साल 1996 में जब गांव का डाकिया उनके सेना में भर्ती होने का लेटर लेकर आया तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था, उन्होंने खुशी-खुशी पिता का आशीर्वाद लिया और ट्रेनिंग के लिए निकल गए।
कारगिल वॉर में उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के 19 साल के एक लड़के ने ऐसा पराक्रम दिखाया कि आज भी सुनकर दुश्मनों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं और भारतीय सेना का सिर गर्व से ऊंचा उठ जाता है।
यह गौरव गाथा है 19 साल के यानी सबसे कम उम्र में परमवीर चक्र हासिल करने वाले नायाब सबूदार योगेंद्र सिंह यादव की।
सूबेदार योगेन्द्र सिंह यादव को कारगिल युद्ध के दौरान टाइगर हिल के बेहद अहम दुश्मन के तीन बंकरों पर कब्ज़ा जमाने का जिम्मा सौंपा गया था।
योगेंद्र सिंह यादव का जन्म 10 मई 1980 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में स्थित सिकंदराबाद के अहीर गांव में हुआ था। उनके पिता करण सिंह यादव ने 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धों में भाग लिया था, वे कुमाऊं रेजीमेंट में थे। योगेंद्र यादव जब सेना में शामिल हुए तो उनकी उम्र महज 16 साल थी।
1996 में जब गांव का डाकिया उनके सेना में भर्ती होने का लेटर लेकर आया तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था।
मिलिट्री ट्रेनिंग के कुछ साल बाद 1999 में ही योगेन्द्र शादी के बंधन में बंधे थे। नई दुल्हन के साथ उन्हें 15 दिन ही हुए थे कि तभी सेना मुख्यालय से एक आदेश आया। जिसमें लिखा था आपको तुरंत अपना सामान पैक करके कारगिल पहुंचना है। यह निर्णय उनके लिए आसान नहीं था, लेकिन देश के लिए लड़ने का मौका भी छोड़ना नहीं चाहते थे।
जब वे जम्मू कश्मीर पहुंचे तो उन्हें पता चला कि उनकी बटालियन 18 ग्रिनेडियर द्रास सेक्टर की सबसे ऊंची पहाड़ी तोलोलिंग पर लड़ाई लड़ रही है। उन्होंने पहाड़ी पर चढ़ना शुरू ही किया था कि दुश्मनों ने अंधाधुंध गोलियां दागना शुरु कर दी। हमले में उनके कई साथी शहीद हो गए। वे रुकना चाहते थे, लेकिन चारों तरफ से इतना गोला-बारुद बरस रहा था कि अपने साथियों के शवों को देखने का भी समय नहीं था। धुंआधार लड़ाई के बीच उन्हें एक खड़ी चट्टान की मदद से ऊपर जाना था।
कुछ घंटों में ही वे वहां तक पहुंचने में कामयाब रहे। चोटी पर पहुंचते ही उन्होंने दुश्मनों पर धावा बोल दिया और कई बंकरों को तबाह कर दिया। दूसरी तरफ से ग्रेनेड फेंके जा रहे थे। इस गोलाबारी में भारतीय सेना के कई सैनिक शहीद हो गए। योगेन्द्र की टुकड़ी में बहुत कम लोग बचे थे, इसलिए तय किया गया कि फायरिंग नहीं करेंगे और सही समय का इंतजार करेंगे।
दुश्मनों को लगा कि योगेन्द्र की पूरी टीम खत्म हो गई है तो वह थोड़े सुस्त हो गए। वे यही देखने के लिए आगे बढ़ रहे थे ठीक इसी वक्त योगेन्द्र समेत सभी भारतीय सैनिकों ने दुश्मन पर हमला कर दिया। इसमें कई पाकिस्तानी ढेर हो गए। एक बचे हुए दुश्मन ने भारतीय टुकड़ी की जानकारी दुश्मन को दे दी।
लेकिन योगेंद्र आगे बढते रहे। वे बुरी तरह घायल हो चुके थे। उनका शरीर खून से लथपथ था और एक पैर टूट चुका था। जब दुश्मन सेना उनके पास पहुंची तो उन्होंने मरने का नाटक किया, जैसे ही पाकिस्तानी रिलेक्स हुए योगेंद्र सिंह ने हमला कर दिया। मशीनगन, हैंड ग्रैनेड जो हाथ लगा उससे हमला करते चले गए। इस दौरान उनके सीने में करीब 15 गोलियां धंस चुकी थी। उन्हें लग रहा था कि उनके पास बेहद कम समय बचा है यही सोचकर वे दुश्मनों को गिराते जा रहे थे। योगेंद्र के हमले में कई पाकिस्तानी सैनिक ढेर हो गए।
भारतीय सैनिक समझ रहे थे कि वे शहीद हो चुके हैं, लेकिन जब दूसरी तरफ से गोलाबारी की आवाजें कम हुई तो वे पहाड़ी से खिसककर नीचे आ गए। नीचे उनकी हालत देखकर पूरी भारतीय टुकड़ी हैरान थी। अस्पताल ले जाने से पहले उन्होंने पाकिस्तानी सेना की संख्या,लोकेशन और रणनीति समेत कई जानकारियां अपने साथियों को दीं, जिसके बाद भारतीय टुकड़ी ने पाकिस्तानियों पर हमला कर टाइगर हिल पर तिरंगा फहरा दिया।
युद्ध में योगेंद्र इतने ज्यादा घायल हो चुके थे कि उन्हें ठीक होने में कई महीने लग गए। ठीक होने के बाद उन्होंने 18 ग्रेनेडियर्स में देश की सेवा की। वे सबसे कम 19 साल की उम्र में परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाले भारतीय सैनिक हैं।