नई दिल्ली। नोटबंदी के 5 साल बाद डिजिटल भुगतान में वृद्धि के बावजूद चलन में नोटों की संख्या में भी लगातार वृद्धि हो रही है। हालांकि, वृद्धि की रफ्तार धीमी है। दरअसल, कोविड-19 महामारी के दौरान लोगों ने एहतियात के रूप में नकदी रखना बेहतर समझा। इसी कारण चलन में बैंक नोट पिछले वित्त वर्ष के दौरान बढ़ गए।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार डेबिट/क्रेडिट कार्ड, नेट बैंकिंग और यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) जैसे माध्यमों से डिजिटल भुगतान में भी बड़ी वृद्धि हुई है। भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) का यूपीआई देश में भुगतान के एक प्रमुख माध्यम के रूप में तेजी से उभर रहा है। इन सबके बावजूद चलन में नोटों का बढ़ना धीमी गति से ही सही, लेकिन जारी है।
5 साल पहले 8 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का ऐलान किया था। आधी रात से 1000 और 500 के नोट बंद कर दिए गए थे। इसके बाद नया 500 और 2000 का नोट जारी किया गया था। इसका प्रमुख उद्देश्य डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना और काले धन पर अंकुश लगाना था।
क्यों हुई थी नोटबंदी : सरकार ने उस समय नोटबंदी के 5 बड़े मकसद बताए थे। कालेधन को खत्म करना, देश को कैशलैस बनाना, कालाधन पर लगाम, चौथा नकली नोटों को खत्म करना और आतंकियों और नक्सलियों की कमर तोड़ने के लिए सरकार ने यह बड़ा कदम उठाया था।
नोटबंदी के बाद बढ़ा नोटों का चलन : आरबीआई के ताजा आंकड़ों के अनुसार, मूल्य के हिसाब से 4 नवंबर, 2016 को 17.74 लाख करोड़ रुपए के नोट चलन में थे, जो 29 अक्टूबर, 2021 को बढ़कर 29.17 लाख करोड़ रुपए हो गए।
आरबीआई के मुताबिक, 30 अक्टूबर, 2020 तक चलन में नोटों का मूल्य 26.88 लाख करोड़ रुपए था। 29 अक्टूबर, 2021 तक इसमें 2,28,963 करोड़ रुपए की वृद्धि हुई। वही सालाना आधार पर 30 अक्टूबर, 2020 को इसमें 4,57,059 करोड़ रुपये और इससे एक साल पहले एक नवंबर, 2019 को 2,84,451 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी हुई थी।
इसके अलावा चलन में बैंक नोटों के मूल्य और मात्रा में 2020-21 के दौरान क्रमशः 16.8 प्रतिशत और 7.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, जबकि 2019-20 के दौरान इसमें क्रमशः 14.7 प्रतिशत और 6.6 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई थी।
नोटबंदी पर कोरोना का असर : वित्त वर्ष 2020-21 में चलन में बैंक नोटों की संख्या में बढ़ोतरी की वजह महामारी रही। महामारी के दौरान लोगों ने सावधानी के तौर पर अपने नकदी रखी।