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ये किस विमर्श ने कह दिया कि हर पुरुष बुरा होता है, और हर स्त्री देवी?

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गरिमा संजय दुबे

(अंतरराष्‍ट्रीय पुरुष दिवस पर विशेष)
बिना किसी अपेक्षा के अपने कर्तव्यों की पूर्ति में लगे रहने की शक्ति आपको सदा दे, क्योंकि कुड़ियों का है जमाना, जानती हूं हाशिए पर धकेल दिए जाते हैं आप, नहीं हो पाते मुखर, किंतु आप भी इस सृष्टि का उतना ही महत्वपूर्ण तत्व हैं जितनी स्त्री।

कुछ बुरे लोगों के कारण सब बुरे ठहरा दिए जाते हैं। उन पुरुषों को बहुत शुभकामना जो सहायक हैं, भावुक हैं, परिवार की रीढ़ हैं, जो पिता, बेटे, पति, भाई, दोस्त, प्रेमी, सखा बन स्त्रियों के जीवन की कठिनाई समझ उनके साथ चले हैं, सहयोगी रहे हैं।

यह कहना बहुत अन्याय होगा कि हर पुरुष अत्याचारी है, शोषक है, वह पीड़ित भी, जितने दबाव स्त्रियों के लिए हैं, कुछ कम सही किंतु दबाव उन पर भी बहुत हैं। स्त्रियां न कमाए, न करे घर का कोई काम उसे स्त्री की मर्जी, उसकी स्वतन्त्रता मान स्वीकार किया जा सकता है, किसी पुरुष के नौकरी न करने को, परिवार की जिम्मेदारी न उठाने को उसकी स्वतंत्रता या इच्छा नहीं माना जाता, मत कमाऊ, नालायक, गैर जिम्मेदार कहा जाता है, वह बहुत अच्छा भी हो तो भी कोई लड़की किसी बेरोजगार, कम कमाई वाले लड़के से ब्याह नहीं करेगी।

अर्थ उपार्जन की राह के तमाम तनाव के बीच भी अपने लिए कुछ नहीं चाहने वाले स्नेहिल लोग भी तो हैं,  परिवार माता पिता, बच्चों, बहनों की जिम्मेदारी उठाता, महिलाओं के प्रति सम्मान से भरा पुरुष, कभी अपनी पीड़ा कहीं कह ही नहीं पाता।

जाने कौन से विमर्श ने यह कह दिया कि हर पुरुष बुरा होता है, और हर स्त्री देवी। हर पुरुष शोषक होता है, और हर स्त्री पीड़ित। पीड़ा को शोषण को लिंग सापेक्ष जाने कौन से भ्रमित विमर्श ने बना दिया। जेंडर बायस तोड़ना स्त्रियों की ज़िम्मेदारी भी है, नारीवाद स्वअस्तित्व नहीं सह अस्तित्व का हामी है। सभी पुरुषों को पुरूष दिवस की बधाई शुभकामनाएं।
Edited by navin rangiyal

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