Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

अमरनाथ यात्रा को लेकर स्थानीय लोगों में उत्साह नहीं

हमें फॉलो करें अमरनाथ यात्रा को लेकर स्थानीय लोगों में उत्साह नहीं

सुरेश एस डुग्गर

श्रीनगर। अमरनाथ यात्रा का एक आश्चर्यजनक पहलू यह है कि इसमें शामिल होने वाले बाहरी राज्यों के निवासी हैं, जबकि स्थानीय लोगों की भागीदारी न के ही बराबर। हालांकि इस बार की भी अमरनाथ यात्रा की खास बात यह है कि इसमें स्थानीय भागीदारी नगण्य सी है। जहां अमरनाथ यात्रा में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं में मात्र पांच प्रतिशत ही जम्मू कश्मीर से संबंध रखने वाले हैं, वहीं अमरनाथ यात्रा मार्ग पर लंगर लगाने वालों में भी जम्मू कश्मीर से लंगर लगाने वाला ढूंढने से नहीं मिलता।
 
असल में जब से कश्मीर में पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद ने अपने पांव फैलाए हैं तभी से वार्षिक अमरनाथ  यात्रा का स्वरूप बदलता गया और आज स्थिति यह है कि यह धार्मिक यात्रा के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता व  अखंडता की यात्रा बनकर रह गई है, जिसमें देश के विभिन्न भागों से भाग लेने वालों के दिलों में देशप्रेम की  भावना तो होती ही है उनके मनमस्तिष्क पर यह भी छाया रहता है कि वे इस यात्रा को ‘कश्मीर हमारा है’ के  मकसद से कर रहे हैं।
 
अमरनाथ यात्रा को राष्ट्रीय एकता व अखंडता की यात्रा में बदलने में पाक समर्थित आतंकियों द्वारा लगाए जाने  वाले प्रतिबंधों और आतंकियों द्वारा किए जाने वाले हमलों ने अपनी अहम भूमिका निभाई है। हुआ अक्सर यही  है कि पिछले कई सालों से आतंकियों द्वारा इस यात्रा पर लगाए जाने वाले प्रतिबंधों और किए जाने वाले हमलों  ने न सिर्फ अमरनाथ यात्रा को सुर्खियों में ला खड़ा किया, बल्कि देश की जनता के दिलों में कश्मीर के प्रति प्रेम को और बढ़ाया जिसे उन्होंने इस यात्रा में भाग लेकर दर्शाया।
 
अब स्थिति यह है कि इस यात्रा में भाग लेने वालों को सिर्फ धार्मिक नारे ही नहीं बल्कि भारत समर्थक, कश्मीर  के साथ एकजुटता दर्शाने वाले तथा पाकिस्तान विरोधी नारे भी सुनाई पड़ते हैं जो इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं  कि यात्रा में भाग लेने वालों का मकसद राष्ट्रीय एकता व अखंडता को मजबूत बनाना भी है।
 
इसे भी भूला नहीं जा सकता कि आतंकियों के प्रतिबंधों के कारण इस यात्रा को न सिर्फ राष्ट्रीय एकता व  अखंडता की यात्रा में ही बदल डाला गया बल्कि भाग लेने वालों का आंकड़ा भी आसमान को छूने लगा। यही  कारण था कि वर्ष 1996 में भी पचास हजार से अधिक बजरंग दल के सदस्यों ने इसलिए इस यात्रा में भाग  लिया था क्योंकि उन्हें यह दर्शाना था कि कश्मीर भारत का है। और इसी भावना के कारण की गई यात्रा से जो  अव्यवस्थाएं पैदा हुईं थीं, वे अमरनाथ त्रासदी के रूप में सामने आई जिसने तीन सौ से अधिक लोगों की जान ले ली थी।
 
यह भी सच है कि ऐसा करने वालों में देश के अन्य हिस्सों से आने वालों की भूमिका व भागीदारी अधिक रही  है। यही कारण है कि सिर्फ ऐसा क्रियाकलापों में ही नहीं, बल्कि यात्रा में भाग लेने वालों में भी स्थानीय लोगों की संख्या नगण्य ही है। आंकड़ों के मुताबिक, अमरनाथ यात्रा में शामिल होने वाले स्थानीय लोगों की संख्या पांच  प्रतिशत से अधिक नहीं है।
 
सच्ची देशप्रेम की भावना को दर्शाने का एक स्वरूप लंगरों की भी व्यवस्था को भी माना जाता है जिसे देश के  विभिन्न भागों से आने वाली स्वयंसेवी संस्थाएं लगा रही है और इन लंगरों की सच्चाई यह है कि अमरनाथ  यात्रा मार्ग पर स्थानीय लोगों की ओर से एक भी लंगर की व्यवस्था नहीं की गई है। स्थानीय लोगों की  भागीदारी की ऐसी स्थिति नई बात ही मानी जा सकती है। असल में आतंकवाद के शुरुआती दिनों तक यह  संख्या सबसे अधिक होती थी, लेकिन लगता है, अब आतंकवाद ने उन्हें प्रभावित किया है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

चीन सीमा पर होगी हजारों अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती