नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने घरेलू हिंसा रोधी कानून के एक प्रावधान को चुनौती देने वाली 70 वर्षीय महिला की याचिका पर केंद्र का रुख जानना चाहा है। महिला ने कहा कि उसकी पुत्रवधू द्वारा कथित तौर पर लगातार उसके साथ घरेलू हिंसा की जा रही है और पुत्रवधू के 'आवास के अधिकार' के मद्देनजर उसे वहां से बेदखल करने से इनकार कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने पिछले सप्ताह याचिका पर नोटिस जारी किया और राष्ट्रीय महिला आयोग तथा महिला की पुत्रवधू का रुख भी जानना चाहा। अदालत ने वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका जॉन को मामले में सहायता के लिए न्याय मित्र भी नियुक्त किया। महिला ने कहा कि एक निचली अदालत ने घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा कानून की धारा 19 (1) के तहत पुत्रवधू के 'आवास के अधिकार' के मद्देनजर उसे वहां से बेदखल करने से इनकार कर दिया।
वकील प्रीति सिंह के माध्यम से याचिकाकर्ता ने दलील दी कि कानून का उद्देश्य घरेलू हिंसा से महिलाओं की रक्षा करना है लेकिन धारा 19 (1) से संबंधित नियम उस पीड़ित महिला के लिए अवरोध का काम करता है, जो किसी अन्य महिला द्वारा प्रताड़ित हो और इसलिए यह असंवैधानिक तथा भेदभावपूर्ण है।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में अदालत को उसकी पुत्रवधू को घर से निकालने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया। उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें और उनके 76 वर्षीय पति को उनकी पुत्रवधू ने धमकाया, प्रताड़ित किया, उनका आर्थिक रूप से शोषण किया और आतंकित किया, लेकिन मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज कर दिया। मामले में अगली सुनवाई 18 अप्रैल को होगी।(भाषा)
Edited by: Ravindra Gupta