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एंट्रिक्स-दिवास मामले में भारत को क्यों मिली हार, जानिए दस कारण...

हमें फॉलो करें एंट्रिक्स-दिवास मामले में भारत को क्यों मिली हार, जानिए दस कारण...
, मंगलवार, 26 जुलाई 2016 (13:26 IST)
हेग। भारत दो सैटलाइट्स और स्पेक्ट्रम वाली डील कैंसल करने से जुड़ा बहुत बड़ा केस अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में हार गया है। अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के मामले में मात खाना भारत के लिए महंगा पड़ने वाला है और इसके साथ ही इसरो की अंतरराष्ट्रीय साख प्रभावित होने की आशंका है। 
केस हारने से देश को करीब 67 अरब रुपए नुकसान होने की आशंका है। इतना ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय निवेशकों की नजर में भी देश की छवि खराब हो सकती है। दिवास मल्टीमीडिया द्वारा दायर मामले में हेग के इंटरनैशनल ट्राइब्यूनल ने भारत सरकार के खिलाफ फैसला दिया।
 
इंडियन स्पेस ऐंड रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) की कॉमर्शियल आर्म, ऐंट्रिक्स, ने साल 2005 में यह कॉन्ट्रैक्ट कैंसल किया था। दिवास ने 2015 में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय में भारत सरकार के खिलाफ मुकदमा कर दिया क्योंकि इसरो सरकार की ही संस्था है।
 
डील के मुताबिक ऐंट्रिक्स एस-बैंड स्पेक्ट्रम में लंबी अवधि के दो सैटलाइट्स ऑपरेट करने पर राजी हो गया था। लेकिन, बाद में उसने डील कैंसल कर दी। ट्राइब्यूनल ने कहा कि डील कैंसल कर सरकार ने उचित नहीं किया जिससे दिवास मल्टीमीडिया के निवेशकों को बड़ा नुकसान हुआ।
 
मामले से जुड़ेे अहम तथ्य : 
* हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय पंचाट (इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल) में भारत सरकार के खिलाफ यह मामला बेंगलुरू स्थित टेलीकॉम कंपनी दिवास मल्टीमीडिया ने दर्ज करवाया था।
* वर्ष 2005 में दिवास से कहा गया था कि वह बेहद कम उपलब्धता वाले एस-बैंड का इस्तेमाल कर सकती है और इसके लिए उसे दो भारतीय उपग्रहों पर स्थान उपलब्ध करवाया गया था।
* दिवास मल्टीमीडिया के साथ यह समझौता सरकारी एजेंसी भारतीय अंतरिक्ष एवं अनुसंधान संगठन (इंडियन स्पेस एंड रिसर्च ऑर्गेनाइज़ेशन - इसरो) की वाणिज्यिक शाखा एंट्रिक्स ने किया था। एंट्रिक्स का काम इसरो की सेवाओँ को निजी कंपनियों को उपलब्ध करवाकर धनार्जन करना ही है।
अगले पन्ने पर... भारत को इसलिए भी करना पड़ा हार का सामना... 
 

* दिवास मल्टीमीडिया की योजना इन उपग्रहों तथा स्पेक्ट्रम का प्रयोग कर देशभर में सस्ते मोबाइल फोनों पर ब्रॉडबैंड सेवाएं उपलब्ध करवाने की थी। एंट्रिक्स इस बात पर भी सहमत हो गया था कि इसके लिए आवश्यक उपग्रहों का निर्माण इसरो ही करेगी।
* एंट्रिक्स को इसके लिए 12 साल के भीतर 600 करोड़ रुपए का भुगतान किया जाना था, लेकिन वर्ष 2011 में समझौता रद्द कर दिया गया।
* इसका कारण यह था कि पूर्ववर्ती डॉ मनमोहन सिंह की सरकार ने 2 जी घोटाले के बाद इस आशय का फैसला लिया था जिसके इसरो की उपग्रहों का निर्माण करने की इसरो की योजनाओं पर मंजूरी नहीं दी गई थी।
* एंट्रिक्स पर यह भी आरोप था कि उसने द‍िवास को उपग्रह तथा स्पेक्ट्रम का आवंटन करने से पहले बोली प्रक्रिया का पालन नहीं किया।
* इस फैसले को बहुचर्चित 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले से प्रभावित माना गया था, जिसकी वजह से आखिरकार डॉ मनमोहन सिंह की सरकार को चुनाव में नुकसान हुआ। उनकी सरकार पर आरोप थे कि उन्होंने 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटित करने में फायदे के लिए टेलीकॉम कंपनियों से समझौते किए।
* जांचकर्ताओं का कहना है कि दिवास ने पूर्व इसरो अधिकारियों की सेवाएं ली थीं, और उन्होंने ही टेलीकॉम कंपनी के पक्ष में इस समझौते को करवाने में मदद की।
* दिवास मल्टीमीडिया के साथ समझौता किए जाने वक्त इसरो प्रमुख रहे माधवन नायर को किसी भी सरकारी भूमिका निभाने के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया गया था और भ्रष्टाचार के आरोपों में उनके खिलाफ जांच की गई।
माधवन नायर ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय पंचाट का भारत के खिलाफ फैसला 'सरकार द्वारा बिना सोचे-समझे उठाए गए कदमों तथा जल्दबाजी में दी गई प्रतिक्रिया का नतीजा' है।

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