नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2019 से पहले अयोध्या के विवादित राम मंदिर-बाबरी मस्जिद को लेकर मोदी सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर कहा है कि विवादित जमीन छोड़कर बाकी बची जमीन मालिकों को वापस लौटाई जाए। केंद्र ने कहा है कि 67 एकड़ जमीन गैर विवादित है और इसे राम जन्मभूमि न्यास को लाटौई जाए। बाकी के बचे 0.313 एकड़ जमीन, जो विवादित है, इस पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करे।
आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए यह मोदी सरकार का बड़ा कदम माना जा रहा है। राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष राम विलास वेदांती ने सरकार के इस कदम पर खुशी जताते हुए कहा कि यह सरकार का स्वागतयोग्य कदम है।
केंद्र सरकार का कहना है कि वह गैर विवादित जमीन मूल मालिकों को लौटाना चाहती है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से यथास्थिति रखने का आदेश वापस लेने की मांग की है। गैरविवादित जमीन में से ज्यादातर जमीन रामजन्मभूमि न्यास की है। ऐसी संभावना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट केंद्र की मांग पर हामी भर देती है तो राम मंदिर का निर्माण शुरू हो सकता है।
अयोध्या मामले की नई संवैधानिक 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ सुनवाई कर रही है। न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एसए नजीर इसमें शामिल हैं। ये दोनों राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले पर सुनवाई के लिए पूर्व में गठित तीन सदस्यीय पीठ का हिस्सा थे।
न्यायमूर्ति भूषण और न्यायमूर्ति नजीर तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा (अब सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता वाली उस तीन सदस्यीय पीठ का हिस्सा थे, जिसने 27 सितंबर 2018 को 2:1 के बहुमत से शीर्ष अदालत के 1994 के एक फैसले में की गई एक टिप्पणी को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास पुनर्विचार के लिए भेजने से मना कर दिया था।