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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के आत्मविश्वास को पुनर्जीवित करने वाला जननायक

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विष्णुदत्त शर्मा

, बुधवार, 17 सितम्बर 2025 (10:01 IST)
मनुष्य को अपने मन से अपना उद्धार करना चाहिए, अपने आप को कभी नीचा नहीं गिराना चाहिए, क्योंकि वह स्वयं ही अपना मित्र और स्वयं ही अपना शत्रु है। गीता का यह उपदेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन की सच्ची व्याख्या करता है। उनका जीवन संघर्ष, साधना और राष्ट्रसेवा की प्रेरणादायक गाथा है। 17 सितंबर 1950 को गुजरात के छोटे से नगर वडनगर में जन्मे नरेंद्र दामोदरदास मोदी का बचपन संघर्ष और साधना से भरा था। पिता की चाय की दुकान में हाथ बँटाने वाले छोटे नरेंद्र ने कठिनाइयों को अवसर में बदलना सीखा। उनकी माँ हीराबेन मोदी का त्याग, सादगी और संस्कार उनके जीवन की अमूल्य धरोहर बने। माँ ने ही सिखाया कि ईमानदारी, श्रम और राष्ट्रभक्ति ही जीवन की सबसे बड़ी पूँजी है। यही शिक्षा आगे चलकर मोदी जी के व्यक्तित्व की रीढ़ बनी।

1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान जब सैनिक ट्रेन से गुजरते थे, तो बालक नरेंद्र उन्हें चाय पिलाते और मन ही मन यह संकल्प लेते कि बड़े होकर देश की सेवा करेंगे। बाल्यावस्था में ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए और राष्ट्रसेवा का संकल्प लिया। आपातकाल के दौरान उन्होंने तानाशाही सरकार के खिलाफ पत्रक बाँटे, कार्यकर्ताओं को संगठित किया और बुलंद आवाज़ उठाई। यह उनका पहला बड़ा राष्ट्रीय संघर्ष था, जिसने उनके व्यक्तित्व को और अधिक दृढ़ बनाया। गरीबी और कठिनाइयों से भरे बचपन ने उन्हें जीवन के कठोर पाठ सिखाए। लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी। संघ में बाल स्वयंसेवक से लेकर सक्रिय कार्यकर्ता तक का सफर उनके समर्पण का प्रमाण है। इन्हीं संघर्षों और साधना ने नरेंद्र मोदी को आज लोकनायक बनाया है।

गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी जी ने देश में विकास का एक नया मॉडल प्रस्तुत किया, जिसने न केवल राज्य बल्कि पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया। 2014 में वे भारत के प्रधानमंत्री बने और उसके बाद 2019 तथा 2024 में लगातार प्रचंड जनसमर्थन प्राप्त कर तीसरी बार देश की बागडोर संभाली। लोकतंत्र में यह जनता के विश्वास और नेतृत्व की स्वीकृति का स्पष्ट प्रमाण है। लोकतंत्र में जनादेश केवल मतदान की औपचारिकता नहीं, बल्कि जनता का विश्वासपत्र होता है। मोदी जी को लगातार तीन बार यह विश्वासपत्र मिला है।

पिछले एक दशक में मोदी सरकार ने गरीबों और वंचितों को केंद्र में रखकर अनेक योजनाएँ लागू कीं। जनधन योजना, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री आवास योजना और किसान सम्मान निधि जैसी पहलें करोड़ों लोगों के जीवन में वास्तविक बदलाव लाने में मील का पत्थर हैं। तकनीक आधारित पारदर्शिता से सरकारी सहायता अब सीधे लाभार्थियों तक पहुँच रही है। गांव-गांव का आत्मविश्वास बढ़ा है और आमजन पहली बार व्यवस्था के केंद्र में महसूस कर रहा है।गरीबों के जीवन में आए इस बदलाव का असर हर जगह देखा जा सकता है। यह सब मोदी जी की कार्यकुशलता और दूरदर्शिता का प्रमाण तो है ही, ये कार्य उन्हें देश के गरीबों का मसीहा बनाते हैं।

उल्लेखनीय है किमोदी जी के नेतृत्व में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय परिवर्तन हुए हैं। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने शिक्षा को कौशल आधारित, आधुनिक और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा दी है। देश में मेडिकल कॉलेजों, आईआईटी, आईआईएम और विश्वविद्यालयों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। आज शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों ही क्षेत्रों में भारत आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है और ब्रेन-ड्रेन की प्रवृत्ति कम हुई है।

लोकनायक मोदी जी ने सामाजिक सुधारों में भी कई साहसिक कदम उठाए। मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक की कुप्रथा से मुक्ति मिली। जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाकर राष्ट्रीय एकता को नई मजबूती दी गई। अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण भारत की सांस्कृतिक चेतना को पुनर्जीवित करता है। द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाना लोकतंत्र में समावेशिता का उदाहरण बना।सांस्कृतिक पुनर्जागरण की दिशा में काशी, केदारनाथ और अयोध्या का कायाकल्प, स्वच्छ भारत मिशन और योग दिवस जैसी पहलें भारत की सांस्कृतिक पहचान को वैश्विक मंच पर पुनर्स्थापित कर रही हैं।योग दिवस ने भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा को वैश्विक मान्यता दिलाई।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मोदी युग भारत की नई पहचान का प्रतीक है। कोविड काल में वैक्सीन मैत्री के तहत भारत ने न केवल अपने नागरिकों की रक्षा की, बल्कि अनेक देशों को जीवनरक्षक वैक्सीन पहुँचाकर वैश्विक मानवीय नेतृत्व का उदाहरण प्रस्तुत किया। एयर स्ट्राइक, अभिनंदन की सुरक्षित वापसी, धारा 370 का साहसिक निर्णय, डोकलाम सीमा पर दृढ़ रुख और ऑपरेशन सिंदूर की सफलता आदि इन घटनाओं ने दुनिया को यह संदेश दिया कि भारत अब किसी भी चुनौती से पीछे नहीं हटेगा। इससे भारतीय सेना और सुरक्षाबलों का मनोबल और भी ऊँचा हुआ तथा जनता का विश्वास और गहरा हुआ।

मोदी जी के नेतृत्व में विदेश नीति में भारत अब दर्शक नहीं, बल्कि निर्णायक शक्ति के रूप में उभरा है। "लुक ईस्ट" से "एक्ट ईस्ट" की ओर बढ़ते हुए भारत ने एशिया-प्रशांत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। टैरिफ विवादों और वैश्विक व्यापार मंचों पर भारत ने अपने किसानों और उद्योगों के हितों की रक्षा करते हुए आत्मविश्वासी छवि प्रस्तुत की है।

हाल ही में आर्थिक सुधारों में जीएसटीसुधार भी सबसे बड़ा कदम रहा। "वन नेशन, वन टैक्स" ने कर व्यवस्था को सरल और पारदर्शी बनाया है।साथ ही स्टार्टअप इंडिया और डिजिटल इंडिया ने उद्यमशीलता और नवाचार को प्रोत्साहित किया।

मोदी जी का सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का रहा। लंबे समय तक आयात पर निर्भर रहने वाले भारत ने आज तेजस लड़ाकू विमान, आकाश मिसाइल, ब्रह्मोस, अग्नि श्रृंखला और स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत जैसे आयुधों का निर्माण किया है। मेक इन इंडिया डिफेंस पहल से न केवल आत्मनिर्भरता बढ़ी है, बल्कि सेना का आत्मविश्वास भी मजबूत हुआ है। यह मोदी सरकार की स्पष्ट प्राथमिकता है कि भारत केवल खरीदार नहीं, बल्कि रक्षा तकनीक का निर्माता और निर्यातक भी बने।

इसके साथ ही स्वदेशी का आग्रह मोदी युग की आत्मा है। "वोकल फॉर लोकल" और "आत्मनिर्भर भारत" केवल नारे नहीं, बल्कि जनांदोलन बने। मोबाइल निर्माण से लेकर अंतरिक्ष तक भारत ने स्वदेशी तकनीक से अपनी पहचान बनाई। छोटे कुटीर उद्योगों से लेकर बड़े स्टार्टअप तक आज आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना साकार कर रहे हैं।

लोकतंत्र में लगातार तीन बार जनादेश पाना साधारण उपलब्धि नहीं है। यह दर्शाता है कि जनता प्रधानमंत्री की नीयत और नीति दोनों पर भरोसा करती है। आज भारत को विश्व में बैलेंसिंग पावर नहीं, बल्कि जिम्मेदार और निर्णायक शक्ति के रूप में देखा जाता है।

विश्वकर्मा जयंती के दिन जन्मे नरेंद्र मोदी वास्तव में नए भारत के विश्वकर्मा हैं। माँ के संस्कार, बचपन का संघर्ष, संघ का अनुशासन, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के रूप में प्रशासनिक साधना—इन सबने उन्हें राष्ट्रीय पुनर्निर्माण का शिल्पी बना दिया है। उन्होंने लोकशक्ति को आत्मविश्वास का नया शिखर दिया है।

मोदी का जीवन सिखाता है कि कठिन परिश्रम, अडिग संकल्प और राष्ट्रप्रेम से कोई भी व्यक्ति असाधारण ऊँचाइयों तक पहुँच सकता है। जब भारत 2047 में स्वतंत्रता का शताब्दी वर्ष मनाएगा, तब नरेंद्र मोदी का योगदान स्वर्ण अक्षरों में दर्ज होगा। वे केवल भारत के प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि नए भारत के शिल्पी और वैश्विक नेतृत्व के प्रतीक हैं।
-लेखक भाजपा मध्यप्रदेश के पूर्व अध्यक्ष एवं खजुराहो लोकसभा से सांसद हैं

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