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50वें खजुराहो नृत्य महोत्सव का हृदयग्राही समापन

नृत्यों की रंगोली में खिले बसंत और बहार

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सारंग क्षीरसागर

विश्व प्रसिद्ध मंदिरों के लिए विख्यात खजुराहो की रंगभूमि पर पिछले सात दिनों से अनवरत चल रहे अंतरराष्ट्रीय नृत्य महोत्सव का आज हृदयग्राही समापन हो गया। इन सात दिनों ने मानो संगीत के सात सुर खिल उठे। इन सात दिनों में भारतीय संस्कृति अपने उदात्त रूप में दिखी। एक नई रचनात्मक ऊर्जा और नवाचारों की रंगोली के सभी साक्षी बने।

समारोह के अंतिम दिन भी पद्मविभूषण विदुषी सोनल मानसिंह से लेकर अनुराधा सिंह तक सभी ने ऐसे रंग भरे कि बसंत खिल उठा। बहरहाल, आज अंतिम दिन की शुरुआत विख्यात भरतनाट्यम और ओडिसी नृत्यांगना विदुषी सोनल मानसिंह और उनके समूह की नृत्य प्रस्तुति से हुआ। सोनल मानसिंह भारतीय संस्कृति के प्रति जो श्रद्धा और प्रेम रखती हैं, वह उनकी नृत्य प्रस्तुतियों में सदैव दृष्टिगोचर होता है। केलुचरन महापात्र से जो संस्कार उन्हें मिले वह उनकी नृत्य प्रस्तुतियों में साफ पानी की तरह दिखते हैं।

आज उन्होंने नृत्य नाटिका मीरा की रसमय प्रस्तुति दी। भरतनाट्यम और ओडिसी दोनों शैलियों के सम्मिश्रण से तैयार इस प्रस्तुति में मीरा का चरित्र और कृष्ण के प्रति उनका प्रेम, सरोवर में खिले हुए कमल की तरह दिखा। सोनल मानसिंह की यह प्रस्तुति मीराबाई के चरित्र में एक नई ऊर्जा फूंक गई। अद्भुत नृत्य रचनाओं और विविधतापूर्ण संगीत से सजी इस प्रस्तुति को देखकर रसिक मंत्रमुग्ध से हो गए।

अगली प्रस्तुति भरतनाट्यम की थी। बेंगलुरु से आईं विदुषी डॉ. राजश्री वारियार ने भरतनाट्यम की शानदार प्रस्तुति दी। उन्होंने बतौर मंगलाचरण शारदा अलारिप्पु की प्रस्तुति दी। अलारिप्पु भरतनाट्यम का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसका अर्थ है खिलना यानी अलारिप्पु से नृत्य खिलता है। इसमें राजश्री ने मां शारदा की स्तुति की।
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उनकी अगली प्रस्तुति भगवान नटराज की स्तुति में थी। राग दुर्गा और अनादि ताल में संगीतबद्ध इस प्रस्तुति में राजश्री ने शिव के तांडव स्वरूप को साकार करने की कोशिश की। इन प्रस्तुतियों में उनके साथ गायन में डॉ. श्रीदेव राजगोपाल, नतवांगम पर एलवी हेमंत लक्ष्मण, मृदंगम पर चंद्रकुमार और वीणा पर प्रो. वी. सुंदरराजन ने साथ दिया।

तीसरी प्रस्तुति में भोपाल की डॉ. यास्मीन सिंह का मनोहारी कथक नृत्य हुआ। उन्होंने सूर्य वंदना से अपने नृत्य का आरंभ किया। आदि हृदय स्त्रोत से लिए गए श्लोकों को राग बिभास के सुरों में पिरोकर और त्रिताल के पैमाने में बांधकर उन्होंने भगवान सूर्य की आराधना में नृतभाव पेश किए। उन्होंने इस प्रस्तुति में राम की रावण पर विजय को भी भाव नृत्य से दिखाया, क्योंकि राम भी सूर्यवंशी थे।

दूसरी प्रस्तुति सरगम की थी। राग बसंत के सुरों में भीगी और 9 मात्रा की ताल बसंत में बंधी इस प्रस्तुति में उन्होंने तोड़े टुकड़े और परनों के साथ कुछ खास गतों से प्रकृति प्रेम भी दिखाया। इसके साथ ही पैरों का काम और तबले के साथ-साथ जवाब भी दिखाए। नृत्य का समापन उन्होंने ठुमरी चंद्रवदनी मृगलोचनी पर एक नायिका के सौंदर्य वर्णन से किया। श्रृंगार के रस का उदात्त स्वरूप तीन ताल की इस ठुमरी में देखने को मिला।

इस प्रस्तुति की नृत्य रचना स्वयं यास्मीन की थी। उनके साथ नृत्य में सुब्रतो पंडित, श्रीयंका माली, संगीता दस्तीकार, विश्वजीत चक्रवर्ती, प्रसनजीत, अभिषिकता मुखोपाध्याय, संदीप सरकार, नील जैनिफर ने सहयोग किया, जबकि गायन में जयवर्धन दाधीच, पखावज पर आशीष गंगानी, सारंगी पर आमिर खान, सितार पर किशन कथक, तबले पर शाहनवाज और पढंत पर एलिशा दीप गर्ग ने साथ दिया।
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मैसूर से आईं डॉ. कृपा फड़के ने भी अपने साथियों के साथ भरतनाट्यम की प्रस्तुति देकर समारोह में रंग भरे। उन्होंने संपूर्ण रामायण की प्रस्तुति दी। इस प्रस्तुति में उन्होंने भगवान राम के गुणों सहित रामायण के प्रमुख घटनाक्रमों को अपने नृतभावों में समाहित करके जब सामने रखा तो दर्शक मुग्ध हो गए। इस प्रस्तुति में कृपा फड़के के साथ पूजा सुगम, समीक्षा मनुकुमार, सुरक्षा, श्रीप्रिया, स्पूर्ति ने साथ दिया, जबकि गायन में उडुपी श्रीनाथ, नट वांगम पर रूपश्री मधुसूदन, मृदंगम पर नागई और पी. श्रीराम और बांसुरी पर एपी कृष्णा प्रसाद ने साथ दिया।

समारोह का समापन भोपाल की जानीमानी नृत्यांगना सुश्री अनुराधा सिंह के कथक नृत्य से हुआ। ऊर्जावान कलाकार अनुराधा ने शिव वंदना से अपने नृत्य का आगाज किया। पांच मात्रा की सूल फ़ाक्ता ताल में तीन चक्करदारपरनों को लेते हुए उन्होंने यह वंदन की। अपनी दूसरी प्रस्तुति में उन्होंने 5 लय में घुंघरू का चलन प्रस्तुत किया, जिसमें वायलिन के साथ घुंघरू की जुगलबंदी का प्रदर्शन माधुर्य पैदा करने वाला था।
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प्रस्तुति को विस्तार देते हुए अनुराधा सिंह ने राग हंसध्वनि में तराने पर नयनाभिराम प्रस्तुति दी, इसमें 27 चक्करों का बोल और कालिया मर्दन कथानक का वायलिन घुंघरू की जुगलबन्दी से जीवंत चित्रण हैरत में डालने वाला रहा।

अगली प्रस्तुति में वी. अनुराधा सिंह कथक ने रायगढ़ घराने के क्लिष्ट बोल एवं परन प्रस्तुत की। विद्युतीय गति से ऊर्जावान चक्करों के साथ अति द्रुत लय में उठान, परन एवं तिहाइयां इस प्रस्तुति का मुख्य आकर्षण रहे। इसके बाद उन्होंने राग कलावती में ठुमरी की प्रस्तुति द्वारा कथक के भावों में होली और कृष्ण की लीलाओं की तोड़े और घुंघरू की उत्कृष्ट लयकारियों से उत्कृष्ट छटा बिखेरी।
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नृत्य का समापन उन्होंने 'मोरी चुनरिया रंग दे' से किया, जिसमें घुंघरू के साथ होली के इंद्रधनुषी दृश्यों को विभिन्न तिहाइयों से चंचल-चपल भावों से उन्होंने जीवंतता प्रदान की। उनके साथ तबले पर सलीम अल्लाहवाले, वायलिन पर मनोज बमरेले, सिंथेसाइजर पर शाहिद ने साथ दिया। कार्यक्रम का संचालन प्रख्यात कला समीक्षक विनय उपाध्याय ने किया।

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