आगर में ब्लैक फंगस के संदिग्धों के बीच एस्परजिलस फंगस का मरीज मिलने के बाद अब इसी फंगस की चर्चा है। यह मीडिया और सोशल मीडिया में ट्रेंड कर रहा है। इसे व्हाइट फंगस का ही एक रूप माना जाता है।
यह ब्लैक फंगस से कुछ कम खतरनाक मगर समान लक्षणों वाला होता है। इसका इलाज भी अलग है। ब्लैक फंगस के रोगियों को दिए जाने वाले इंजेक्शन आदि राहत नहीं दे पाते हैं।
दरअसल आगरा में एसएन मेडिकल कॉलेज में शुक्रवार को लगभग 40 साल के मरीज का ऑपरेशन किया गया था। यह मरीज खैर अलीगढ़ का है। ऑपरेशन के बाद इसके नमूने बायोप्सी के लिए माइक्रो बायोलॉजी लैब भेजे गए थे। शनिवार को इसकी रिपोर्ट आई है। रिपोर्ट के मुताबिक मरीज में ब्लैक फंगस की पुष्टि नहीं हुई है, बल्कि उसमें एस्परजिलस पाया गया है। डॉक्टर इसे व्हाइट फंगस का ही एक रूप मानते हैं।
ब्लैक और व्हाइट फंगस की अपेक्षा यह थोड़ा कम खतरनाक है। लेकिन इसमें अन्य फंगस संक्रमण की तरह इलाज नहीं होता। ब्लैक फंगस में एंफोटेरेसिन-बी इंजेक्शन का प्रयोग किया जाता है। इसमें बोरी कोनोजोल टेबलेट का इस्तेमाल किया जाता है। शेष प्रक्रियाएं वही रहती हैं। बायोप्सी रिपोर्ट आने के बाद इस मरीज का इलाज भी अब दूसरे तरीके से ही किया जा रहा है।
ये हैं व्हाइट फंगस के दो रूप
व्हाइट फंगस के दो रूप होते हैं। कैंडिंडा और एस्परजिलस। कैंडिंडा घातक होता है जिससे त्वचा में इन्फेक्शन, मुंह में छाले, छाती में संक्रमण, अल्सर जैसी समस्या हो सकती है। एस्परजिलस कम घातक है। इसका संक्रमण फेफड़ों, सांस नली, आंख की कार्निया को प्रभावित करता है। इससे अंधत्व का खतरा रहता है।
कहां होता है मौजूद?
बीमारियों को ट्रिगर करने वाला मोल्ड, एस्परगिलस, घर के अंदर और बाहर हर जगह मौजूद होता है। इस संक्रमण में अधिकांश लोगों के शरीर में एस्परगिलस बीजाणु सांस के ज़रिए प्रवेश कर जाते हैं, हालांकि, वे बीमार नहीं पड़ते लेकिन इसमें भी इम्यून सिस्टम का बड़ा रोल है। यह फंगस गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट (जठरांत्र पथ) को भी संक्रमित कर सकता है।
किसे है संक्रमण का खतरा?
हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार, COVID-19 रोगियों में तमाम तरह के फंगल इंफेक्शन का मुख्य कारण स्टेरॉयड का प्रयोग करना और मरीज का कमजोर इम्यून सिस्टम है। साथ ही इसके पीछे ऑक्सीजन की आपूर्ति को हाइड्रेट करने के लिए साफ पानी इस्तेमाल न किया जाना भी एक कारण बताया जा रहा है। जैसा कि आप जानते ही हैं COVID-19 संक्रमित मरीज के इलाज में स्टेरॉयड के इस्तेमाल की सलाह दी जाती है जिसके चलते अब तमाम लोग ब्लैक फंगस का शिकार हो रहे हैं।
हेल्थ एक्सपर्ट्स को स्टेरॉयड के जरूरत से ज़्यादा इस्तेमाल के प्रति सावधानी बरतने को कह रहे हैं। पल्मोनरी एस्परगिलोसिस संक्रमण का खतरा भी कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली या फेफड़ों की बीमारी वाले लोगों को ज्यादा है।
कैसे हो सकता है बचाव?
- कामकाजी हैं तो दो मिनट मास्क उतारकर गहरी सांस लेते रहें।
- इसके लिए कार्यालय की छत या अन्य सुरक्षित स्थान ठीक रहेगा।
- घर आने पर मास्क उतारने के बाद हल्के हाथों से ब्रश जरूर करें।
- ब्रश करने के बाद पर्याप्त पानी पिएं, दो से तीन बार भी कर सकते हैं।
- खाना खाने के बाद अंगुली से दांतों की साधारण मालिश जरूर करें।
- बीटाडीन से दिन में दो से तीन बार गरारे करने से भी बचाव होगा।