? अगर शोभा डे ने अपने मन की बात कही तो भी एक महिला की ही हिम्मत है। .. क्या बोलने की आज़ादी सोचने की आज़ादी उतनी ही जरूरी नहीं है जितनी की खेलने की या किसी और बात की ?? इन लड़कियों और उनके परिवार को वाकई बधाई देना चाहिए कि वो इस मुकाम तक पहुंचने की हिम्मत दिखा पाए। ... वरना तो अपनी गली में घूमना भी लड़की के लिए मुहाल है। ...
 
हर साल की तरह इस साल भी कई लोगों ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को राखियां बांधी। .. आखिर क्यों ?? राखी का त्योहार भाई बहन के बीच का त्योहार है,किसी भी तरह से नरेंद्र मोदी या प्रणव मुखर्जी इन स्कूली बच्चों और महिला संगठन की सदस्यों के भाई नज़र नहीं आते हैं। ... लेकिन इस सबके पीछे फकत एक ही कारण है कि आज भी अपने ही देश में अपने ही घर में बेटी-बहन महफूज़ नहीं है। .. मुख्यमंत्री भले ही मामा बन गए हों लेकिन मध्यप्रदेश में ही महिलाओं के खिलाफ अपराध कम नहीं हुए हैं। ... 
ऐसे में कोफ़्त होती है यह सोच कर जब यह खिलाडी रियो से वापस लौटें तो यही नेता इन लड़कियों को देश की बेटी बता कर सम्मान कर रहे हैं। .... 
 
इन खिलाडियों ने बहुत सी मुश्किलों का सामना किया होगा और वो मुश्किलें भी अपनों की ही दी हुई होंगी,  जिनमें घर के लोगों से लेकर मोहल्ले और आस पड़ोस वाले सब शामिल होंगे। .धूप में खेलने से काली हो जाने के डर से लेकर कैसे कपडे पहन कर खेलती है सारी बातें शामिल होंगी। इनका स्वागत शानदार खिलाडी की तरह ही होना चाहिए न कि हम लड़कियों को माता बना कर पूजते हैं उस तरह से। बेटी को सिर्फ बेटी होने देना ही जरूरी है। न उसे बेटा जैसा मानने की जरूरत है न उसे माता बनाने की। और फिर वो चाहे तो ओलंपिक्स में खेले या किताबें लिखें। .......
 


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

रियो ओलंपिक्स में रिफ्यूजी : छोटी सी आशा