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जज लोया मामला : फैसले से असंतुष्ट कांग्रेस ने कहा- अनसुलझे ये दस सवाल

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नई दिल्ली , गुरुवार, 19 अप्रैल 2018 (22:30 IST)
नई दिल्ली। कांग्रेस ने जज बीएच लोया मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले पर 'सम्मानपूर्वक' असहमति जताते हुए आज न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए उनकी मौत के कारणों का पता लगाने के वास्ते पूरे मामले की उच्चतम न्यायालय की निगरानी में स्वतंत्र जांच की मांग दोहराई।


कांग्रेस के संचार विभाग के प्रमुख रणदीपसिंह सुरजेवाला ने यहां पार्टी मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस फैसले के मद्देनजर आज के दिन को देश का इतिहास का दुखद दिन बताया और कहा कि न्यायालय के फैसले से न्यायमूर्ति लोया की मौत से जुड़े तमाम सवाल अनुत्तरित रह गए हैं।

उन्होंने न्यायमूर्ति लोया की मौत से जुड़ी परिस्थितियों का सिलसिलेवार ब्योरा देकर दस सवाल उठाए और कहा कि इससे जुड़े सबूत विरोधाभासी हैं। इसके बावजूद इस मामले की कभी जांच नहीं हुई। बिना जांच के इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता है कि उनकी मौत स्वाभाविक थी।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस न्यायपालिका का सम्मान करती है, लेकिन इस फैसले पर वह सम्मानपूर्वक अपनी असहमति व्यक्त करती है। उन्होंने कहा कि यदि न्यायाधीश राजनेताओं और अपराधियों के खिलाफ निष्पक्ष एवं निर्भीक फैसले नहीं करेंगे और सबूतों एवं तथ्यों के आधार पर बिना पक्षपात और बिना डरे फैसला नहीं करेंगे तो देश का लोकतंत्र खतरे मे पड़ जाएगा।

जज लोया सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे थे जिसमें भाजपा अध्यक्ष अमित शाह आरोपी थे। कांग्रेस प्रवक्ता ने आरोप लगाया कि भाजपा नेता राजनीतिक फायदा लेने के लिए उच्चतम न्यायालय के फैसले की गलत व्याख्या कर रहे हैं जो निंदनीय है। यह अत्यंत दुखदायी है कि भाजपा न्यायाधीश की मौत पर सस्ती राजनीति पर उतारू है।

सुरजेवाला ने कहा यदि जज लोया की मौत स्वाभाविक थी तो भाजपा और उसके लोगों में इतनी घबराहट क्यों है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आगे बढ़कर यह कहना चाहिए था कि इस मामले में भाजपा अध्यक्ष का नाम आ रहा है इसलिए वे पूरे मामले की उच्चतम न्यायालय की निगरानी में जांच का आदेश देते हैं।

उन्होंने कहा कि जब भाजपा के शीर्ष पद पर बैठे व्यक्ति इस मामले में आरोपी हैं और सत्ता में बैठे लोग जांच के विरोध मे लामबंद होते हैं तो इसे लेकर संशय एवं आशंकाएं और प्रबल हो जाती हैं। सुरजेवाला ने कहा कि अपराध दंड संहिता की धारा 164 के तहत जज समेत किसी भी गवाह का बयान जब तक मजिस्ट्रेट के सामने नहीं होता, उसका संज्ञान नहीं लिया जाता है।

उन्होंने सवाल किया कि क्या कुछ जजों के पुलिस अधिकारी के समक्ष दिए गए बयान के आधार पर फैसला लिया जा सकता है खासकर जबकि फॉरेंसिक सबूत, विशेषज्ञों तथा गवाहों के बयान और दस्तावेज जज लोया की मौत में साजिश की ओर इशारा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश भी इस मामले को जनता के सामने ला चुके हैं।

इससे पता चलता है कि ये जज भी न्यापालिका की स्वतंत्रता तथा अधिकारों की रक्षा को लेकर चिंतित थे। एक सवाल के जवाब में उन्होंने इस बात से इंकार किया कि कांग्रेस इस फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर करेगी। उन्होंने कहा कि पार्टी इस मामले में याचिकाकर्ता नहीं थी।

अलबत्ता उसने 14 अन्य विपक्षी दलों के साथ राष्ट्रपति के समक्ष यह मामला उठाया था। इस मामले मे मूल याचिकाकर्ता बांबे एडवोकेट एसोसिएशन थी। एक अन्य याचिकाकर्ता की भाजपा के साथ नजदीकियां और कांग्रेस के विरुद्ध रवैया जगजाहिर है। सुरजेवाला ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई 2012 में गुजरात से मुंबई स्थानांतरित कर दी थी।

जज उत्पत इस मामले में सीबीआई के विशेष न्यायाधीश नियुक्त किए गए थे और न्यायालय ने पूरी सुनवाई एक ही न्यायाधीश से कराने का निर्देश दिया था। जज उत्पत ने आरोपी को अदालत में पेश न होने के लिए फटकार लगायी थी। इसके दूसरे दिन उनका तबादला करके उनकी जगह न्यायमूर्ति लोया को लाया जिनकी संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। इसके बाद शाह को सीबीआई की अदालत ने बरी कर दिया और जांच एजेंसी ने आदेश के खिलाफ अपील करने से इंकार कर दिया।

कांग्रेस नेता ने कहा कि यह कहा गया कि जज लोया की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई जबकि उनकी ईसीजी तथा अन्य जांच रिपोर्टों में दिल के दौरे की बात नहीं थी। ऐसा कहा गया कि मौत के समय जज लोया नागपुर के रवि भवन में ठहरे थे लेकिन वहां के रजिस्टर में उनका नाम नहीं था तथा वहां तैनात 15 कर्मचारियों को भी उन्हें दिल का दौरा पड़ने की जानकारी नहीं थी।

जज लोया के परिेजनों ने कहा था के उनके कपड़े खून से सने हुए थे, खासकर गर्दन के पास। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उनका नाम भी गलत था। प्रवक्ता के अनुसार जिन दो जजों ने जज लोया पर सुनवाई के दौरान दबाव की बात कही थी उनकी भी संदिग्ध परिस्थितियों में असामान्य मौत हो गई तथा यह मामला उठाने वाले एडवोकेट सतीश उके पर उनके कार्यालया में पांच हजार किलोग्राम की लौह सामग्री गिर गई। हालांकि वे बाल-बाल बच गए। सुरजेवाला ने कहा कि इन सभी तथ्यों और सबूतों तथा दस्तावेजों की जांच होनी चाहिए क्योंकि ये तथ्य अदालत के समक्ष पेश ही नहीं किए गए। (भाषा)

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