यूं तो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की स्थापना 6 अप्रैल 1980 में हुई है, लेकिन इसके मूल में श्यामाप्रसाद मुखर्जी द्वारा 1951 में निर्मित भारतीय जनसंघ ही है। इसके संस्थापक अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी रहे, जबकि मुस्लिम चेहरे के रूप में सिकंदर बख्त पहले महासचिव बने।
अटलबिहारी वाजपेयी के बाद लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कुशभाऊ ठाकरे, बंगारू लक्ष्मण, जना कृष्णमूर्ति, वेंकैया नायडू, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, अमित शाह और जगत प्रकाश नड्डा पार्टी अध्यक्ष बने। आडवाणी सर्वाधिक तीन बार पार्टी अध्यक्ष रहे जबकि राजनाथ दो बार भाजपा अध्यक्ष बने। वर्तमान में जेपी नड्डा अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
2 सीटों से शुरू हुआ सफर : स्थापना के चार साल बाद हुए 1984 के चुनाव में भाजपा को मात्र 2 सीटें ही मिल पाई थीं। नौवीं लोकसभा के लिए 1989 में हुए चुनाव में भाजपा ने अपनी स्थिति में सुधार किया और 85 सीटों पर जीत हासिल की। हर नए लोकसभा चुनाव के साथ भाजपा की सीटें बढ़ती रहीं।
आडवाणी की यात्रा से बढ़ा जनाधार : भाजपा की सफलता का सबसे ज्यादा श्रेय लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा को जाता है। वाजपेयी की उदारवादी नीतियों से अपेक्षित सफलता नहीं मिलने के बाद पार्टी ने कट्टर हिन्दुत्व के रास्ते पर चलने का फैसला किया। 1984 में पार्टी की कमान लालकृष्ण आडवाणी को सौंपी गई। 1990 में आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक की रथयात्रा की शुरुआत की। भाजपा के लिए यह यात्रा टर्निंग पॉइंट साबित हुई।
आडवाणी की यह यात्रा अयोध्या पहुंचती इससे पहले ही इसे बिहार में रोक दिया गया। हालांकि तब तक भाजपा के पक्ष में पूरे देश में माहौल बन चुका था। इसी दौरान केन्द्र में भाजपा और वामपंथी दलों के समर्थन से केन्द्र में वीपी सिंह के नेतृत्व में सरकार चल रही थी। भाजपा के समर्थन वापस लेने के बाद वीपी सिंह की सरकार गिर गई।
भाजपा पहली बार 150 के पार : 1996 में 161 सीटें हासिल कर भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरी और कई अन्य दलों के सहयोग से अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनी। हालांकि यह सरकार 13 दिन ही चल पाई। वाजपेयी के नेतृत्व में 1998 में एक बार फिर एनडीए की सरकार बनी, लेकिन यह सरकार भी 13 महीने से ज्यादा नहीं चल पाई।
1999 में मध्यावधि चुनाव हुए और भाजपा 182 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। अटल बिहारी वाजपेयी एक बार फिर प्रधानमंत्री बने। इस बार अटल सरकार ने अपना कार्यकाल तो पूरा किया, लेकिन 5 साल पूरे होने से पहले ही चुनाव करा लिए गए। दरअसल, 'शाइनिंग इंडिया' से मुग्ध भाजपा को उम्मीद थी कि वह चुनाव जीत जाएगी, लेकिन समय से 6 महीने पहले करवाए गए चुनाव में उसे सफलता नहीं मिली और इस बार पार्टी 138 सीटों पर सिमट गई। 2004 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में संप्रग की सरकार बनी।
2014 में मोदी युग की शुरुआत : वर्ष 2014 में भाजपा को मोदी के रूप में एक नया और 'चमत्कारी' चेहरा मिला। महंगाई के चलते संप्रग का विरोध और गुजरात के विकास मॉडल के सहारे मोदी दिल्ली की सत्ता तक पहुंच गए। यह पहला मौका था जबकि किसी गैर कांग्रेसी दल की पूर्ण बहुमत (282 सीट) की सरकार बनी थी। 2019 में भाजपा की जीत का ग्राफ और चढ़ गया। उसे अकेले के दम पर 303 सीटें मिलीं, जबकि गठबंधन सहयोगियों के साथ यह आंकड़ा बढ़कर 352 तक पहुंच गया।
2024 में राम मंदिर तुरुप का इक्का : 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अयोध्या का राम मंदिर श्रद््धालुओं के दर्शन के लिए खोल दिया जाएगा। श्रद्धालु रामलला को एक भव्य और विशाल मंदिर में देख पाएंगे। ऐसे में माना जा रहा है कि राम मंदिर 2024 के चुनाव में भाजपा के लिए तुरुप का पत्ता साबित हो सकता है। मोदी सरकार की रीति-नीति भी चुनाव का मुद्दा रहेंगी। हालांकि जिस तरह विपक्ष एकजुट हो रहा है, उससे ऐसा तो नहीं लगता कि भाजपा 2019 जैसा प्रदर्शन दोहरा पाएगी।