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किस सिक्योरिटी प्रोग्राम के लिए NSA अजीत डोभाल पहुंचे श्रीलंका, भारत के लिए क्‍यों है जरूरी?

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वेबदुनिया न्यूज डेस्क

, शुक्रवार, 30 अगस्त 2024 (17:58 IST)
Colombo Security Conclave: देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल कोलंबो सिक्योरिटी कॉन्क्लेव में हिस्सा लेने के लिए श्रीलंका पहुंचे। कार्यक्रम की शुरुआत आज शुक्रवार से हो गई है। वे राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे से मुलाकात करेंगे।

बता दें कि कोलंबो सिक्योरिटी कॉन्क्लेव और भारत से एक दशक से भी जाना पुराना कनेक्शन है। कोलंबो सिक्योरिटी कॉन्क्लेव की शुरुआत साल 2011 में हुई थी। तब इसमें तीन देश शामिल थे भारत, श्रीलंका और मालदीव। बाद में एक और देश की एंट्री हुई।

क्या है कोलंबो सिक्योरिटी कॉन्क्लेव : साल 2011 में कोलंबो सिक्योरिटी कॉन्क्लेव (CSC) की शुरुआत हुई। शुरुआती में भारत, श्रीलंका और मालदीव इसका हिस्सा थे, लेकिन बाद में इसमें चौथे सदस्य मॉरिशस की एंट्री हुई। बांग्लादेश को भी ऑब्जर्वर के तौर पर इसका हिस्सा बनाया जा चुका है।

सुरक्षा को लेकर अहम चर्चा : CSC एक ऐसी हाईलेवल कॉन्फेंस है, जहां इन देशों की सुरक्षा को लेकर अहम बैठक होती है और रणनीति तय होती है। इसकी शुरुआत ही कुछ खास मुद्दों के साथ हुई थी। वर्तमान में इसके पांच पिलर यानी मुद्दे हैं, जिनसे जुड़े मामलों पर रणनीति बनाई जाती है और चर्चा होती है।

किन मुद्दों पर होती है चर्चा : इसमें चर्चा होती है कि आतंकवाद को कैसे रोका जाए, यह कोलंबो सिक्योरिटी कॉन्क्लेव के लिए हमेशा से मुद्दा रहा है। दूसरा, तस्करी और अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध का मिलकर मुकाबला करना और तीसरा देश में सायबर सिक्योरिटी को मजबूत करना, इंफ्रास्ट्रक्चर और तकनीक की सुरक्षा करना है। इसके अलावा इंसानों की मदद और आपदा की स्थिति में देश की मदद करना और चीन की गतिविधियों पर नजर रखना भी है। इस तरह ये देश समुद्री, आतंकवाद और समेत कई मुद्दों पर गहन मंथन करते हैं और जरूरत पड़ने पर नई रणनीति बनाते हैं।

चीन पर लगाम के लिए जरूरी : बता दें कि चीन लगातार समुद्र में अपना दायरा बढ़ाने के लिए कदम उठा रहा है। ड्रैगन ने हिंद महासागर में तीन सर्वेक्षण और निगरानी पोत तैनात किए। साल 2025 तक चीन हिंद महासागर में वाहक टास्क फोर्स की गश्त शुरू करने की तैयारी में है। ऐसे तमाम लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए चीन ने पिछले 20 सालों ने अपनी नौसेना की क्षमताओं को बढ़ाने का काम किया। नौसेना ने विमान वाहक जहाज़ों, सैन्य पनडुब्बियों और सतही युद्धपोतों को अपने बेड़ों में शामिल किया है।

कई रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि चीन बंदरगाह और समुद्री गतिविधियां PLA-N की शक्ति प्रक्षेपण क्षमताओं को बढ़ा सकता है। चीन दूसरे देशों की सरकारों पर ऋण का बोझ बढ़ाकर अपना प्रभाव पहले बढ़ाता रहा है और बंदरगाहों की संभावना तलाशता है। ऐसे में सिक्योरिटी कॉन्क्लेव चीन के लिहाज से भी अहम है।
Edited by Navin Rangiyal

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