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कौन हैं मियावाकी तकनीक से 150 जंगल उगाने वाले ‘हरित योद्धा’ डॉ. आर.के. नायर, आनंद महिंद्रा भी हुए मुरीद!.

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WD Feature Desk

, बुधवार, 9 अप्रैल 2025 (14:38 IST)
“ये धरती जो मां है हमारी, उसे अब बेटी की तरह पालना होगा...” 

Miyawaki jungle: ये पंक्तियां आज के दौर में एक गहरी सच्चाई बयां करती हैं। जब कंक्रीट के जंगल धरती को निगल रहे हैं और पर्यावरण का संतुलन डगमगा रहा है, तब कुछ लोग इस मां को फिर से हरा-भरा करने की जिद ठान लेते हैं। ऐसे ही एक ‘हरित योद्धा’ हैं भारत के पर्यावरणविद् और ‘फॉरेस्ट क्रिएटर’ के नाम से मशहूर डॉ. आर.के. नायर। उनकी जापान से आई मियावाकी तकनीक ने देश को 150 घने जंगलों की सौगात दी है, और उनके इस कारनामे की तारीफ खुद उद्योगपति आनंद महिंद्रा ने की है। आइए, जानते हैं इस क्रांतिकारी तकनीक और डॉ. नायर की प्रेरक कहानी को, जिन्होंने बंजर जमीनों को हरियाली का आलम बना दिया!

‘हरित क्रांति’ के हीरो: कौन हैं डॉ. आर.के. नायर? (who is Dr. R. K. Nair )
डॉ. आर.के. नायर कोई साधारण शख्स नहीं, बल्कि पर्यावरण के लिए जुनून और विज्ञान का अनोखा संगम हैं। उनकी संस्था फॉरेस्ट क्रिएटर्स ने मियावाकी तकनीक का इस्तेमाल कर भारत के कोने-कोने में बंजर और बेकार पड़ी जमीनों को हरे-भरे जंगलों में तब्दील कर दिया। इन जंगलों ने न सिर्फ पर्यावरण को शुद्ध किया, बल्कि मिट्टी के कटाव को रोका, वन्यजीवों को आश्रय दिया और स्थानीय समुदायों के लिए रोजगार के नए रास्ते खोले। 

आनंद महिंद्रा ने हाल ही में एक्स पर डॉ. नायर की तारीफ करते हुए लिखा, “मियावाकी तकनीक और डॉ. नायर जैसे लोग हमें दिखाते हैं कि इच्छाशक्ति हो तो असंभव भी संभव है। ये जंगल हमारी धरती का भविष्य हैं।” उनकी इस पोस्ट ने डॉ. नायर के काम को देशभर में सुर्खियां दिला दीं। लेकिन आखिर क्या है यह मियावाकी तकनीक, और कैसे इसने भारत में हरित क्रांति ला दी?

 
मियावाकी तकनीक: छोटी जगह में बड़े जंगल का जादू
मियावाकी तकनीक का आविष्कार जापान के मशहूर वनस्पतिशास्त्री अकीरा मियावाकी ने करीब 40 साल पहले किया था। यह तकनीक छोटी-सी जगह में घने और आत्मनिर्भर जंगल उगाने का एक क्रांतिकारी तरीका है। इसे समझने के लिए बस इतना जान लीजिए—यह प्रकृति को तेजी से पुनर्जनन करने का विज्ञान है। 

इस तकनीक में सबसे पहले उस जगह की मिट्टी और जलवायु का गहरा अध्ययन होता है। फिर वहां की स्थानीय प्रजातियों के पेड़-पौधों को चुना जाता है—छोटे, बड़े, फलदार, छायादार, सभी तरह के। इन पौधों को बेहद करीब-करीब और घने तरीके से रोपा जाता है, ताकि वे एक-दूसरे के विकास में मदद करें। खास बात यह कि इसमें रासायनिक खाद या कीटनाशकों की जरूरत नहीं पड़ती। मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरता बनी रहती है, और जैव-विविधता को बढ़ावा मिलता है। 

मियावाकी जंगल पारंपरिक वृक्षारोपण से 10 गुना तेजी से बढ़ते हैं और 30 गुना ज्यादा घने होते हैं। ये न सिर्फ कार्बन डाइऑक्साइड सोखने में माहिर हैं, बल्कि गर्मी कम करने, शोर रोकने और वन्यजीवों को आश्रय देने में भी कमाल करते हैं। 

डॉ. नायर का मिशन: 150 जंगल और अनगिनत सपने
डॉ. आर.के. नायर ने इस तकनीक को भारत की मिट्टी से जोड़ा और असंभव को संभव कर दिखाया। उनकी अगुवाई में फॉरेस्ट क्रिएटर्स ने देशभर में 150 मियावाकी जंगल उगा दिए—शहरों की तपती जमीन से लेकर ग्रामीण इलाकों की बंजर मिट्टी तक। ये जंगल आज हवा को शुद्ध कर रहे हैं, पक्षियों को घर दे रहे हैं और स्थानीय लोगों को प्रकृति के करीब ला रहे हैं। 

उनके एक जंगल की कहानी सुनकर आप हैरान रह जाएंगे। पुणे में एक छोटी-सी बंजर जमीन, जो पहले कचरे का ढेर थी, आज एक घना मियावाकी जंगल है। वहां अब तितलियां मंडराती हैं, चिड़ियां चहकती हैं और हवा में ताजगी घुली है। स्थानीय लोग इसे “हरियाली का चमत्कार” कहते हैं। 

डॉ. नायर का मिशन सिर्फ पेड़ लगाना नहीं, बल्कि एक ऐसी सोच बोना है जो आने वाली पीढ़ियों को पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार बनाए। उनके जंगल न सिर्फ धरती को ठंडक दे रहे हैं, बल्कि यह संदेश भी दे रहे हैं कि अगर इरादे मजबूत हों, तो बंजर जमीन भी जंगल बन सकती है। 

चुनौतियां और आलोचनाएं
हालांकि, डॉ. नायर का रास्ता आसान नहीं रहा। मियावाकी तकनीक को लागू करने में शुरुआती लागत ज्यादा होती है, और सही पौधों का चयन व देखभाल भी चुनौतीपूर्ण है। कुछ आलोचकों का कहना है कि बड़े पैमाने पर पारंपरिक वृक्षारोपण ज्यादा किफायती हो सकता है। लेकिन डॉ. नायर का जवाब है, “मियावाकी जंगल सिर्फ पेड़ नहीं, बल्कि एक पूरा पारिस्थितिकी तंत्र हैं। ये प्रकृति को तेजी से लौटाने का सबसे प्रभावी तरीका है।” 

आनंद महिंद्रा की क्यों की तारीफ?
आनंद महिंद्रा जैसे दिग्गज उद्योगपति का ध्यान जब डॉ. नायर के काम पर गया, तो उन्होंने इसे सिर्फ एक उपलब्धि नहीं, बल्कि भारत के भविष्य की नींव बताया। उनकी पोस्ट ने न सिर्फ डॉ. नायर को सुर्खियों में लाया, बल्कि मियावाकी तकनीक को भी आम लोगों तक पहुंचाया। महिंद्रा ने लिखा, “यह तकनीक और डॉ. नायर जैसे लोग हमें सिखाते हैं कि छोटे कदम बड़े बदलाव ला सकते हैं।”

आगे क्या?
डॉ. आर.के. नायर का सपना सिर्फ 150 जंगलों तक सीमित नहीं है। उनकी संस्था अब स्कूलों, कॉलेजों और कॉरपोरेट्स के साथ मिलकर और जंगल उगाने की योजना बना रही है। उनका मानना है कि अगर हर शहर में एक मियावाकी जंगल हो, तो हमारी हवा, पानी और जीवन पूरी तरह बदल सकता है। 

यह कहानी सिर्फ डॉ. नायर की नहीं, बल्कि हम सबकी है। यह हमें याद दिलाती है कि धरती को बचाने की जिम्मेदारी हमारी है। तो क्यों न हम भी अपने आसपास एक छोटा-सा जंगल उगाने की शुरुआत करें? आखिर, जैसा डॉ. नायर कहते हैं, “हर पेड़ एक कहानी है, और हर जंगल एक नई उम्मीद।”

 

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