सिख धर्म के दस गुरुओं की कड़ी में प्रथम हैं गुरु नानकदेवजी। राएभोए की तलवंडी नामक स्थान में, कल्याणचंद (मेहता कालू या मेहता कालियान दास) नाम के एक हिन्दू किसान के घर गुरु नानकदेवजी का जन्म हुआ। उनकी माता का नाम तृप्ता था। तलवंडी को ही अब नानक के नाम पर ननकाना साहब कहा जाता है, जो पाकिस्तान में है।
"नानक नन्हे बने रहो, जैसे नन्ही दूब ।
"बड़े-बड़े बही जात हैं, दूब खूब की खूब ।।
भावार्थः श्री गुरुनानक देव जी कहते हैं कि “झुक कर चलने वालों का कोई कुछ नहीं बिगड़ पाता जैसे सैलाब आने पर दूब (घास) लेट जाती है और सैलाब ऊपर से निकल जाता है। जिससे दूब तो और बढ़ जाती है लेकिन न झुकने वाले बड़े-बड़े पेड़….सैलाब में बह जाते हैं… तू झुक के चल बंदया, झुकयां नूं राम मिलदा!!
13 साल की उम्र में गुरु नानक जी का उपनयन संस्कार हुआ और माना जाता है कि 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह सुलखनी से हुआ। 1494 में श्रीचंद और लक्ष्मीचंद नाम के दो पुत्र भी इन्हें हुए। 1499 में उन्होंने अपना संदेश देना शुरु किया और यात्राएं प्रारंभ कर दी थी जबकि वे 30 साल के थे। 1521 तक इन्होंने भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के प्रमुख स्थानों का भ्रमण किया। कहते हैं कि उन्होंने चारों दिशाओं में भ्रमण किया था।लगभग पूरे विश्व में भ्रमण के दौरान नानकदेव के साथ अनेक रोचक घटनाएं घटित हुईं। उनकी इन यात्राओं को उदासियां कहा जाता हैं।
सिख धर्म के प्रथम गुरु गुरुनानक देवी जी के चार शिष्य थे। यह चारों ही हमेशा बाबाजी के साथ रहा करते थे। बाबाजी ने अपनी लगभग सभी उदासियां अपने इन चार साथियों के साथ पूरी की थी। इन चारों के नाम हैं- मरदाना, लहना, बाला और रामदास के साथ पुरी की थी। मरदाना ने गुरुजी के साथ 28 साल में लगभग दो उपमहाद्वीपों की यात्रा की। इस दौरान उन्होंने तकरीबन 60 से ज्यादा प्रमुख शहरों का भ्रमण किया। जब गुरुजी मक्का की यात्रा पर थे तब मरदाना उनके साथ थे।
नानक के व्यक्तित्व में सभी गुण थे। नानकदेवजी ने रूढ़ियों और कुसंस्कारों के विरोध में सदैव अपनी आवाज बुलंद की। संत साहित्य में नानक अकेले चमकते सितारे हैं। कवि हृदय नानक की भाषा में फारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी, खड़ी बोली, अरबी, संस्कृत और ब्रजभाषा के शब्द समा गए थे।
नानकदेवजी के दस सिद्धांत :
1. ईश्वर एक है।
2. सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो।
3. जगत का कर्ता सब जगह और सब प्राणी मात्र में मौजूद है।
4. सर्वशक्तिमान ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता।
5. ईमानदारी से मेहनत करके उदरपूर्ति करना चाहिए।
6. बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएं।
7. सदा प्रसन्न रहना चाहिए। ईश्वर से सदा अपने को क्षमाशीलता मांगना चाहिए।
8. मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके उसमें से जरूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए।
9. सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं।
10. भोजन शरीर को जिंदा रखने के लिए जरूरी है पर लोभ-लालच व संग्रहवृत्ति बुरी है।