मृत्यु शाश्वत सत्य है, उस पर विलाप करना, और रोना भी तय है, लेकिन ऐसी सामान्य मौतों पर रोने में सिर्फ एक पीड़ा, और किसी अपने को खो देने की महज तकलीफभर होती है। ऐसी मौतें नितांत व्यक्तिगत क्षति है, इन्डिविजुअल लॉस।
एक ऐसा नुकसान जिसका अर्थ होता है सिर्फ एक आदमी का, एक चेहरे का नजर आना बंद हो जाना।
ये चाहरदीवारी मौतें हैं, जिससे घर के बाहर कोई फर्क नहीं पड़ता। इनके दुख की सीमाएं घर तक सीमित हैं। कुछ अपनों तक। कुछ रिश्तेदारों तक।
लेकिन देश के लिए बलिदान हो जाने वाली शहादत ऐसी व्यक्तिगत मौतों से बिल्कुल भिन्न होती हैं। इनका दुख और पीड़ाएं भी अलग होते हैं। इसीलिए तो हम जाति, धर्म और संप्रदाय की सारी सीमाओं से ऊपर उठकर एक सैनिक की मौत के दुख में एक साथ एक ही भाव में खड़े हो जाते हैं। ऐसी मौतों में दुख से ऊपर और तकलीफ से परे गौरव भी शामिल होता है।
जब किसी बलिदान के विलाप में एक चेहरे पर दुख और गौरव दोनों शामिल हो जाते हैं तो वो मृत्यु व्यक्तिगत क्षति नहीं होती। ये पूरे देश की पीड़ा होती है, पूरे राष्ट्र के लिए दुख होता है। शायद इसीलिए सैनिकों की शहादतों को हम राष्ट्रीय शोक कहते हैं।
जब हम सैनिक की मृत्यु पर दुखी होते हैं तब न हिंदू होते हैं, न मुसलमान और न ही ईसाई। हम सिर्फ एक राष्ट्र के नागरिक होते हैं और हमें सुरक्षित रखने वाले बलिदानी के शुक्रगुजार होते हैं।
इसीलिए जब हम सीडीएस जनरल बिपिन रावत और उनके साथियों की मौत की खबर सुनते हैं तो बेशक हमें आंसू न आए हों, लेकिन हम दुख और गौरव दोनों भाव से भर उठते हैं।
तमिलनाडु के कुन्नूर में हेलिकॉप्टर दुर्घटना में CDS जनरल बिपिन रावत के साथ जान गंवाने वाले उनके सलाहकार ब्रिगेडियर एलएस लिड्डर का जब अंतिम संस्कार किया गया तो ऐसा ही कुछ देखने को मिला।
इस जांबाज सिपाही के अंतिम संस्कार की तस्वीरें जिसने भी देखीं, दुख और गर्व से सराबोर हो उठा। अंतिम संस्कार के वक्त जब लिड्डर की पत्नी गीतिका ने बार-बार उनके ताबूत को चूमा तो वो मौत को हरा देने वाला प्यार था।
शायद इसीलिए ब्रिगेडियर लिड्डर की पत्नी गीतिका ने उनके ताबूत को छूते हुए और तिरंगे को सीने से लगाकर कहा,
'यह मेरे लिए बहुत बड़ा नुकसान है, लेकिन मैं एक सैनिक की पत्नी हूं। हमें उन्हें हंसते हुए एक अच्छी विदाई देनी चाहिए। जिंदगी बहुत लंबी है, अब अगर भगवान को ये ही मंजूर है, तो हम इसके साथ ही जिएंगे। वे एक बहुत अच्छे पिता थे, बेटी उन्हें बहुत याद करेगी।'
जब एक नागरिक मरता है तो उसे सिर्फ उसका परिवार खोता है, लेकिन एक एक सैनिक की मृत्यु होती है तो घर भी, परिवार भी और इसके साथ देश भी उसे खोता है। इसीलिए सैनिकों से हमारा सीधा संबंध नहीं होने के बावजूद हम उनकी शहादत की खबर सुनकर यहां टूट जाते हैं।
इस बात को ब्रिगेडियर लिड्डर की बेटी आशना बेहद अच्छे तरीके से बयां करती है। उसने अपने पिता के अंतिम संस्कार के वक्त कहा,
'मैं 17 साल की होने वाली हूं, मेरे पिता मेरे साथ 17 साल तक रहे। हम उनकी अच्छी यादों के साथ जिएंगे। मेरे पिता हीरो थे, वे मेरे बेस्ट फ्रेंड थे। शायद किस्मत को यही मंजूर था। उम्मीद करते हैं कि भविष्य में अच्छी चीजें हमारी जिंदगी में आएंगी। मेरे सबसे बड़े मोटिवेटर थे। यह पूरे देश का नुकसान है।'