नई दिल्ली। बिजली उत्पादन के क्षेत्र में देश की सबसे बड़ी कंपनी राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम लिमिटेड (एनटीपीसी) में व्याप्त कुप्रबंधन और अक्षमता के कारण 2010 से 2016 के दौरान तय कीमत से ज्यादा दर पर कोयला खरीदा गया जिससे कंपनी को करीब 6,869 करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च करने पड़े और इसका खामियाजा आम उपभोक्ता को महंगी बिजली के रूप में चुकाकर भुगतना पड़ा।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने एनटीपीसी लिमिटेड के कोयला आधारित बिजली केंद्रों में ईंधन प्रबंधन पर संसद में 3 फरवरी को पेश रिपोर्ट में बताया कि बिजली केंद्रों को अपर्याप्त कोल लिंकेज और ईंधन आपूर्ति समझौते पर हस्ताक्षर में देरी जैसी अकुशलताओं के कारण कंपनी ने कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) की ओर से अधिसूचित दर से कहीं ज्यादा कीमत पर कोयला खरीदा।
इस महारत्न कंपनी ने कोयले की ज्यादा कीमत के कारण 6869.95 करोड़ रुपया अतिरिक्त खर्च किया जिससे बिजली की लागत बढ़ गई और इसका बोझ आम उपभोक्ताओं को उठाना पडा। अक्टूबर 2016 तक देश में विद्युत उत्पादन क्षमता 3 लाख 7 हजार 278 मेगावॉट थी। इसमें से कोयला आधारित उत्पादन क्षमता 60.69 प्रतिशत यानी 1 लाख 86 हजार 493 मेगावॉट थी।
कोयला आधारित पॉवर स्टेशनों से पैदा बिजली की कुल लागत का 60 से 70 प्रतिशत हिस्सा कोयले की कीमत का होता है। उपभोक्ताओं को मिलने वाली बिजली के दाम पर कोयले की कीमत का असर बहुत ज्यादा होता है इसलिए कैग ने कंपनी और उसके संयुक्त उद्यमों के कोयला आधारित 26 में से 13 पॉवर स्टेशनों का लेखा-जोखा किया। कैग ने यह भी पाया कि कंपनी 2005-06 से कोयला आयात कर रही है लेकिन अभी तक आयात की समग्र नीति नहीं बनाई गई है।
कैग ने अधिसूचित दर से अधिक कीमत पर कोयले की खरीद से जुड़ी प्रक्रिया की समीक्षा करने, आयातित कोयले की गुणवत्ता सुनिश्चित करने तथा कोयला आयात के लिए नीति बनाने की सिफारिश की। (वार्ता)