नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने एलोपैथिक दवाओं के खिलाफ योग गुरु रामदेव के बयान और पतंजलि की कोरोनिल किट को कोविड-19 का उपचार बताने के उनके दावे के विरुद्ध दायर याचिका पर उन्हें गुरुवार को समन जारी किया, लेकिन अदालत ने उन्हें इस चरण पर रोकने का आदेश देने से इनकार करते हुए कहा कि एलोपैथी पेशा इतना कमजोर नहीं है।
बहरहाल, अदालत ने योग गुरु के वकील से मौखिक रूप से कहा कि वह रामदेव से उकसाने वाला कोई भी बयान नहीं देने को कहें। न्यायमूर्ति एस हरिशंकर ने कहा कि राजीव नायर एक सम्मानीय वरिष्ठ (वकील) हैं। मुझे भरोसा है कि उनके मुवक्किल उनकी बात सुनेंगे।
अदालत ने दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन (DMA) की ओर से दायर वाद पर योग गुरु को समन जारी किया और उनसे तीन सप्ताह में अपना जवाब दाखिल करने को कहा। अदालत ने मामले की सुनवाई 12 जुलाई तक के लिए स्थगित कर दी। न्यायमूर्ति हरिशंकर ने कहा कि कथित रूप से अहितकर बयान दिए काफी समय बीत चुका है।
वकील का कहना है कि प्रतिवादी संख्या एक (रामदेव) लगातार बयान दे रहे हैं। विशेष रूप से आपत्तियों के मद्देनजर कोई अवसर दिए बिना वादी को रोकने का आदेश नहीं दिया जा सकता। वाद पर समन जारी करें। अदालत ने इस मामले में पक्षकार बनाए गए सोशल मीडिया मंचों ट्विटर एवं फेसबुक और आस्था चैनल को भी समन जारी किए।
डीएमए ने अपने चिकित्सक सदस्यों की ओर से दायर वाद में अदालत से कहा कि कोरोनिल कोरोना वायरस का उपचार नहीं है, इसलिए रामदेव का बयान गुमराह करने वाला है। उसने उनसे सांकेतिक क्षतिपूर्ति राशि के रूप में एक रुपए की मांग की है। अदालत ने जब डीएमए से सवाल किया कि यह बयान उसे कैसे प्रभावित करता है, तो उसका प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील राजीव दत्ता ने कहा कि यह प्रभावित करता है, क्योंकि यह दवा कोरोना वायरस का उपचार नहीं करती और यह चिकित्सकों के नागरिक अधिकारों के लिए दायर किया गया मुकदमा है।
अदालत ने कहा कि वह यह नहीं बता सकती कि कोरोनिल उपचार है या नहीं और इसका फैसला चिकित्सा विशेषज्ञ करेंगे। उसने कहा कि वह डीएमए के इस तर्क को ज्यादा तवज्जो नहीं देता कि रामदेव एक प्रभावशाली व्यक्ति हैं। अदालत ने कहा कि रामदेव को एलोपैथी पर भरोसा नहीं है।
उनका मानना है कि योग और आयुर्वेद से हर रोग का उपचार किया जा सकता है। वह सही भी हो सकते हैं और गलत भी। न्यायाधीश ने कहा कि अदालत यह समझ सकती है कि यह दलील दी जा रही है कि उनके बयान लोगों को प्रभावित कर रहे हैं, लेकिन आप कह रहे हैं, हे भगवान, रामदेव ने कुछ किया है।
आप लोगों को अदालत का समय बर्बाद करने के बजाए वैश्विक महामारी का उपचार खोजने में समय बिताना चाहिए। मामला दर्ज करने के डीएमए के मुख्य आधार के बारे में दत्ता ने कहा कि सार्वजनिक रूप से दिए गए बयान प्रभावित करते हैं और यह आमजन एवं डीएमए के सदस्यों को भी प्रभावित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि रामदेव विज्ञान को फर्जी बता रहे हैं।
इस पर, न्यायाधीश ने कहा कि मुझे लगता है कि कोई विज्ञान फर्जी है। कल मुझे लगेगा कि होम्योपैथी फर्जी है। तो क्या आप मेरे खिलाफ मुकदमा दायर करेंगे? मैं अपने ट्विटर पर लिखता हूं, तो आप कहेंगे कि ट्विटर अकाउंट बंद करा दो। यह लोगों की राय है। मुझे नहीं लगता कि आपका एलोपैथी पेशा इतना कमजोर है। उन्होंने कहा कि इसे बोलने की आजादी की कसौटी पर परखा जाना चाहिए।
अदालत ने कहा कि किसी की राय है कि एलोपैथिक दवाओं की अक्षमता के कारण इतने लोगों की मौत हुई है और उनका मानना है कि यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत आता है। नायर ने याचिका के सुनवाई योग्य होने पर आपत्ति जताई और दलील दी कि मामला प्रथमदृष्ट्या सुनवाई योग्य नहीं है।
इस बीच, दत्ता ने कहा कि आयुष मंत्रालय ने एक बयान दिया था कि कोरोनिल कोविड-19 का इलाज नहीं है और इसे उपचार बताकर इसका विज्ञापन नहीं किया जा सकता। उसने पतंजलि से जानकारियां भी मांगी थीं, जिसके बाद रामदेव ने स्पष्ट किया था कि यह रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने में मदद करती है। अदालत ने गौर किया कि रामदेव ने स्पष्टीकरण दिया है। उसने कहा कि इस स्पष्टीकरण के साथ ही डीएमए की पूरी शिकायत दूर हो जानी चाहिए थी।
उसने कहा कि यदि पतंजलि के लिए यह (जानकारी देना और प्रचार नहीं करना) अनिवार्य था और यदि वह इसका उल्लंघन करता है, तो इस मामले को आयुष मंत्रालय को देखना है। आप क्यों आपत्ति कर रहे हैं।
डीएमए के वकील ने इसके बाद कहा कि पतंजलि ने कोरोनिल को कोविड-19 का उपचार बताकर इससे 25 करोड़ रुपए कमाए और उनके देश में बड़ी संख्या में समर्थक हैं। इस पर अदालत ने कहा कि लोगों के कोरोनिल खरीदने के लिए क्या उन्हें दोषी ठहराया जाए? अदालत ने डीएमए को मुकदमा दायर करने के बजाए जनहित याचिका दायर करने की सलाह दी। (भाषा)