(कार्तिका सिंह, पंजाब-चंडीगढ़ से)
पंजाब में इंसान और जानवर दोनों पर आसमानी आफत आई है। इंसान सरकार के भरोसे है और जानवर, पशुधन इंसानों के भरोसे। कहीं कोई शरण नहीं है, न ही कोई राहत। सिर पर बिजलियां और बादल हैं, पैरों के नीचे पानी ही पानी। आदमी से लेकर सबकुछ डूब रहा है। वहीं, घर का सामान तैर रहा है। बेबस पंजाबवासी डूबा हुआ घर छोड़कर जाए भी तो कहां जाए। पंजाब की नदियों की जमीन पर कब्जा और भूमाफियाओं के खेल ने पंजाब की जिंदगी को गहरे संकट में डाल दिया है। विशेषज्ञों के आंकलन बताते हैं कि अब पंजाब की इस तबाही में फसलें तो डूब ही गईं हैं लेकिन अगली बुआई पर भी संकट है। यह पंजाब की अर्थव्यवस्था के लिए एक बडा झटका है। पंजाब से जर्नलिस्ट कार्तिका सिंह की ग्राउंड रिपोर्ट।
बहुत ही भीषण बाढ़ ने पंजाब को एक बार फिर अपनी चपेट में ले लिया है। पंजाब के सीएम भगवंत मान ने पूरे राज्य को आपदा प्रभावित राज्य घोषित कर दिया है। पंजाब के 23 ज़िलों के 1400 से अधिक गावं बाढ़ की चपेट में हैं, सरकारी आंकड़ों के अनुसार 30 लोगों की मौत के साथ ही 3.5 लाख से ज़्यादा लोग प्रभावित हुए हैं। पंजाब 1988 के बाद सबसे भीषण बाढ़ से जूझ रहा है। सरकरी और गैर सरकारी आंकड़ों में अंतर को अब सभी समझने भी लगे हैं।
सतलुज, ब्यास, रावी और घग्गर सभी नदियां उफ़ान पर हैं। पिछले लगभग 18 दिनों में कई लाख कुसिक पानी बांधों से समय-समय पर छोड़ा जा रहा है। पिछले दिनों में 25 अगस्त सुबह 11 बजे भाखड़ा डैम में 1668.5 फुट के स्तर पर 65,000 कुसिक पानी की आमद के साथ 38,000 कुसिक पानी को छोड़ा गया। इसी के साथ ही पोंग डैम में 1384.5 फुट के स्तर पर 109,000 कुसिक पानी की आमद के साथ ही 38,000 कुसिक पानी का निकास किया गया। इसी के अगले दिन, यानी 26 अगस्त, 2025 को ब्यास दरिया पर बने पोंग डैम में पानी की आमद ढाई लाख कुसिक को भी पार कर गई। उसी दिन 74972 कुसिक पानी का निकास किया गया। यही से आने वाले दिनों बाढ़ के खौफनाक मंजर का पता लगाया जा सकता है।
बाढ़ का खतरा तेज़ी से बढ़ेगा : 27 अगस्त 2025 को इंजीनियर और एनवायरमेंट एक्टिविस्ट जसकीरत सिंह द्वारा साझा की गई जानकारी के मुताबिक, अगले कुछ घंटों में पंजाब में बाढ़ का खतरा तेज़ी से बढ़ने वाला है। पंजाब सरकार भले ही यह खुलकर नहीं कह रही, लेकिन आंकड़े साफ़ बता रहे हैं, कि आने वाले 12 से 24 घंटों में पोंग और भाखड़ा डैम पूरी तरह भर जाएंगे और उनके गेट खोलने ही पड़ेंगे। रावी नदी तो पहले ही अपने फ्लड गेट तोड़ चुकी है।
गौरतलब है, कि जसकीरत सिंह और उनकी टीम लगातार बहुत बेबाकी से पंजाब के मुद्दों पर ठोस काम करके दिखा भी रहे हैं। साथ ही उन्होंने पंजाब के निवासियों से अपील करते हुए कहा, कि जिन इलाकों में 2023 में बाढ़ आई थी या जो दरियाओं के नज़दीक हैं, वे अगले 12 घंटों में जंगी-स्तर पर बाढ़ की तैयारी कर लें।
भाखड़ा डैम (सुबह 11 बजे तक)
जल स्तर: 1671.5 फ़ीट
आमद: 59,000 क्यूसेक
निकासी: 44,000 क्यूसेक
पोंग डैम
जल स्तर: 1393 फ़ीट
आमद: 2,28,000 क्यूसेक
निकासी: 81,000 क्यूसेक
रणजीत सागर डैम
जल स्तर: 527 फ़ीट
आमद: 1,63,000 क्यूसेक
निकासी: 1,73,000 क्यूसेक
अब के हालात : सभी डैम या तो खतरे के निशान के करीब हैं या पहले ही उस स्तर को पार कर चुके हैं। इन डैमों में अब और पानी रोकने की ज्यादा क्षमता नहीं बची है। जितनी तैयारी कर सकते हैं, तुरंत कीजिए। तैयार रहें, सतर्क रहें।
3 सितंबर 2025 – सुबह 11 बजे तक की स्थिति
भाखड़ा डैम
जल स्तर: 1678 फीट
पानी की आमद: 87,000 क्यूसेक
पानी का निकास: 65,000 क्यूसेक
पौंग डैम
जल स्तर: 1393 फीट
पानी की आमद: 1,60,000 क्यूसेक
पानी का निकास: 80,000 क्यूसेक
रणजीत सागर डैम
जल स्तर: 527 मीटर
पानी की आमद: 1,08,000 क्यूसेक
पानी का निकास: 45,000 क्यूसेक
स्थिति बेहद गंभीर है। स्थानीय प्रशासन और नागरिकों से अपील है कि सुरक्षित स्थानों पर जाने की तैयारी रखें और किसी भी आपात सूचना का तुरंत पालन करें।
राहत कार्य : राघव चड्ढा ने एमपी फण्ड से 3.25 करोड़ रूपए देने का किया ऐलान, 2.75 रूपए बांधों की मुरम्मत के लिए होंगे इस्तेमाल। हरियाणा सी एम नायाब सिंह सैनी ने 5 करोड़ रूपए सी एम रिलीफ फण्ड से देने की की घोषणा। हिंदी फिल्म जगत और पंजाबी फ़िल्म एवं गीत जगत से जुड़े कलाकार, ग्राउंड लेवल पर जाकर सेवा करने के साथ ही बाढ़ के बाद के हालातों को मद्देनज़र रखते हुए, कई गांवों को गोद ले रहे हैं।
हौंसले की मिसाल और 'चढ़दी कला' का ज़ज़्बा : बाढ़ से फिर आई तबाही के साथ ही, हौंसले की मिसाल देते हुए बहुत कुछ सोशल मीडिया में भी सामने आ रहा है। एक राहत टीम किसी गांव में गई। अपना फ़र्ज़ भी पूरा किया। आती बार टीम के एक युवक ने अपना नाम बताया तो घर का मुखिया और उसकी पत्नी ने उसके गांव का नाम पूछा। नाम बताने पर पुष्टि करने के अंदाज़ में कहा-फिर तो तुम फलां-फलां घर में दामाद हो न? हां कहने पर वृद्ध महिला अपने गिरे हुए मकान में गई। पानी से भीगी हुई, छत्त के ऊपर पड़े ट्रंक से कोई कपड़ा ढूंढा और उसमें से सौ रुपए निकाल कर लाइ की तुम हमारे गांव के दामाद हो तो, तुम्हे ऐसे खाली हाथ थोड़ी जाने देंगे? विरासत और सांस्कृतिक धरोहर को पंजाबी इस संकट में भी नहीं भूले।
इन लीडरों से क्या मांगना : इसी तरह कवरेज के मकसद से एक टीवी चैनल की टीम कहीं बाढ़ की कवरेज करने गई तो एंकर लड़की ने एक वृद्धा महिला से पूछा कि जो एक आध बर्तन ले कर एक चारपाई पर बैठी थी, और आसपास बस पानी ही पानी। एकंर ने पूछा सरकार से कोई मांग और दिक्क्त हो तो बताईये, कोई मुश्किल हो तो कहिये, हम आपकी बात आगे पहुंचाएंगे। जवाब में वह बोली कहना क्या है... हम सभी लोग दुःख में भी साथ साथ हैं- हमारी कौम हमारे लोग हमारे साथ- जो होगा देखा जाएगा-- इन लीडरों से क्या मांगना-- यह लीडर तो खुद दिल्ली वालों के भिखारी हैं-- इनसे क्या मांगना। तबाही में भी अणख, गैरत और हिम्मत दिखा रहे हैं ये लोग। एक और गांव में गए तो वहां का परिवार अपने कुत्तों का भी विशेष ख्याल रख रहा था और गांव के अन्य कुत्तों का भी।
युवा नेता सुखजिंदर महेसरी द्वारा साझा किये हुए शब्द : फ़ाज़िल्का ज़िले के एक गांव, जहां दरिया से सटा हुआ इलाका है। कावांवाली पत्तन, पर जहां हम खड़े थे, वहां नज़र दौड़ाने पर चारों ओर सिर्फ़ पानी ही पानी था। यूं लगने लगा था जैसे सब कुछ जलमग्न होने की तयारी में है। राहत कार्यों के लिए बड़ी संख्या में सेवक भी मौजूद थे, लेकिन उससे कहीं ज़्यादा लोग सिर्फ़ बाढ़ का मंजर देखने आए हुए थे। वहीं लंगर और मेडिकल कैंप भी चल रहे थे। आपदा के बावजूद लोगों की संवेदना और सहयोग भी नज़र आ रहे थे। तभी अचानक एक आदमी, जिसके कपड़े पूरी तरह भीगे हुए थे, हाथ में एक गठरी उठाए शोर मचाता हुआ आया – “हमारे पास नाव नहीं है, जान जोखिम में डालकर पानी के भीतर से होकर आए हैं, हमारा मरीज अस्पताल में भर्ती है।” आप अनुमान लगाएं एक तो बाढ़ की मुसीबत और ऊपर से इस तरह की आपात स्थिति। यह स्थिति एक जगह के एक किनारे की थी। और हम किनारे पर खड़े लोग दरिया के उस पार फंसे लोगों की हालत जानना चाहते थे, लेकिन वहां पहुंचना सिर्फ नाव से ही संभव था। NDRF की नावों पर हर किसी को जाने की अनुमति नहीं होती। गाँवों को जाने वाले रास्तों पर पानी का तेज़ बहाव था और पुलों पर भी पानी ऊपर तक आ गया था। भयानक दृश्य बना हुआ था। शायद इसे ही प्रलय कहा जाता है। उन्होंने कहा, कि हमने अपने संगठन AIYF के कुछ साथियों के साथ मिलकर पानी से घिरे गांवों में जाने का फ़ैसला किया। निकलने से पहले देखा गया कि किसे तैरना आता है। जिन्हें नहीं आता था, उन्हें पत्तन पर ही छोड़ दिया गया और बाकी लोग सावधानी से पानी के बहाव में आगे बढ़ गए। गाँवों के ज़रूरतमंद लोग भी इसी तरह जान जोखिम में डालकर आते-जाते थे। इस बाढ़ ने गाँवों में रह रहे लोगों के जनजीवन की कठिनाईयों की झलक भी दिखाई है!
बाढ़ के पानी कई रास्तों को बुरी तरह से काट कर बदल भी दिया था। रास्ता टूटा हुआ था, कभी अचानक नीचे धंसता, कभी तिरछा, और कहीं-कहीं पानी का तेज़ बहाव हमें संभल-संभलकर चलने पर मजबूर करता। रास्ते में लोगों ने बताया कि यहां से तीन किलोमीटर आगे यही पानी पाकिस्तान में दाख़िल हो रहा है। मतलब दोनों तरफ का पंजाब इस समय एक ही विपत्ति का सामना कर रहा था। पानी के प्रकोप में आ रहे गांवों के नामों की सूची लगातार बढ़ रही है। तेज़ी से बहुत से नाम जुड़ते जा रहे हैं। इधर पानी में घिरे गांवों में राम सिंह भैणी, झंगड़ भैणी, महात्म नगर, एक नंबर गट्टी, रेतेवाली भैणी, ढाणी सदा सिंह, ढाणी सुवावा सिंह, तेजा रुहेला, वल्लेशाह हिठाड़ (गुलाबा), चक तेजा रुहेला, डोना नांका, ढोलेवाली भैणी, मारजमशेर, मनसा, मारसोना, गुलाम रसूल, गुदड़ भैणी, ख़्वाजा पीर ढाणी, घुरका और वल्लेशाह उताड़ शामिल हैं। बहुत से और गांवों की भी यही स्थिति है।
ज़मीनी हक़ीक़त : बाढ़ का प्रकोप लगातार कई जगहों पर बना हुआ है। फसलें डूब चुकी हैं और कई घरों में भी पानी घुस आया है। लोग अपने घरों और आंगनों की मिट्टी खोद-खोदकर छोटे-छोटे बांध बनाते नज़र आए ताकि पानी को रोका जा सके। कहीं इन्हें और ऊंचा करने की कोशिश हो रही थी। लेकिन यह सभी इंतज़ाम तो प्रशासन की तरफ से बहुत पहले हो जाने चाहिए थे। आपदा आने पर जागने का सिलसिला जाने कब सुधरेगा।
घर छोड़कर कहां जाएं : जो दृश्य हमने फिल्मों में भी नहीं देखे थे। वे और उनसे कहीं ज़्यादा भयावह अब हम गांवों की गलियों और घरों से गुज़रते हुए देख रहे थे। न सिर्फ देख रहे थे बल्कि इन्हें महसूस भी कर रहे थे कि ज़िंदगी यहां कितनी मुश्किल है। कितनी कठिन है यहां के लोगों की ज़िंदगी। लोगों से कहा गया कि वे घर छोड़कर राहत कैंपों में चले जाएं, लेकिन उनके जवाब दिल छू लेने वाले थे– “घर कैसे छोड़ दें?” कुछ कहते– “सारा सामान ले जाना मुमकिन नहीं, अगर चले गए तो पीछे कुछ नहीं बचेगा।” कितनी भयानक हकीकत है कि चले गए तो पीछे कुछ नहीं बचेगा। इसी तरह पशुओं को लेकर भी वही चिंता– आखिर इन्हें कहां ले जाएं? रिश्तेदार खुद मुश्किल में हैं, पास में कोई इंतज़ाम नहीं और दूर तक ले जाना वैसे भी नामुमकिन है। घर के भीतर सांप और दूसरे जीव भी घुस आते थे। आखिर वे भी तो इसी संकट में फंसे हुए थे। आज इंसान और जानवर, दोनों ही खतरे में थे।
मेडिकल कैंप पत्तन पर थे, बीस गांवों/ढाणियों में से सिर्फ़ तीन में कैंप बने थे और वो भी शाम तक के लिए। बीमारों, बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों की हालत देखकर लगता था कि कैंप गांवों के भीतर ही होने चाहिए। कल जब हम लौट रहे थे, तो एक बुज़ुर्ग पीछे-पीछे आए और अपनी दवाई की पर्ची पकड़ाते हुए बोले– ये हमें गांव के कैंप में नहीं मिली, आप इसे ला दीजिए या किसी के हाथ भिजवा दीजिए
गांवों की गलियों और घरों में गंदा पानी और रूड़ियां भरी पड़ी थीं। बीमारियां लोगों को घेरे हुए थीं और पानी उतरने के बाद ये और तेज़ फैलेंगी। गीले हालात में खड़े, कीचड़ में बैठे और बीमार पशुओं के लिए गांवों में पशु-चिकित्सकों की मौजूदगी बेहद ज़रूरी है।
इन गांवों में बिजली विभाग अच्छा काम कर रहा था। दिन में कटौती होती, लेकिन रात को बिजली सप्लाई से लोग अपने लिए पानी भर लेते। लेकिन अगर बिजली रुक गई, तो मुश्किलें कई गुना बढ़ जाएंगी। राहत कार्यों में लगी टीमों की ड्यूटी सिर्फ पत्तन पर ही नहीं, बल्कि इन गांवों में भी होनी चाहिए। ताकि अगर रात में पानी का दबाव अचानक बढ़े या कोई हादसा हो, तो मदद पहुंचने से पहले ये लोग पाकिस्तान की ओर बह न जाएं।
ताज़ा अपडेट के मुताबिक़ अब तक पंजाब में बाढ़ की चपेट में आकर 42 लोग बह चुके हैं। लगभग 1500 गांव पानी के प्रभाव में आ गए हैं। इन गांवों में इस सीजन की फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई है और अगली फसल की संभावना भी बेहद कम है। सैकड़ों घरों के मवेशी और जानवर पानी में बह गए हैं। हालांकि लोग एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं, लेकिन इस बाढ़ ने पंजाब की अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका दिया है।
दूसरी तरफ लोगों के मन में कई सवाल भी हैं। आखिर आज़ादी आ जाने के बाद भी ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए आवश्यक इंतज़ाम क्यूं नहीं किए गए..? पहले भी बाढ़ आती रही है। क्या कोई सबक सीखा गया? शायद बिलकुल भी नहीं। उल्टा नदियों की ज़मीन पर घर और दफ्तर ही नहीं बल्कि पूरी पूरी क्लोनियां बसा दी गईं।
बिल्डर माफिया का नदियों की ज़मीनों पर कब्ज़ा : दुष्यंत कुमार जी ने कहा था-- बाढ़ की संभावनाएं सामने हैं!
और नदियों के किनारे घर बने हैं : नदियों की ज़मीन पर कब्ज़ा जमाने का खमियाज़ा ही भुगत रहे हैं हम लोग। नदियों की राह रोकने की सज़ा भी तो आखिर मिलनी ही थी। अब यह एक अलग जांच का विषय है कि नदियों की ज़मीन पर कब्ज़ा जमाने की यह साज़िशें किस-किस की मिली भगत से सिरे चढ़ती रहीं?
अब तक राहत पैकेज का ऐलान नहीं : इतनी भारी तबाही के बावजूद केंद्र सरकार की ओर से अब तक कोई राहत पैकेज की घोषणा नहीं की गई है। संकट अभी भी गंभीर है। स्कूलों कालेजों में छुट्टियां बढ़ा दी गई हैं। अब देखना है पंजाब को पंजाब की किस्मत और संघर्ष क्या-क्या रंग दिखाते हैं। वहीं, ईरान के राष्ट्रपति अयातुल्लाह सैयद अली ख़मैनी ने पंजाब के हालातों पर दुःख ज़ाहिर करते हुए, चढ़दी कला की अरदास करने के साथ ही कहा कि वह हर तरह की मदद के लिए तैयार हैं।
Edited By: Navin Rangiyal