बेंगलुरु। भारत के अंतरिक्ष इतिहास के सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण कार्यक्रम का सामना करते हुए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) 15 जुलाई को श्रीहरिकोटा से अपने महत्वाकांक्षी और पूर्णत स्वदेशी चंद्रयान-2 मिशन का प्रक्षेपण करेगा।
इसरो के अध्यक्ष डॉ. के. शिवन ने बुधवार को यह जानकारी देते बताया कि चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण 15 जुलाई को तड़के 2 बजकर 51 मिनट पर किया जाएगा। इसके प्रक्षेपण के लिए 3.8 टन वजन वाले जीएसएलवी-एमके3 प्रक्षेपण यान का इस्तेमाल किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि इसके 3 हिस्से होंगे- आर्टिबिटर, लैंडर और रोवर और लैंडर 30 किलोमीटर की ऊंचाई से चंद्रमा की सतह पर अंतिम रूप से उतरेगा, जो इसरो के लिए सबसे अधिक रोमांचित करने वाला क्षण होगा, क्योंकि इस तरह का प्रयोग वह पहली बार कर रही है।
डॉ. शिवन ने कहा कि चंद्रमा पर उतरने के लिए चंद्रयान-1 के लिए जो रणनीति अपनाई गई थी, इस बार भी उसका इस्तेमाल किया जाएगा लेकिन आसानी से इसे चंद्रमा की सतह पर उतारना हमारे लिए काफी बड़ी चुनौती होगा।
उन्होंने बताया कि इस मिशन पर काफी कम लागत आई है और उपग्रह की लागत 603 करोड़ रुपए तथा जीएसएलवी पर 375 करोड़ रुपए का खर्च आया है। इस स्पेशक्राफ्ट का कुल वजन 3.8 टन है जिसमें 650 किलोग्राम वजनी ऑर्बिटर भी शामिल है।
चंद्रयान-2 को स्वदेशी निर्मित जीएसएलवी मार्क III अंतरिक्ष की कक्षा में लेकर जाएगा। इसके मॉड्यूल के तीन हिस्से ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर हैं। लैंडर का नाम विक्रम और रोवर का नाम प्रज्ञान रखा गया है।
लैंडर विक्रम में रोवर प्रज्ञान समाहित रहेगा और चंद्रमा पर विक्रम के उतरने के बाद रोवर प्रज्ञान सतह पर बाहर आएगा। इस मिशन के बारे में इसरो ने अब तक जो जानकारी दी है उसके मुताबिक मिशन के दौरान ऑर्बिटर पहले चंद्रमा की परिधि में चक्कर लगाएगा और फिर इसके बाद वह चंद्रमा के साउथ पोल पर लैंडिंग करेगा।
चंद्रमा की सतह पर पहुंचने के बाद 6 पहिए वाला प्रज्ञान वहां पहले से निर्धारित वैज्ञानिक खोज करेगा। चंद्रयान मिशन की यह पूरी प्रक्रिया इसरो के वैज्ञानिक पृथ्वी से कंट्रोल करेंगे।
(Photo and Video courtesy: Doordarshan Twitter)