हर साल सावन के शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता है। इस बार 15 अगस्त 2018 को देशभर में नागपंचमी मनाई जाएगी। इस दिन नाग देवता के 12 स्वरूपों की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि नाग देवता की पूजा करने और रुद्राभिषेक करने से भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं और मनचाहा वरदान देते हैं। मान्यता यह भी है कि इस दिन सर्पों की पूजा करने से नाग देवता प्रसन्न होते हैं। प्राचीन धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक अगर किसी जातक की कुंडली में कालसर्प दोष हो, तो उसे नागपंचमी के दिन भगवान शिव और नागदेवता की पूजा करनी चाहिए। इस दिन विक्रम संवत 2075 के श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि, हस्त नक्षत्र ओर चंद्रमा कन्या राशि का रहेगा।
उत्तर भारत में इस दिन घरों में प्रतीक रूप से नाग पूजा की जाएगी। नागपंचमी को शिव की आराधना करने से कालसर्प योग, पितृ दोष, चांडाल योग, मंगल दोष का निवारण होगा। इस दिन सूर्य और बृहस्पति सिंह और चंद्रमा कन्या राशि में होंगे। यह संयोग सुख शांति और समृद्धि प्रदान करने वाला है। नाग पंचमी के दिन भगवान शिव के विधिवत पूजन से हर प्रकार का लाभ प्राप्त होता है।
प्रत्येक वर्ष शुक्ल श्रावण पंचमी को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता का पूजन होता है। इस दिन काष्ठ पर एक कपड़ा बिछाकर उसपर रस्सी की गांठ लगाकर सर्प का प्रतीक रूप बनाकर, उसे काले रंग से रंग दिया जाता है। कच्चा दूध, घृत और शर्करा तथा धान का लावा इत्यादि अर्पित किया जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में इस दिन दीवारों पर गोबर से सर्पाकार आकृति का निर्माण कर सविधि पूजन किया जाता है। प्रत्येक तिथि के स्वामी देवता हैं। पंचमी तिथि के स्वामी देवता सर्प हैं। इसलिए यह कालसर्पयोग की शांति का उत्तम दिन है।
प्रचलित मान्यताओं के अनुसार पितृ दोष से मुक्ति के लिए इस दिन उनकी पूजा का विधान किया गया है। नागपंचमी पर नाग की पूजा प्रत्यक्ष मूर्ति या चित्रों के रूप में की जाती है। इसी दिन सर्पों के प्रतीक रूप को दूध से स्नान करा कर उनकी पूजा करने का विधान है। दूध पिलाने से, वासुकी कुंड में स्नान करने, निज गृह के द्वार में दोनों ओर गोबर के सर्प बनाकर उनका दही, दु़र्वा, कुशा, गंध, अक्षत, पुष्प, मोदक और मालपुओं आदि से पूजा करने से घर में सर्पों का भय नहीं होता।
हम सभी जानते हैं भगवान विष्णु की शैया अनंत नामक नागराज की है। धर्म ग्रंथों में उल्लेख है कि महाभारत में कृष्ण और अर्जुन ने भी मणिनाग की पूजा की। बौद्ध व जैन धर्म के अनुसार मुचलिंद नाग ने फन फैलाकर भगवान बुद्ध और भगवान पार्श्वनाथ की भी तपस्या के दौरान धूप व हवा से रक्षा की थी। वेद-पुराणों के अनुसार नागों की उत्पति महर्षि कश्यप की पत्नी कद्रु से हुई, इनका निवास स्थान पाताल लोक है।