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उत्तरप्रदेश में भाजपा को मोदी का सहारा, क्या है चुनौती...

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नई दिल्ली , रविवार, 15 जनवरी 2017 (15:57 IST)
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में प्रचंड सीटों के साथ केंद्र में भाजपा को सत्ता में स्थापित करने वाले उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव में पार्टी सामाजिक न्याय और सोशल इंजीनियरिंग के जरिए जाति आधारित गणित, विकास और सामाजिक समरसता के चुनावी मंत्र के साथ सत्ता में 14 वर्ष के बनवास को खत्म करने के लिए कमर कस रही है। हालांकि मुख्यमंत्री का कोई चेहरा नहीं होना, दूसरे दलों से आए नेताओं की भीड़ और नोटबंदी पार्टी के लिए चुनौती बनी हुई है।
 
भाजपा के राष्ट्रीय सचिव श्रीकांत शर्मा ने कहा कि इस बार का चुनाव किसी जाति, संप्रदाय या परिवारवाद के आधार पर नहीं बल्कि केवल 'विकासवाद' के नाम पर होगा। पिछले 15 सालों में सपा और बसपा दोनों ने राज्य की जनता को धोखा दिया है इसलिए उत्तरप्रदेश को सबसे अधिक सुशासन और विकास की जरूरत है।
 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा का नव उदारवाद से पुनर्वितरणकारी न्याय की ओर प्रस्थान अकेले नोटबंदी के सहारे नहीं आया है। मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भाजपा के सियासी समाजशास्त्र को दोबारा गढ़ा है और उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए बड़े पैमाने पर सोशल इंजीनियरिंग के माध्यम से जाति आधारित गणित को नई शक्ल दी है।
 
हिन्दी पट्टी में मंडल राजनीति से प्रेरित तीसरे मोर्चे की राजनीति के जवाब में आज भाजपा ने मोदी के नेतृत्व में नया चोला अपनाया है। इसका उदाहरण भाजपा शासित राज्यों में आधे मुख्यमंत्री और इन राज्यों में अधिकतर प्रदेश अध्यक्ष ओबीसी समुदाय से हैं।
 
उत्तरप्रदेश में भाजपा हर मंच पर जिन नेताओं को आगे कर रही है, उनमें केंद्रीय मंत्री एवं झांसी से सांसद उमा भारती, बसपा से भाजपा में आए नेता स्वामी प्रसाद मौर्य, अपना दल की नेता एवं केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य शामिल हैं। इसके बावजूद उत्तरप्रदेश में भाजपा ने अब तक मुख्यमंत्री पद का कोई चेहरा पेश नहीं किया है। पार्टी को बिहार चुनाव में मुख्यमंत्री पद का कोई चेहरा नहीं पेश किए जाने का खामियाजा उठाना पड़ा था।
 
बसपा, कांग्रेस, सपा जैसे दलों के विधायकों और नेताओं का भाजपा में शामिल होना और उनका चुनाव में उतरने की तैयारी करना पार्टी के अंदर एक चुनौती का विषय है जिसकी छाप टिकट बंटवारे पर दिखने की संभावना है। बसपा, सपा, कांग्रेस से पाला बदलकर भाजपा में शामिल हुए विधायकों और नेताओं में बसपा से आए राजेश त्रिपाठी, बाला अवस्थी, महावीर राणा, रोशललाल वर्मा, रोमी साहनी, ओम कुमार, धर्मसिंह सैनी, रमेश कुशवाहा, रजनी देवी, बृजेश कुमार वर्मा, ममतेश शाक्य, गेंदालाल चौधरी, राधाकृष्ण शर्मा और छोटेलाल वर्मा प्रमुख हैं।
 
कांग्रेस से आए विधायकों में संजय प्रसाद जायसवाल, सपा से आए विधायकों में शेर बहादुर सिंह, श्याम प्रकाश और डॉ. अजय कुमार पाशी प्रमुख हैं। दूसरे दलों से भाजपा में आए कई नेताओं को पार्टी ने महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी भी है जिनमें कौशल किशोर, स्वामी प्रसाद मौर्य, दारासिंह चौहान, राजेश वर्मा, ब्रजेश पाठक और रीता बहुगुणा जोशी शामिल हैं। बावजूद इसके, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अब भी राज्य में भाजपा की कामयाबी की कुंजी हैं।
 
केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि 'बबुआ अखिलेश यादव और बुआ मायावती' दोनों ने उत्तरप्रदेश को बर्बाद कर दिया। दोनों की सरकारों के दौरान कानून व्यवस्था नाम की चीज नजर नहीं आई।
 
समाजवादी पार्टी की सरकार राज्य में जमीन और खनन माफिया पर लगाम लगाने में नाकाम रही है। उन्होंने कहा कि 'बुआ और बबुआ', 'चाचा और भतीजा' का खेल बहुत हो गया। जनता इनसे ऊब चुकी है और राज्य की सत्ता में परिवर्तन चाहती है। उत्तरप्रदेश की जनता ने इस बार भाजपा को जनादेश देने का मन बना लिया है। मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले का भी राज्य में चुनाव पर असर पड़ने की आशंका व्यक्त की जा रही है। 
 
अखिलेश सरकार पर निशाना साधते हुए श्रीकांत शर्मा ने कहा कि एक तरफ अखिलेश यादव विकास का ढोल पीटते हैं तो दूसरी तरफ कांग्रेस और अजीत सिंह के राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन का जुगाड़ कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव और सपा को जमीनी हकीकत का पता चल गया है और पराजय साफ दिख रही है इसलिए मुख्यमंत्री जुगाड़ से सत्ता में वापसी की कवायद में लगे हैं। 
 
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 1991-92 में राम मंदिर आंदोलन से उपजी लहर के बाद ओबीसी समुदाय के समर्थन के आधार पर भाजपा उत्तरप्रदेश में सत्ता में आई थी और इसके बाद भाजपा नेता कल्याण सिंह ने पार्टी के लिए ओबीसी वोट बैंक को मजबूत बनाने का काम किया था। साल 2002 से 2014 के बीच ओबीसी समुदाय धीरे-धीरे भाजपा के पाले से अलग होते गए और राज्य में पार्टी ढलान पर आ गई।
 
पार्टी ने सामाजिक आर्थिक जनगणना के आंकड़ों का अध्ययन करने के बाद इसके आधार पर जनधन योजना, मुद्रा बैंक, प्रधानमंत्री जीवन सुरक्षा योजना, उज्ज्वला योजना, दलित उद्यमियों के लिए प्रावधान, बेटी पढ़ाओ- बेटी बचाओ कार्यक्रम आदि शुरू किए हैं ताकि इनका फायदा पिछड़ा वर्ग समेत गरीब तबकों को मिले और फिर वह खुद इसका चुनावी फायदा हासिल कर सके। 
 
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा उम्मीद लगाए हुए है कि सामाजिक समरसता के नए चुनावी मंत्र से वह राज्य में 14 साल के 'बनवास' का सिलसिला इस बार तोड़ेगी। (भाषा)
 

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