नई दिल्ली। चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में सरकार की सकल उधारियां 3.57 लाख करोड़ पर पहुंच गई जो पूरे वित्त वर्ष के बजट अनुमान का 61.68 प्रतिशत है। सरकार ने 1.89 लाख करोड़ रुपए मूल्य की दिनांकित प्रतिभूतियां जारी कीं जबकि पहली तिमाही में 1.68 लाख करोड़ रुपए मूल्य की दिनांकित प्रतिभूतियां जारी की गई थीं।
वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के बजट प्रभाव ऋण प्रबंधन पर जारी तिमाही रिपोर्ट में कहा गया है कि दूसरी तिमाही के दौरान सरकार ने 1.89 लाख करोड़ रुपए मूल्य की दिनांकित प्रतिभूतियां जारी कीं जबकि पहली तिमाही में 1.68 लाख करोड़ रुपए मूल्य की दिनांकित प्रतिभूतियां जारी की गई थीं। इस तरह पहली छमाही में सकल उधारियां 3.57 लाख करोड़ रुपए या बजट अनुमान का 61.68 प्रतिशत रहीं।
पिछले वित्त वर्ष की पहली छमाही में सकल उधारियां बजट अनुमान का 56.8 प्रतिशत थीं। इसमें कहा गया है कि नोटबंदी के कारण दूसरी तिमाही के दौरान अर्थव्यवस्था में तरलता अधिशेष (सरप्लस) के रूप में रही। इस दौरान भारत सरकार की नकदी की स्थिति कुछ हद तक दबाव में रही और भारत सरकार को कुछ अवसरों पर रिजर्व बैंक से अर्थोपाय (डब्ल्यू एवं एम) अग्रिम लेने की आवश्यकता पड़ गई।
तरलता (लिक्विडिटी) की मौजूदा और बन रही स्थिति के आंकलन के आधार पर आरबीआई ने दूसरी तिमाही के दौरान 60 हजार करोड़ रुपए की कुल राशि के लिए खुला बाजार परिचालन के तहत सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री की। केंद्र सरकार का सार्वजनिक ऋण (सार्वजनिक खाते के तहत देनदारियों को छोड़कर) सितंबर 2017 के आखिर में अनंतिम रूप से बढ़कर 65,65,652 करोड़ रुपए के स्तर पर पहुंच गया, जबकि जून 2017 के आखिर में यह ऋण राशि 64,03,138 करोड़ रुपए थी। सरकारी प्रतिभूतियों (जी-सेक) पर ईल्ड में 3 अगस्त तक गिरावट का रुख देखा गया, लेकिन उसके बाद से ही इसमें बढ़त का रुख देखा जा रहा है।
हालांकि बाद में महंगाई दर बढ़ जाने के कारण ईल्ड में अगस्त के आरंभ से बढ़त का रुख दिखने लगा। कच्चे तेल की कीमत जून के 47 डॉलर से बढ़कर 27 सितंबर, 2017 को 59 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंच गई, जिससे व्यापार संतुलन और भुगतान संतुलन (बीओपी) की स्थिति पर दबाव पड़ा और इसका असर महंगाई पर पड़ने की आशंका है। (वार्ता)