When does a will take effect: हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में प्रावधान किया गया है कि किसी व्यक्ति के पास कोई ऐसी संपत्ति है जो उसने खुद अर्जित की है तो वह व्यक्ति इस संपत्ति को अपने जीवनकाल में किसी भी व्यक्ति को दान कर सकता है। व्यक्ति अपने जीवनकाल में इस संपत्ति के संबंध में वसीयत भी कर सकता है।
वसीयत हमेशा वसीयत करने वाले व्यक्ति को मृत्यु के बाद प्रभावी होती है। यह आवश्यक नहीं है कि वसीयत उत्तराधिकारियों के नाम से ही की जाए। अगर स्वयं के द्वारा अर्जित संपत्ति है तो व्यक्ति अपने जीवनकाल में उस संपत्ति को किसी के नाम से भी कर सकता है। यह भी जरूरी नहीं है कि जिसके नाम संपत्ति की वसीयत की जाए वह उस व्यक्ति का सगा संबंधी हो।
अगर किसी व्यक्ति की वसीयत किए बगैर मृत्यु हो जाती है तो ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति के जितने भी वैध उत्तराधिकारी हैं वे उस संपत्ति में बराबर भाग में हिस्सा पाने के अधिकारी हो जाते हैं। एक महत्वपूर्ण प्रावधान है कि अगर संपत्ति का वैध वारिस उस संपत्ति को प्राप्त करने के उद्देश्य से संपत्ति मालिक की हत्या कर देता है या हत्या करने में दुष्प्रेरण करता है तो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए उस व्यक्ति को संपत्ति के अधिकार से मुक्त कर दिया जाता है, लेकिन उसकी संतान को संपत्ति पाने का अधिकार होता है।
देखने में आता है कि कई बार वैध वारिस जल्द से जल्द संपत्ति प्राप्त करने के उद्देश्य से जिसके नाम संपत्ति है, आपराधिक षड्यंत्र कर उसको हत्या कर देते हैं या करवा देते हैं। प्रविधान के अनुसार ऐसे कृत्य में शामिल व्यक्ति को संपत्ति प्राप्त करने का कोई अधिकार नहीं रहता। पूर्व में धारणा थी कि जो व्यक्ति विक्षिप्त है उसे संपत्ति के अधिकार से बेदखल कर दिया जाता था, लेकिन प्रविधान किया गया है कि विक्षिप्त व्यक्ति भी संपत्ति में अपने अधिकार पाने का अधिकारी होता है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर कोई व्यक्ति हिंदू धर्म छोड़कर किसी अन्य धर्म को स्वोकार कर लेता है तो उसको होने वाली संतानें संपत्ति में वैध वारिस नहीं होती हैं। धर्म बदलने वाले व्यक्ति का संपत्ति में अधिकार तो रहता है, लेकिन उसकी संतानों का अधिकार समाप्त हो जाता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में पुत्र और पुत्री दोनों को समान रूप से सम्पत्ति पाने का अधिकारी माना गया है। (लेखक हाईकोर्ट एडवोकेट हैं)