Guru Nanak Jayanti 2021 : कार्तिक पूर्णिमा के दिन सिख धर्म के प्रथम गुरु गुरु नानकदेव जी का प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है। भारतीय धर्म, दर्शन और समाज में गुरुजी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इस साल गुरु नानक जी की की 552वीं जयंती मनाई जा रही है। आओ जानते हैं कि गुरु नानकदेवजी के जीवन की 10 बड़ी बातें।
प्रकाश पर्व का महत्व : सिखों के पहले गुरु नानक देव जी की जयंती देशभर में प्रकाश पर्व के रूप में मनाई जाती है। यह पर्व समाज के हर व्यक्ति को साथ में रहने, खाने और मेहनत से कमाई करने का संदेश देता है। सिखों के प्रथम गुरु, गुरु नानक देव जी के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में विशाल नगर कीर्तन निकाला जाता है। इस दौरान पंज (पांच) प्यारे नगर कीर्तन की अगुवाई करते हैं। श्री गुरुग्रंथ साहिब को फूलों की पालकी से सजे वाहन पर सुशोभित करके कीर्तन विभिन्न जगहों से होता हुआ गुरुद्वारे पहुंचता है। प्रकाश उत्सव के उपलक्ष्य में प्रभातफेरी निकाली जाती है जिसमें भारी संख्या में संगतें भाग लेती हैं। प्रभातफेरी के दौरान कीर्तनी जत्थे कीर्तन कर संगत को निहाल करते हैं। इस अवसर पर गुरुद्वारे के सेवादार संगत को गुरु नानक देवजी के बताए रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। इस अवसर पर एक ओर जहां गुरुद्वारों में भव्य सजावट की जाती है, वहीं गुरु का प्रसाद लंगर भी बांटा जाता है। साथ ही गुरु नानक देव जी पर आधारित पोस्टर जारी किए जाते हैं। प्रकाश पर्व के दिन सुबह से ही गुरुद्वारों में धार्मिक अनुष्ठानों का सिलसिला शुरू हो जाता है, जो देर रात तक चलता है। प्रकाश पर्व यानी मन की बुराइयों को दूर कर उसे सत्य, ईमानदारी और सेवाभाव से प्रकाशित करना।
1. जन्म : गुरु नानकजी का जन्म कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन 1469 को राएभोए के तलवंडी नामक स्थान पर हुआ था जो वर्तमान में पाकिस्तान में है। तलवंडी को ही अब नानक के नाम पर ननकाना साहब कहा जाता है।
2. माता पिता : गुरुजी के पिता कल्याणचंद (मेहता कालू) नाम के एक किसान थे और उनकी माता का नाम तृप्ता था। उपनयन संस्कार : 13 साल की उम्र में उनका उपनयन संस्कार हुआ।
3. विवाह : माना जाता है कि 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह सुलखनी से हुआ। 1494 में श्रीचंद और लक्ष्मीचंद नाम के दो पुत्र भी इन्हें हुए। श्रीचंद साहिब जी ने ही उदासीन अखाड़े की स्थापना की थी।
4. चार शिष्य : सिख धर्म के प्रथम गुरु गुरुनानक देवी जी के चार शिष्य थे। यह चारों ही हमेशा बाबाजी के साथ रहा करते थे। बाबाजी ने अपनी लगभग सभी उदासियां अपने इन चार साथियों के साथ पूरी की थी। इन चारों के नाम हैं- मरदाना, लहना, बाला और रामदास के साथ पुरी की थी। मरदाना ने गुरुजी के साथ 28 साल में लगभग दो उपमहाद्वीपों की यात्रा की। इस दौरान उन्होंने तकरीबन 60 से ज्यादा प्रमुख शहरों का भ्रमण किया। जब गुरुजी मक्का की यात्रा पर थे तब मरदाना उनके साथ थे।
5. गुरुजी की उदासियां : 1499 में उन्होंने अपना संदेश देना शुरु किया और यात्राएं प्रारंभ कर दी थी जबकि वे 30 साल के थे। 1507 में वे अपने परिवार को छोड़कर यात्रा के लिए निकल पड़े। 1521 तक इन्होंने भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के प्रमुख स्थानों का भ्रमण किया। कहते हैं कि उन्होंने चारों दिशाओं में भ्रमण किया था।लगभग पूरे विश्व में भ्रमण के दौरान नानकदेव के साथ अनेक रोचक घटनाएं घटित हुईं। उनकी इन यात्राओं को उदासियां कहा जाता हैं।
6. करतारपुर साहिब : भारत के तीर्थयात्री पाकिस्तान में पहले करतारपुर साहिब फिर ननकाना साहिब जाते हैं। सिखों के पहले गुरु गुरुनानक देवजी अपनी 4 प्रसिद्ध यात्राओं को पूरा करने के बाद 1522 में करतारपुर साहिब में रहने लगे थे। नानकजी ने अपने जीवनकाल के अंतिम 17 वर्ष, 5 माह और 9 दिन यहीं बिताए थे। करतारपुर साहिब, पाकिस्तान के नारोवाल जिले में रावी नदी के तट पर स्थित है। यह जगह भारतीय सीमा से महज 3 किलोमीटर दूर स्थित है।
7. महाप्रयाण : 22 सितंबर, 1539 को गुरुनानक देवजी ने अपना शरीर त्याग दिया। इससे उन्होंने अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया जो बाद में गुरु अंगद देव के नाम से जाने गए।
8. गुरुनानक का दर्शन : नानकदेव क्या थे और नानक का दर्शन क्या था? ये सब निरर्थक बातें हैं। नानक के व्यक्तित्व में सभी गुण थे। नानकदेवजी ने रूढ़ियों और कुसंस्कारों के विरोध में सदैव अपनी आवाज बुलंद की। संत साहित्य में नानक अकेले चमकते सितारे हैं। कवि हृदय नानक की भाषा में फारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी, खड़ी बोली, अरबी, संस्कृत और ब्रजभाषा के शब्द समा गए थे।
9. नानकदेवजी के दस सिद्धांत :
1. ईश्वर एक है।
2. सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो।
3. जगत का कर्ता सब जगह और सब प्राणी मात्र में मौजूद है।
4. सर्वशक्तिमान ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता।
5. ईमानदारी से मेहनत करके उदरपूर्ति करना चाहिए।
6. बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएं।
7. सदा प्रसन्न रहना चाहिए। ईश्वर से सदा अपने को क्षमाशीलता मांगना चाहिए।
8. मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके उसमें से जरूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए।
9. सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं।
10. भोजन शरीर को जिंदा रखने के लिए जरूरी है पर लोभ-लालच व संग्रहवृत्ति बुरी है।
10. नाम धरियो हिंदुस्तान : कहते हैं कि नानकदेवजी से ही हिंदुस्तान को पहली बार हिंदुस्तान नाम मिला। लगभग 1526 में जब बाबर द्वारा देश पर हमला करने के बाद गुरु नानकदेवजी ने कुछ शब्द कहे थे तो उन शब्दों में पहली बार हिंदुस्तान शब्द का उच्चारण हुआ था-
खुरासान खसमाना कीआ
हिंदुस्तान डराईआ।