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तब जब चिट्ठी में दिखता था चेहरा

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गिरीश पांडेय

World of letters : तब चिट्ठी में लिखने वाले का चेहरा दिखता था। पिता की चिट्ठी हौसला देती थी। मां तो चंद शब्दों में अपनी पूरी ममता उड़ेल देती थी। अगर न लिख पाए तो पिता का सिर्फ यह लिखना कि, 'आपकी अम्मा की ओर से भी ढेर सारा प्यार' इतने में ही आप उसकी ममता में सराबोर हो जाते थे। सुबह सुबह किसी खास की चिट्ठी आने से पूरा दिन बन जाता था।
 
उनकी चिट्ठी लिखते, खोलते और पढ़ते वक्त बढ़ जाती थीं धड़कनें : चिट्ठी अगर प्रेमी या प्रेमिका की है तो लिखने, खोलने और पढ़ने में दिल की धड़कनें बढ़ जाती थीं। कुछ लोग तो एक अदद चिट्ठी में अपना पूरा अतीत याद कर लेते थे और चाहने वालों को याद भी दिला देते थे। इसके लिए शब्द होता था, 'गांव, गाड़ा के सभी बड़ों को प्रणाम और छोटों को प्यार'।
 
क्षमा मांगना, बड़े बुजुर्गों का खयाल रखना भी सिखाती थी चिट्ठियां : हर चिट्ठी क्षमा मांगना सिखाती थी। बदला लेने के दौर में लोग इस महान गुण को भूल ही गए हैं, पर हर चिट्ठी के अंत में अमूमन यह लिखा ही रहता था, कोई गलती, भूल चूक हो तो उसके लिए माफी। यही नहीं चिट्ठी यह भी बताती थी कि घर के बड़ों का ख्याल रखना अगली पीढ़ी की जवाबदेही है। इसीलिए आदेश मानिए या अनुरोध, अम्मा, बाबूजी, बाबा, अइया, काका, काकी, बड़के बाबूजी और ताई का खयाल रखना।
 
थोड़े में बहुत कुछ कह जाती थी चिट्ठियां : लिफाफे से अधिक पोस्टकार्ड और अंतरदेशी का चलन था। दोनों में लिखने की एक सीमा होती थी। इसीलिए खत के अंत में अमूमन लिखा जाता था, थोड़ा लिखना अधिक समझना।

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