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बिहार मतदाता सूची विवाद : 3 करोड़ मतदाताओं पर संकट, महागठबंधन का चक्का जाम और चुनाव आयोग का नया निर्देश

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हमें फॉलो करें Election Commission's new instructions in Bihar cause difficulty for voters

वेबदुनिया न्यूज डेस्क

, सोमवार, 7 जुलाई 2025 (13:46 IST)
Election Commission new instructions in Bihar cause difficulty for voters: चुनाव आयोग द्वारा बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections 2025) से पहले मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण कराए जाने के फैसले को लेकर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं। चुनाव आयोग के इस सख्त आदेश का कई राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने विरोध किया। आरजेडी, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इन संगठनों का कहना है कि यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन करती है।
 
राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) नेता और बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने इस पुनरीक्षण प्रक्रिया को “बिहारी अस्मिता पर हमला” करार दिया है। 4 जुलाई 2025 को उन्होंने कहा कि पूरे देश में सिर्फ बिहारियों को ही अपनी नागरिकता साबित करनी पड़ रही है? चाहे आप हिंदू हों, मुस्लिम हों, सिख हों, ईसाई हों या फिर सामान्य वर्ग, पिछड़ा, दलित या अति पिछड़ा वर्ग से हों, बिहार के हर व्यक्ति को अपनी भारतीय नागरिकता साबित करनी होगी। तेजस्वी ने सवाल उठाया कि अगर मौजूदा मतदाता सूची फर्जी है, तो क्या 2025 से पहले बिहार में हुए सभी चुनाव भी फर्जी थे? उन्होंने इसे एक 'बड़ा षड्यंत्र' बताया और कहा कि इससे लगभग 4.5 करोड़ प्रवासी बिहारियों और गरीबों के वोटिंग अधिकार छिन सकते हैं। तेजस्वी ने यह भी चिंता जताई कि उनकी पत्नी, जो हाल ही में बिहार की मतदाता बनी हैं, का नाम भी सूची से हट सकता है, क्योंकि उनके पास जन्मस्थान से संबंधित दस्तावेज नहीं हैं।
 
9 जुलाई को चक्का जाम : तेजस्वी ने 9 जुलाई 2025 को महागठबंधन द्वारा 'चक्का जाम' आंदोलन की घोषणा की है, ताकि इस “षड्यंत्र” के खिलाफ आवाज उठाई जा सके। उन्होंने चुनाव आयोग से पारदर्शिता की मांग की और सुझाव दिया कि आयोग एक डैशबोर्ड बनाए, जिसमें मतदाता सूची पुनरीक्षण की प्रगति की नियमित जानकारी दी जाए।
आरजेडी की याचिका : आरजेडी नेता तेजस्वी यादव और सांसद मनोज झा ने सवाल उठाया कि यह प्रक्रिया सिर्फ बिहार में ही क्यों लागू की जा रही है, जबकि 2003 में पूरे देश में ऐसा पुनरीक्षण हुआ था। उन्होंने इसे गरीब और वंचित वर्गों के खिलाफ भेदभावपूर्ण बताया।
 
एडीआर की आपत्ति : एडीआर ने कहा कि यह प्रक्रिया मतदाता सूची में नाम जोड़ने की जिम्मेदारी नागरिकों पर डालती है, जो असंवैधानिक है। अनुमान है कि इससे लगभग 3 करोड़ मतदाता, खासकर ग्रामीण और हाशिए के समुदाय, मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं।
 
पीयूसीएल का तर्क : पीयूसीएल ने इसे लोकतंत्र पर हमला बताते हुए कहा कि यह प्रक्रिया मताधिकार को मौलिक अधिकार से हटाकर नौकरशाही की मनमानी पर निर्भर बनाती है।
 
लगातार विपक्षी दलों द्वारा विरोध के बाद भारत के चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, जिससे लाखों गरीब और वंचित मतदाताओं को राहत मिलने की उम्मीद है। इस फैसले के तहत अब मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने के लिए अनिवार्य दस्तावेजों की कमी होने पर भी फॉर्म जमा किया जा सकता है। दस्तावेज बाद में जमा किए जा सकते हैं और स्थानीय जांच के आधार पर भी नाम जोड़ा जा सकता है। यह कदम व्यापक विरोध और सामाजिक संगठनों की चिंताओं के बाद उठाया गया है, जिनका कहना था कि दस्तावेजों की सख्त शर्तों के कारण गरीब, दलित, आदिवासी और प्रवासी मजदूरों के वोटिंग अधिकार खतरे में पड़ सकते हैं।
 
चुनाव आयोग का नया निर्देश : चुनाव आयोग ने 6 जुलाई 2025 को बिहार के सभी प्रमुख समाचार पत्रों में एक विज्ञापन के माध्यम से घोषणा की कि मतदाता बिना अनिवार्य दस्तावेजों के भी मतदाता सूची में शामिल हो सकते हैं। विज्ञापन में कहा गया है कि यदि मतदाता आवश्यक दस्तावेज जमा करते हैं, तो निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (ERO) के लिए प्रक्रिया आसान होगी। लेकिन अगर दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं, तो ईआरओ स्थानीय जांच या अन्य प्रमाणों के आधार पर नाम जोड़ने का निर्णय ले सकते हैं।
 
महत्वपूर्ण तारीखें:
  • 26 जुलाई 2025 : फॉर्म जमा करने की अंतिम तारीख।
  • 1 अगस्त 2025 : प्रारूप मतदाता सूची का प्रकाशन।
  • 1 अगस्त से 1 सितंबर 2025 : दावों और आपत्तियों की अवधि, जिसमें अधूरे दस्तावेज जमा किए जा सकते हैं।
  • 30 सितंबर 2025 : अंतिम मतदाता सूची का प्रकाशन।
 
यदि कोई व्यक्ति बिना दस्तावेजों के फॉर्म जमा करता है, तो ईआरओ उसे नोटिस भेजेगा और दस्तावेज जमा करने का समय देगा। यह प्रक्रिया खासकर उन लोगों के लिए राहतकारी है, जिनके पास जन्म प्रमाणपत्र, पासपोर्ट या अन्य सरकारी दस्तावेज नहीं हैं।
 
पहले क्या थे नियम?
चुनाव आयोग ने 24 जून 2025 को आदेश दिया था कि जिन लोगों का नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं है (लगभग 2.93 करोड़ लोग), उन्हें मतदाता पात्रता साबित करने के लिए 11 दस्तावेजों में से कम से कम एक जमा करना होगा। इनमें शामिल थे...
  • जन्म प्रमाणपत्र
  • पासपोर्ट
  • सरकारी कर्मचारियों का पहचान पत्र
  • पेंशन आदेश
  • स्थायी निवास प्रमाणपत्र
  • जाति प्रमाणपत्र
  • परिवार रजिस्टर
  • सरकारी आवास/भूमि आवंटन प्रमाणपत्र
 
हालांकि, आधार कार्ड, राशन कार्ड और वोटर आईडी जैसे आम दस्तावेजों को इस सूची में शामिल नहीं किया गया था, जिससे गरीब और हाशिए के समुदायों के लिए मुश्किलें बढ़ गई थीं। बिहार में 2000 तक केवल 3.7% जन्म पंजीकृत थे और 2007 तक यह आंकड़ा 25% तक पहुंचा था। ऐसे में अधिकांश लोगों के पास इनमें से कोई भी दस्तावेज नहीं था।
 
प्रक्रिया की खामियां और आलोचनाएं
  • अव्यावहारिक समयसीमा : बिहार में मानसून और बाढ़ के समय यह प्रक्रिया शुरू की गई है, जब कई लोग मजदूरी के लिए बाहर होते हैं। इतने कम समय में दस्तावेज जुटाना असंभव है।
  • दस्तावेजों की कमी : आधार और राशन कार्ड जैसे आम दस्तावेजों को मान्य न करना गरीब, दलित, आदिवासी, और मुस्लिम समुदायों के लिए अन्यायपूर्ण है।
  • प्रशासनिक कमियां : 80,000 बूथ लेवल अधिकारियों को केवल 3 दिन में प्रशिक्षित करना और हर घर तक पहुंचना अव्यावहारिक है।
  • चुनावी दबाव : एडीआर और कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने इसे चुनावी दबाव में लिया गया फैसला बताया, जो बिहार विधानसभा चुनाव (नवंबर 2025) से ठीक पहले मतदाता सहभागिता को प्रभावित कर सकता है।
प्रभाव और चिंताएं : प्रो. जगदीप छोकर जैसे विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रक्रिया से बिहार के 75-80% मतदाता वोट देने के अधिकार से वंचित हो सकते हैं। खासकर गरीब, पिछड़े, और प्रवासी मजदूर सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। इससे न केवल मतदाता सहभागिता कम हो सकती है, बल्कि चुनाव परिणामों की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठ सकते हैं।
 
निष्कर्ष : चुनाव आयोग का नया फैसला, जिसमें दस्तावेजों की अनिवार्यता को शिथिल किया गया है, लाखों मतदाताओं के लिए राहतकारी हो सकता है। हालांकि, इस प्रक्रिया को पूरी तरह समावेशी और पारदर्शी बनाने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट में चल रही याचिकाएं और सामाजिक संगठनों की चिंताएं दर्शाती हैं कि मतदाता सूची पुनरीक्षण की प्रक्रिया में सुधार की गुंजाइश है। चुनाव आयोग का असली उद्देश्य नागरिकों को वोट देने में मदद करना होना चाहिए, न कि उनके अधिकारों को सीमित करना।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala 

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