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सावधान! कहीं 80 के दशक में न पहुंच जाए पंजाब?

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वेबदुनिया न्यूज डेस्क

पंजाब धीरे-धीरे फिर सुलगने लगा है। एक बार फिर खालिस्तान की मांग जोर पकड़ने लगी है। 23 फरवरी को 'वारिस पंजाब दे' के प्रमुख अमृतपाल के हथियारबंद साथियों ने अमृतसर के अजनाला थाने पर हमला बोल दिया। पुलिस के साथ उनकी हिंसक झड़प हुई, इसमें कुछ पुलिसकर्मी घायल हो गए। ये सभी लोग अमृतपाल के साथी लवप्रीत तूफान की रिहाई के लिए थाने पर जुटे थे।
 
हालांकि अगले ही दिन लवप्रीत को छोड़ दिया गया। इस रिहाई को स्थानीय पुलिस और राज्य सरकार की शिकस्त के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि पंजाब के मुख्‍यमंत्री भगवंत सिंह मान ने इसी 'छोटी घटना' बताते हुए कहा कि पंजाब एक उपजाऊ भूमि है। आप जो भी बोते हैं, वह उगता है, लेकिन नफरत नहीं। राज्य में नफरत के लिए कोई जगह नहीं है। वहीं, विपक्ष ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि वह कट्‍टरपंथी तत्वों के आगे झुक गई है। 
 
इस बात का है डर : अमृतपाल के तेवरों को देखकर इस बात की आशंका व्यक्त की जा रही है कि पंजाब में कहीं 80 के दशक वाली स्थिति न निर्मित हो जाए। अमृतपाल का कहना है कि पंजाब आजाद होकर रहेगा। उसने कहा कि मेरी मांग है कि जब मैं या मेरा कोई साथी खालिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाएं तो उसे कोई डर नहीं होना चाहिए।
 
अमृतपाल को भिंडरावाले 2.0 इसलिए भी कहा जा रहा है कि वह उसी की तरह सफेद कपड़े और पगड़ी पहनता है। अपने हथियारबंद साथियों से घिरा रहता है। इसे वारिस पंजाब दे का प्रमुख बनाने की घोषणा भी भिंडरावाले के इलाके मोगा में की गई थी। अमृतपाल 2022 में ही दुबई से लौटा है, जहां वह ट्रांसपोर्ट का व्यवसाय करता था। 
 
इतना ही नहीं खालिस्तान समर्थकों ने कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में भी मंदिरों और भारत से जुड़े संस्थानों पर हमला करना शुरू कर दिया है। कनाडा में भी एक हिन्दू मंदिर पर हाल ही में खालिस्तान समर्थक नारे और धमकियां लिखी हुई पाई गई थीं।
 
ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में पिछले दिनों खालिस्तानी समर्थकों ने उपद्रव किया। इन लोगों ने तिरंगा झंडा लिए विद्यार्थियों और अन्य लोगों पर हमला बोला। इस हमले में करीब आधा दर्जन लोग घायल हुए थे। इससे पहले भी हिन्दू मंदिरों को निशाना बनाया गया था।
 
अब भारतीय संस्थान भी निशाने पर : ऑस्ट्रेलिया टुडे के संपादक जे. भारद्वाज का कहना है कि अभी तक वे ऑस्ट्रेलिया में रह रहे भारतीयों पर हमले करते थे, लेकिन अब वे भारत सरकार से जुड़े संस्थानों पर निशाना बना रहे हैं। अजनाला की यह घटना छोटी जरूर है, लेकिन इसकी गंभीरता बिलकुल भी कम नहीं है। समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया तो यह न सिर्फ पंजाब बल्कि पूरे देश के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकती है। 80 के दशक के पंजाब को लोग आज भी नहीं भूले हैं। 
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क्या है खालिस्तान आंदोलन : खालिस्तान शब्द का अर्थ खालसा की भूमि से है। इसका एक अन्य अर्थ स्वायत्त सिख मातृभूमि भी है। खालिस्तान नाम पंजाब के जगजीत सिंह चौहान ने दिया था। चौहान 1969 में पंजाब से ब्रिटेन चले गए थे। वहां पर चौहान ने खालिस्तान नेशनल काउंसिल की स्थापना की थी। 1971 में चौहान ने खालिस्तान राष्ट्र के तौर पर विज्ञापन दिया था। 1980 खालिस्तान राष्ट्रीय परिषद बनाई गई। कहा जाता है कि विदेशों में रह रहे सिखों ने भी खालिस्तान मूवमेंट को आर्थिक मदद पहुंचाकर मजबूत किया। 
 
पहली बार 1947 में उठी थी मांग : भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान ही पहली बार 1947 में खालिस्तान की मांग सामने आई थी। उस समय अंग्रेज भारत को दो भागों में बांटने की योजना बना रहे थे, तभी अलग खालिस्तान की मांग भी उठी थी। हालांकि ऐसा हो नहीं पाया। खालिस्तान की प्रस्तावित राजधानी लाहौर है। यह वह शहर है, जिसे महाराजा रणजीत सिंह द्वारा बसाया गया था। वर्तमान में यह शहर पाकिस्तान में है। 
 
भिंडरावाले का उदय : 80 के दशक में खालिस्तान आंदोलन पूरे उभार पर था। उसे विदेशों में रहने वाले सिखों के जरिए वित्तीय और नैतिक समर्थन मिल रहा था। इसी दौरान पंजाब में जनरैल सिंह भिंडरावाले खालिस्तान के सबसे मजबूत नेता के रूप में उभरा। उसने स्वर्ण मंदिर के हरमंदिर साहिब को अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाया। उसने अपने साथियों के जरिए पूरे पंजाब में इस आंदोलन को खासा उग्र कर दिया। तब ये स्वायत्त खालिस्तान आंदोलन अकालियों के हाथ से निकल गया।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala
 

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