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‘ब्लू इकॉनॉमी’ पॉलिसी ड्राफ्ट पर पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा सुझाव आमंत्रित

हमें फॉलो करें ‘ब्लू इकॉनॉमी’ पॉलिसी ड्राफ्ट पर पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा सुझाव आमंत्रित
, गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021 (13:14 IST)
नई दिल्ली, भविष्य में जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जमीनी संसाधन पर्याप्त नहीं होंगे। इसी को दृष्टि में रखते हुए आज मानव महासागरों में जीवन के नए संसाधनों की तलाश में जुटा है।

महासागर में मानव के लिए अपार संभावनाएं निहित हैं। भारत, तीन तरफ से समुद्र से घिरा एक विशाल प्रायद्वीप है। भारतीय समुद्र तट की कुल लम्बाई 7516.6 किलोमीटर है, जिसमें भारतीय मुख्य भूमि का तटीय विस्तार 6300 किलोमीटर है, तथा द्वीप क्षेत्र अंडमान निकोबार एवं लक्षद्वीप का संयुक्त तटीय विस्तार 1,216.6 किलोमीटर है।

स्वाभाविक है कि यह विशाल समुद्र तटीय देश अपने विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्राचीन काल से ही महासागरों पर निर्भर करता आया है। भविष्य की जरूरतों एवं भारतीय अर्थव्यवस्था में समुद्री संसाधनों की भागीदारी बढ़ाने के लक्ष्य से भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने एक ‘ब्लू इकोनॉमी’ पॉलिसी ड्राफ्ट तैयार किया है।

‘ब्लू इकॉनमी’ पॉलिसी का यह मसौदा देश में उपलब्ध समुद्री संसाधनों के उपयोग के लिए भारत सरकार द्वारा अपनायी जा सकने वाली दृष्टि और रणनीति को रेखांकित करता है। वहीं, इसका उद्देश्य भारत के जीडीपी में ‘ब्लू इकॉनमी’ के योगदान को बढ़ावा देना, तटीय समुदायों के जीवन में सुधार करना, समुद्री जैव विविधता का संरक्षण करना और समुद्री क्षेत्रों और संसाधनों की राष्ट्रीय सुरक्षा बनाए रखना भी है।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) ने पॉलिसी के ड्राफ्ट को हितधारकों एवं आमजन से सुझाव एवं राय आमंत्रित करने हेतु सार्वजनिक कर दिया है। यह ड्राफ्ट पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के विभिन्न संस्थानों की वेबसाइट और सोशल मीडिया हैंडल सहित कई अन्य प्लेटफॉर्म पर परामर्श के लिए उपलब्ध है। पॉलिसी मसौदे पर अपने विचार/सुझाव 27 फरवरी 2021 तक दिए जा सकते हैं।

पॉलिसी का मसौदा, भारत सरकार के ‘विजन ऑफ न्यू इंडिया 2030’ के अनुरूप तैयार किया गया है। मसौदा में राष्ट्रीय विकास के दस प्रमुख आयामों में से एक के रूप में ‘इकॉनमी को उजागर किया है। नीति की रूपरेखा भारत की अर्थव्यवस्था के समग्र विकास को प्राप्त करने के लिए कई प्रमुख क्षेत्रों में नीतियों पर जोर देती है। जिसमें नेशनल अकाउटिंग फ्रेमवर्क फॉर दी ब्लू इकॉनमी इकोनॉमी ऐंड ओशियन गवर्नेंस, कस्टम मरीन स्पेसिअल प्लानिंग एंड टूरिज्म, मरीन फिशरीज , एक्वाकल्चर एंड  फिश प्रोसेसिंग आदि शामिल है।

दरअसल भारत की भौगोलिक स्थिति ब्लू इकॉनमी के लिए अत्यंत अहम है। भारत के 29 राज्यों में से 9 राज्य ऐसे है जिसकी सीमा समुद्र से लगती हैं। वही देश में 2 प्रमुख बंदरगाहों सहित लगभग 199 बंदरगाह हैं, जहां हर साल लगभग 1,400 मिलियन टन का व्यापार जहाजों द्वारा होता हैं।

विशाल समुद्री हितों के साथ ब्लू इकोनॉमी भारत की आर्थिक वृद्धि में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह देश की जीडीपी को बढ़ाने में भी सक्षम हो सकती है। इसलिए भारत की ब्लू इकोनॉमी का मसौदा आर्थिक विकास और कल्याण के लिए देश की क्षमता को गति देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

भारत सहित संयुक्त राष्ट्र के 17 सदस्य  देशों ने सतत विकास लक्ष्यों को अपनाया है, जिन्हें ग्लोबल गोल्स के रूप में भी जाना जाता है। सदस्यों द्वारा 2015 में प्रण लिया गया कि गरीबी को समाप्त करने के लिए कार्रवाई करेंगे, पृथ्वी की रक्षा करेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि सभी लोग 2030 तक शांति और समृद्धि का आनंद लें।

सदस्य देशों में से 14 देश सतत विकास के लिए महासागरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों का संरक्षण और निरंतर उपयोग करना चाहते हैं। कई देशों ने अपनी ब्लू इकोनॉमी का दोहन करने के लिए पहल की जिसमें ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, यूनाइटेड किंगडम आदि हैं। अब भारत अपने ब्लू इकोनॉमी नीति के मसौदे के साथ सागर-संसाधनों की विशाल क्षमता का उपयोग करने के लिए तैयार है। (इंडि‍या साइंस वायर)

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