Devotees arrived to enjoy the Lathmar Holi of Barsana : पूरा ब्रज होली के रंगों में सराबोर हो चुका है, राधा नगरी बरसाना से नंदगांव हुरियारों को जैसे ही होली खेलने का न्यौता मिला तो वह सजधजकर बरसाना लट्ठमार होली खेलने पहुंच गए। बरसाने के गली-कूचों में लोकगीत की धुन पर हुरियारिनों और हुरियारों के बीच नोंकझोंक के साथ लट्ठ और रंगों की बरसात का अनोखा नजारा नजर आ रहा है। ब्रजभूमि पर इस होली को देखने के लिए देवता स्वयं जमीं पर आते हैं, वहीं बरसाने की इस प्रसिद्ध होली का आनंद लेने के लिए दुनियाभर से लोग मथुरा पहुंचे हुए हैं।
बरसाना में डेरा जमाए हुए हैं देश-विदेश के श्रद्धालु : विश्व प्रसिद्ध बरसाना की राधा नगरी में गोपियां हुरियारिन बनकर नंदगांव के कृष्ण रूपी हुरियारों पर जमकर लट्ठ बरसाते हुए होली खेलती हैं। राधा रूपी गोपियां और कृष्ण रूपी हुरियारों जमकर एक-दूसर पर छींटाकशीं करते गाली, गुलाल और रंगों की बौछार करते हैं। उत्साह और उमंग के इस सैलाब का आनंद लेने के लिए देश-विदेश के श्रद्धालु बरसाना में डेरा जमाए हुए हैं। बरसाना की सड़कों पर इस समय पैर रखने की जगह नहीं है, पुलिस-प्रशासन रूटमैप के जरिए भीड़ को नियंत्रित करने का भरसक प्रयास कर रहा है।
लट्ठमार होली मनाने से एक दिन पहले पांडा बरसाने की हुरियारिनों का संदेश नंदगांव देकर वापस श्री लाडली मंदिर वापस आता है। पांडा के स्वागत में मंदिर सेवायत लड्डू और गुलाल फेंककर भक्तों को संदेश देते हैं कि अब रंगों की खुमारी अपने चरम पर पहुंचने वाली है। इसी कड़ी में आज बरसाना में लट्ठमार होली खेली जा रही है।
इस होली में शामिल महिलाओं को हुरियारिन कहते हैं, ये हुरियारिन लट्ठ हाथ में लेकर नंदगांव से आए हुरियारों को मजाकिया अंदाज में मारती हैं, ये हुरियारे सिर पर ढाल रखकर हुरियारिनों से बचने का प्रयास करते हैं, बरसाने में गली-गली हुरियारों की टोली लोकगीत गाते हुए हुरियारिनों को चिढ़ाते हैं, अपने देशज अंदाज में हास-परिहार करते हुए होली का उल्लास देखते ही बनता है।
लट्ठमार होली में ब्रज के लोग ही शामिल होते हैं : होली में संगीत प्रतियोगिता का आयोजन भी किया जाता है, इस परंपरागत होली को खेलने के लिए ब्रज के लोग ही शामिल होते हैं। नंदगांव के कृष्ण रूपी हुरियारे पिली पोखर पर आते हैं, बरसाना में इनका स्वागत स्थानीय लोग भांग की ठंडाई पिलाकर करते हैं। बरसाना की रंगीली गली में हुरियारिनें हाथ में लट्ठ थामकर इनका इंतजार कर रही होती हैं। हुरियारे उनको अपने साथ होली खेलने के लिए तरह-तरह के गीत सुनाकर रिझाने का जतन करते हैं।
बरसाने में लट्ठमार होली खेलने की खुमारी बच्चे, बूढ़े और जवान सभी के सिर चढ़कर बोलती है। द्वापर युग से ही राधा-कृष्ण के प्रेमरूपी इस लट्ठमार होली को खेला जाता है। कहा जाता है कि इस प्रेमरूपी होली का आनंद लेने के लिए देवता भी स्वयं आते हैं। लट्ठमार होली के बिना ब्रज की होली सूनी मानी जाती है। राधा-कृष्ण के प्रगाढ़ प्रेम के रंग में रंगकर भक्त खुद को भी धन्य मानते हैं।