चंडीगढ़/ गुड़गांव। डेरा सच्चा सौदा का मुखिया और तथाकथित गुरमीत राम रहीम कितना शातिर है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसने 'रेड कोड' के जरिए पुलिस हिरासत से फरार होने का फुलप्रूफ प्लान बनाकर रखा था लेकिन पुलिस ने उसकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
राम रहीम को इसका अंदाजा था कि उसे सजा मिल सकती है, इसीलिए उसने 20 साल की कैद का ऐलान होते ही हनीप्रीत से 'लाल बैग' मांगा, इस कोड वर्ड को पहले से ही पुलिस जानती थी, लिहाजा उसने इस पाखंडी के फरार होने के किसी भी मंसूबे को कामयाब नहीं होने दिया।
'लाल बैग' मांगने का मतलब यही था कि वह दोषी करार दिया गया है और यह संदेश उसके समर्थकों और सुरक्षाकर्मियों तक पहुंचा दिया जाए। समर्थक हिंसा पर उतारूं हो और हंगामा करें ताकि वह इसका लाभ लेकर फरार हो सके।
राम रहीम नामक इस 'रसिया बाबा' को पुलिस पंचकूला की विशेष सीबीआई अदालत से रोहतक की जेल तक तभी ले जा सकी जब उसने बाबा के सुरक्षाकर्मियों की ओर से उसे भगाने का 'प्लान' नाकाम नहीं कर दिया। बाबा के मंसूबों को नाकाम करने के लिए पुलिस उपायुक्त (अपराध) सुमित कुमार की अगुवाई में एक चौकस टीम पहले से ही तैयार खड़ी थी, जो बाबा के कमांडो से निपट सके।
पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी) केके राव ने गुड़गांव में स्वीकार किया कि जैसे ही गुरमीत को दोषी करार दिया गया, वैसे ही उसने सिरसा से लाया गया एक ‘लाल बैग’मांगा। राव ने कहा कि‘डेरा प्रमुख ने यह कहते हुए बैग मांगा कि उसमें उसके कपड़े रखे हुए हैं। दरअसल यह उसकी ओर से अपने लोगों को किया गया एक इशारा था कि वे उसके समर्थकों में उसे दोषी ठहराए जाने की खबर फैला दें, ताकि वे उपद्रव पैदा कर सकें।’
उन्होंने कहा कि जब गाड़ी से बैग बाहर निकाला गया तो करीब दो-किलोमीटर दूर से आंसू गैस के गोले दागे जाने की आवाजें सुनाई देने लगीं। आईजीपी ने दावा किया, ‘तभी हमें बात समझ आ गई कि इस इशारे के पीछे कोई मतलब है।’
उन्होंने कहा कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का संदेह उस वक्त और गहरा गया, जब गुरमीत और उसकी गोद ली गई बेटी हनीप्रीत पंचकूला अदालत परिसर के गलियारे में काफी लंबे समय तक खड़े रहे, जबकि उन्हें वहां खड़ा नहीं होना था।
राव ने बताया कि ‘वे गाड़ी में बैठने से पहले समय ले रहे थे ताकि उसके लोग यह बात फैला सकें कि वह अदालत से बाहर निकलने वाला है। उन्हें बताया गया कि आप यहां नहीं खड़े हो सकते। भीड़ करीब दो-तीन किलोमीटर दूर थी और वह नजदीक भी आ सकती थी। हम सेक्टर एक में कोई हिंसा नहीं चाहते थे, क्योंकि इससे मरने वालों की संख्या बहुत बढ़ सकती थी।’
उन्होंने कहा कि पुलिस ने गुरमीत को उसकी गाड़ी में बिठाने की बजाय पुलिस उपायुक्त (अपराध) सुमित कुमार की गाड़ी में बिठाने का फैसला किया। जब हम उसे गाड़ी में बिठा रहे थे कि तभी कुछ कमांडो, जो काफी साल से डेरा प्रमुख के साथ तैनात थे, ने गुरमीत को घेर लिया।
राव ने कहा कि ‘इसके बाद, सुमित कुमार और उनकी टीम की उनसे झड़प हुई। उसके कमांडो को पीटा भी गया। हमने ख्याल रखा कि कोई फायरिंग नहीं हो। डेरा प्रमुख के कमांडो हथियारबंद थे।’ आईजी ने बताया कि पुलिस को एक खतरे की भनक गुरमीत के काफिले की 70-80 गाड़ियों से लगी। ये गाड़ियां पास के एक थिएटर परिसर में रखी थीं।