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परमाणु अप्रसार पर चीन, पाक दोनों का रिकॉर्ड संदिग्ध

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परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर न करने वाले देशों के सवाल पर चीन, भारत के प्रवेश के खिलाफ अड़ा रहा और चीन व पाकिस्तान दोनों मिलकर भारत के एनएसजी (न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप) प्रवेश रोकने में सफल हुए हैं। लेकिन जहां तक परमाणु अप्रसार संबंधी शर्तों का पालन करने की बात है तो न ही पाकिस्तान और न ही चीन का इस मामले में रिकॉर्ड साफ रहा है। दोनों के खिलाफ समय-समय तक दूसरे देशों को परमाणु तकनीक बेचने और परमाणु ईंधन को अनाधिकृत तौर पर दूसरे देशों को सप्लाई करने के मामले सामने आए हैं।
 
ऐसी स्थिति में भारतीय राजनयिकों को चाहिए कि वे एनएसजी की सोल बैठक के बाद इस मुद्दे पर दोनों देशों के रिकॉर्ड का अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खुलासा करें ताकि दोनों की वास्तविकता दुनिया के सामने आ सके अन्यथा दोनों मिलकर भारत के खिलाफ गठजोड़ को और अधिक प्रभावी बनाने में सफल हो सकते हैं।   
 
चीन ने साझा की परमाणु तकनीक : चीन के बारे में कहा जा सकता है कि उसने उत्तरी कोरिया, पाकिस्तान, ईरान और सीरिया के साथ रक्षा और परमाणु तकनीक साझा की है। विकीलीक्स द्वारा अमेरिकी फाइलों की जानकारी लीक होने के बावजूद भारत सरकार इन मामलों पर चीन और पाकिस्तान से सवालों के जवाबों की मांग नहीं कर रही है। चीन ने उत्तरी कोरिया को परमाणु तकनीक और कच्चा माल सप्लाई किया है। यह मामला दिसंबर 2008 का है, जब आर्थिक क्षेत्र में सक्रिय कंपनी बिचौलिए के तौर पर उत्तरी कोरिया के लिए सक्रिय रही है।
 
इस कंपनी ने सीरिया में चल रही एक बैलिस्टिक मिसाइल डेवलपमेंट की योजना में सक्रिय मदद की है। इसी तरह अगस्त, 2005 में चीन की एक कारोबारी कंपनी ने उत्तरी कोरिया के लिए हथियारों को विकसित करने वाले कोरिया माइनिंग डेवलपमेंट कॉरपोरेशन को कई टन ऐसे स्टील की आपूर्ति की थी जो कि परमाणु विकास के कार्यक्रमों में कच्चे माल के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। 
 
चीन ने न केवल पाकिस्तान में परमाणु रिएक्टरों को बनाने और सक्रिय करने का काम किया वरन उसने पाकिस्तान के एगिनेल एंटरप्राइजेस को एक हजार किलो विशेष किस्म का स्टील उपलब्ध कराया था। यह कंपनी पाकिस्तान के परमाणु और मिसाइल कार्यक्रमों से जुड़ी हुई है और इस तरह की स्टील का उपयोग पाकिस्तान कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों के हिस्से बनाने में करता है।
 
मार्च, 2009 में पाक की इंट्रालिंक इन्कॉरपोरेटेड ने चीन की एक कंपनी से वाइब्रेशन टेस्ट सिस्टम के लिए कीमतें बताने का आग्रह किया था। यह पहल भी पाकिस्तान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए थी। अक्टूबर, 2008 में चीन ने जानकारी उपलब्ध कराई गई थी कि उसने ट्राईसॉनिक विंड टनल का इस्तेमाल पाकिस्तान के मिसाइलों संबंधी शोध और विकास के लिए किया था। 
 
चीन ने ईरान को भी परमाणु सामग्री दी : चीन ने इसी तरह ईरान को परमाणु सामग्री से लैस किया। विकीलीक्स फाइलों के अनुसार अमेरिका ने चीन की डालियान स्थित‍ सनी इंडस्ट्रीज नाम की फर्म की कारोबारी गतिविधियों पर चिंता जाहिर की थी। यह फर्म ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम के सामान का निर्यात करती रही थी। इसी तरह जनवरी 2009 में हांग कांग मोस्ट ग्रुप कंपनी लिमिटेड ने ईरान की एक फर्म को चीन में बनी एल्यूमीनियम प्लेट्‍स भेजी थीं।
 
जून 2008 में सीरिया की एक इंडस्ट्रियल सॉल्यूशन ने चीन की एक कंपनी को 2024-टी 6 एल्यूमीनियम की सप्लाई का ऑर्डर दिया था। चीन परमाणु रिएक्टरों को अपनी सुविधा के अनुसार विकसित कर रहा है ताकि वह पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को चोरी छिपे चलाता रह सके। इस तरह के मामलों में लगातार ऐसे तथ्यात्मक सबूत मिले हैं कि  चीन लगातार नियमों का उल्लंघन करता आया है। लेकिन नियम-कानूनों की आड़ में वह अपने और अपने सहयोगियों के सारे गैर कानूनी काम करता आया है।    
 
इसलिए कर रहा है चीन भारत का विरोध : इसलिए भारत का तीव्र विरोध कर चीन यह सुनिश्चित करना चाह रहा है कि भारत को एनएसजी में प्रवेश मिले तो इससे पाकिस्तान के प्रवेश का रास्ता खुल जाए। एनएसजी के कुछ सदस्य देश जैसे न्यूजीलैंड, तुर्की और आयरलैंड भी पाकिस्तान के साथ हैं।
 
चीन के पाकिस्तान में रिएक्टर लगाने के संबंधी जिन मामलों की जानकारियां उजागर हुई हैं उनके अनुसार चीन नहीं चाहता है कि दुनिया में उसे किसी तरह का अलगाव झेलना पड़े और उसे पाकिस्तान की सहानुभूति की भी जरूरत है। साथ ही, वह इस मामले पर अमेरिका से टकराव नहीं चाहता है और वह भारत के साथ संबंधों को भी पूरी तरह खत्म नहीं करना चाहता है। दक्षिण चीन महासागर में अमेरिकी सक्रियता के कारण चीन का मानना है कि इस मामले में वह भारत का एक प्रॉक्सी की तरह इस्तेमाल कर रहा है जो वह नहीं होने देना चाहता है।  
 

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