एक अनुमान के मुताबिक अगले 30 वर्षों में वैश्विक आबादी 10 बिलियन तक बढ़ने की संभावना है। वहीं, संयुक्त राष्ट्र ने भविष्यवाणी की है कि खाद्य उत्पादन को 2050 तक दोगुना करने की जरूरत होगी। कोरोना काल में दुनिया में बड़ी संख्या में लोगों ने खाद्य संकट का सामना भी किया है। चाहे जलवायु परिवर्तन का मुद्दा हो, कृषि का हो या फिर खाद्य पदार्थों का, इन्हीं गंभीर मुद्दों पर बीबीसी की 'फॉलो द फूड' श्रृंखला के तहत पड़ताल कर रहे हैं प्रसिद्ध वनस्पति विज्ञानी जेम्स वांग। जेम्स ने इन्हीं गंभीर मुद्दों पर वेबदुनिया के सवालों के जवाब भी दिए।
संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास (Sustainable Development) लक्ष्यों में कृषि की भूमिका से जुड़े सवाल पर जेम्स ने कहा कि कृषि मानव सभ्यता के सभी क्षेत्रों को प्रभावित करती है, इसलिए यह अनिवार्य रूप से संयुक्त राष्ट्र के 17 सतत विकास लक्ष्यों विशेष रूप से भुखमरी, खपत और उत्पादन, जलवायु क्रिया, जल एवं स्वच्छता तथा लिंग समानता में सफलता का निर्धारण करने में प्रमुख भूमिका निभाती है।
उन्होंने कहा कि 2030 में एक दशक से भी कम समय बचा है और कुछ अधिक चुनौतीपूर्ण लक्ष्य पहाड़नुमा भी लग सकते हैं। हालांकि, बीबीसी वर्ल्ड न्यूज़ के लिए 'फॉलो द फ़ूड' बनाने के बारे में एक बात जो मुझे अचंभित और आश्वस्त कर रही थी, वह यह कि इनमें से कितने ही क्रांतिकारी विचार (निम्न तकनीक और उच्च तकनीक दोनों) पहले ही सोचे जा चुके हैं।
दरअसल, तेजी से बढ़ते तकनीकी और वैज्ञानिक दौर में चीजों को बहुत कम समय में समेट दिया है। दशकों चीजें महीनों में हो रही हैं। ऐसे समय को देखना निश्चित ही रोमांचक है।
कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रमुख प्रभावों पर चर्चा करते हुए जेम्स वांग ने कहा कि मनुष्य को जीवित रहने के लिए पौधों की प्रजातियों पर निर्भर रहना पड़ता है। बदले में, इन मुट्ठी भर प्रजातियों को सूर्य की किरण, तापमान, नमी जैसी मामूली आवश्यकता होती है। इसका मतलब यह है कि जलवायु में न्यूनतम परिवर्तन भी हमारे भोजन एकत्र करने की क्षमता पर अधिकतम प्रभाव डालने में सक्षम है।
उन्होंने कहा कि हालांकि, कृषि अक्सर जलवायु परिवर्तन के सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक हो सकती है, क्योंकि पशुधन और फसलों के कारण ग्रीनहाउस गैसों का प्रत्यक्ष उत्सर्जन होता है। दूसरी ओर, जलवायु परिवर्तन का सबसे पहला प्रभाव किसानों पर होता है।