देहरादून। केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने चमोली में आपदा प्रभावित तपोवन का निरीक्षण किया। उन्होंने कहा कि आपदा से करीब 1500 करोड़ रुपए के नुकसान का अनुमान है। क्षतिग्रस्त प्रोजेक्ट 2023 तक पूरा होना था। ग्लेशियर टूटने से मची तबाही के बाद बड़े स्तर पर रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया जा रहा है।
अभी भी तकरीबन 197 लोग लापता बताए जा रहे हैं जबकि 26 शवों को बरामद कर लिया गया है। इस तबाही की वजह से वहां चल रहे ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट और एनटीपीसी प्रोजेक्ट को बुरी तरह से ध्वस्त और क्षतिग्रस्त हो गए हैं। लापता लोगों को ढूंढने के लिए सेना ने अपने ताकतवर हेलीकॉप्टरों को उतार दिया है।
एमआई-17 और चिनूक हेलीकॉप्टर के दूसरे बेड़े को सोमवार दोपहर को देहरादून से जोशीमठ के लिए रवाना किए गए। ये हेलीकॉप्टर रेस्क्यू ऑपरेशन में मदद करेंगे और लोगों को जिंदा बचाने की कोशिश करेंगे। भारतीय वायुसेना ने बताया कि इंडियन एयरफोर्स कमांडर वर्तमान समय में जारी ऑपरेशन के लिए राज्य प्रशासन से कॉर्डिनेट कर रहे हैं।
हर मिनट के साथ ही लापता लोगों के जिंदा बचने की उम्मीदें क्षीण हो रही हैं। सेना, आईटीबीपी और राज्य प्रशासन लगातार सर्च ऑपरेशन करके लोगों को जल्द सकुशल निकालने की हर मुमकिन कोशिश में लगा हुआ है। उत्तराखंड के डीजीपी अशोक कुमार के अनुसार जिस टनल में लोग फंस गए हैं उसमे से 80 मीटर तक मलबा हटा दिया है, आगे मशीनें मलवा हटाने के लगी हुई हैं और हमें अब कुछ सफलता मिलने की उम्मीद है।
भारत-चीन सीमा के मलारी आदि इलाकों को मुख्य धारा से जोड़ने वाला सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) द्वारा निर्मित पक्का सीसी पुल भी आपदा में उफान की भेंट चढ़ गया है। इस कारण से मलारी नीति बॉर्डर में सुरक्षा में लगी सेना एवं भारत तिब्बत सीमा पुलिस की चौकियां भी मुख्यधारा से कट गई है। सेना के अतिरिक्त घाटी के कई गांवों की आवाजाही भी इस वाहन पुल के टूटने से ठप हो गई है।
पुल के बहने की खबर मिलते ही बीआरओ की टीम ने मेजर परसुराम के नेतृत्व में मौके का निरीक्षण किया। उन्होंने बताया कि यह पुल कुछ वर्ष पहले ही बना था और लगभग 17 मीटर लंबा था। नदी से अत्यधिक ऊंचाई पर होने के बावजूद यह पुल बह गया है। उन्होंने भरोसा दिया कि सेना व ग्रामीणों की आवाजाही को सुचारू करने के लिए जल्द एक वैली पुल यहां पर बनाया जायेगा।
उत्तराखंड में लोगों की जान बचाने के लिए सेना द्वारा रेस्क्यू ऑपरेशन में उतारे गए चिनूक और एमआई-17 हेलीकॉप्टर्स काफी ताकतवर माने जाते हैं। चिनूक बहुउद्देश्यीय हेलीकॉप्टर है, जिसका इस्तेमाल दुर्गम और ज्यादा ऊंचाई वाले स्थानों पर जवानों, हथियारों, मशीनों तथा अन्य प्रकार की रक्षा सामग्री को ले जाने में किया जाता है। ये 20 हजार फुट की ऊंचाई तक उड़ान भर सकते हैं तथा 10 टन तक का वजन ले जा सकते हैं।
ये 1962 से प्रचलन में हैं। बोइंग ने समय-समय पर इनमें सुधार किया है, इसलिए आज भी करीब 25 देशों की सेनाएं इनका इस्तेमाल करती हैं। एमआई-17 हेलीकॉप्टर की बात करें तो यह भी काफी एडवांस्ड हेलीकॉप्टर है। इसका ज्यादातर इस्तेमाल ट्विन टर्बाइन ट्रांसपोर्ट हेलीकॉप्टर के साथ-साथ युद्ध में जवानों को मदद मुहैया कराने के लिए किया जाता है।