Do kathavachak Pandit earn crores: भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं में कथावाचकों का स्थान हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है। प्राचीन काल से ही कथावाचक (Kathavachak) रामायण, महाभारत, भागवत पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों की कहानियों को जन-जन तक पहुंचाते रहे हैं। ये कथाएं न केवल धार्मिक ज्ञान और भक्ति का प्रसार करती हैं, बल्कि सामाजिक मूल्यों और नैतिकता को भी प्रेरित करती हैं। हालांकि, आधुनिक समय में कथावाचन एक आकर्षक और ग्लैमरस व्यवसाय बन गया है, जहां कुछ प्रसिद्ध कथावाचक कथित तौर पर एक कथा के लिए लाखों रुपए चार्ज करते हैं। साथ ही, हाल के समय में कथावाचकों से जुड़े विवादों ने भी सामाजिक और राजनीतिक हलचल मचा दी है।
कथावाचकों की कमाई कितनी और कैसे? : आज के दौर में कथावाचन केवल धार्मिक कार्य नहीं, बल्कि एक व्यवसाय के रूप में उभरा है। कुछ रिपोर्ट्स और ऑनलाइन चर्चाओं के अनुसार, भारत के कुछ सबसे प्रसिद्ध कथावाचक एक कथा के लिए मोटी रकम वसूलते हैं। आइए जानते हैं इन्हीं कथाकारों के बारे में....
देवकीनंदन ठाकुर : मथुरा के इस कथावाचक को देश के सबसे लोकप्रिय और महंगे कथावाचकों में गिना जाता है। हम कोई दावा नहीं करते लेकिन इंटरनेट पर मिली जानकारी के अनुसार, उनकी एक कथा की फीस लाखों रुपए तक हो सकती है।
अनिरुद्धाचार्य महाराज : ये भी अपनी मधुर वाणी और भक्ति भरे प्रवचनों के लिए जाने जाते हैं। इनकी फीस भी लाखों में है।
धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री : बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेन्द्र शास्त्री, जो अपने 'दिव्य दरबार' के लिए प्रसिद्ध हैं, ये भी कथा के लिए लाखों रुपए चार्ज करते हैं।
जया किशोरी : युवाओं में लोकप्रिय जया किशोरी की फीस भी लाखों में बताई जाती है। इनके एक महंगे हैंडबैग को लेकर भी खासा विवाद हुआ था।
कवि कुमार विश्वास : प्रसिद्ध कवि कुमार विश्वास भी अब राम कथा कहते हैं और इनका एक दिन का चार्ज लाखों रुपए में है।
ये आंकड़े विभिन्न ऑनलाइन स्रोतों और सोशल मीडिया पोस्ट्स पर आधारित हैं, हालांकि इनकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हो सकी। इसके अलावा, कथावाचकों को आयोजनों में भोजन, आवास, और अन्य सुविधाओं के साथ-साथ दान-दक्षिणा और उपहार भी मिलते हैं, जो उनकी आय को और बढ़ाते हैं।
कथावाचन का व्यवसायीकरण : क्यों बढ़ी डिमांड? पिछले कुछ वर्षों में कथावाचन की लोकप्रियता में वृद्धि के कई कारण हैं:
सोशल मीडिया का प्रभाव : सोशल मीडिया ने कथावाचकों को रातोरात स्टार बना दिया है। यूट्यूब, फेसबुक और अन्य प्लेटफॉर्म्स पर उनके प्रवचन और भजन लाखों लोगों तक पहुंचते हैं, जिससे उनकी मांग बढ़ी है।
राजनीतिक समर्थन : कुछ स्रोतों के अनुसार, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में नेताओं द्वारा धार्मिक कथाओं का आयोजन कराया जाता है ताकि उनकी छवि धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से मजबूत हो। बीते छह महीनों में मध्य प्रदेश में 500 से अधिक कथाओं का आयोजन हुआ, जिनमें करीब 13 करोड़ रुपए खर्च किए गए।
आध्यात्मिक रुझान : आधुनिक जीवन की तनावपूर्ण और अनिश्चित परिस्थितियों में लोग आध्यात्म की ओर आकर्षित हो रहे हैं। कथावाचक इस भावना को भुनाने में सफल रहे हैं, खासकर युवा पीढ़ी को अपनी ओर आकर्षित करके।
कथावाचकों पर कलेश : हालांकि कथावाचन एक सम्मानजनक कार्य माना जाता है, लेकिन हाल के वर्षों में कथावाचकों से जुड़े कई विवाद सामने आए हैं, जिन्होंने सामाजिक और राजनीतिक हलचल मचा दी है। इन विवादों के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
जातिगत भेदभाव : हाल ही में उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में एक यादव कथावाचक, मुकुटमणि यादव, के साथ ब्राह्मण समुदाय द्वारा जातिगत उत्पीड़न का मामला सामने आया। कथावाचक और उनके सहायक के साथ मारपीट की गई, उनकी चोटी काटी गई, और अपमानजनक व्यवहार किया गया। इस घटना का वीडियो वायरल होने के बाद पूरे प्रदेश में आक्रोश फैल गया। कुछ एक्स पोस्ट्स में दावा किया गया कि कथावाचन का क्षेत्र ब्राह्मणों का गढ़ रहा है, और गैर-ब्राह्मण कथावाचकों को इसमें प्रवेश करने पर आपत्ति जताई जाती है। यह घटना कथावाचन उद्योग में जातिगत हिस्सेदारी की जंग को दर्शाती है।
वाणिज्यिकरण और लालच के आरोप : कई लोग मानते हैं कि आधुनिक कथावाचक धार्मिक भावनाओं का लाभ उठाकर धन कमाने में लगे हैं। एक्स पर कुछ यूजर्स ने कथावाचकों को 'धंधेबाज' और 'लालची' तक करार दिया है। उनका कहना है कि पहले कथावाचन भक्ति और ज्ञान के लिए किया जाता था, लेकिन अब यह केवल पैसे कमाने का जरिया बन गया है।
विवादास्पद बयान : कुछ कथावाचक, जैसे धीरेन्द्र शास्त्री और देवकीनंदन ठाकुर, अपने तीखे और विवादास्पद बयानों के कारण चर्चा में रहते हैं। ये बयान अक्सर धार्मिक या सामाजिक तनाव को बढ़ाते हैं, जिससे विवाद उत्पन्न होता है।
प्रामाणिकता पर सवाल : कुछ आलोचकों का मानना है कि कथावाचक केवल कहानी सुनाने वाले सर्विस प्रोवाइडर हैं, न कि संत। उनकी तुलना कोचिंग शिक्षकों या अन्य पेशेवरों से की जाती है, जो अपनी सेवाओं के लिए शुल्क लेते हैं। यह धारणा भी विवाद का कारण बनती है कि कथावाचन अब भक्ति से ज्यादा व्यवसाय बन गया है।
क्या कहता है समाज? : कथावाचकों पर उठ रहे विवादों ने समाज को दो ध्रुवों में बांट दिया है। एक ओर, उनके लाखों अनुयायी हैं जो उनकी कथाओं से प्रेरणा और शांति प्राप्त करते हैं। दूसरी ओर, आलोचक उनके वाणिज्यिक दृष्टिकोण और सामाजिक प्रभावों पर सवाल उठाते हैं। एक्स पर एक यूजर ने लिखा, कथावाचन और कोचिंग संचालन अब इस देश में सबसे ग्लैमरस धंधा है। इसमें करोड़ों की कमाई और ब्लाइंड फॉलोवर्स का हुजूम है। यह बयान कथावाचन के व्यवसायीकरण और उसकी लोकप्रियता दोनों को दर्शाता है।
कथावाचन की परंपरा भारत की सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न अंग है, लेकिन इसके आधुनिक स्वरूप ने कई सवाल खड़े किए हैं। प्रसिद्ध कथावाचकों की मोटी कमाई और उनके आयोजनों की भव्यता इस बात का प्रमाण है कि यह एक लाभकारी उद्योग बन चुका है। हालांकि, जातिगत विवाद, वाणिज्यिकरण और विवादास्पद बयानों ने कथावाचकों के प्रति समाज के एक वर्ग में असंतोष पैदा किया है। यह जरूरी है कि कथावाचकअपनी मूल भावना -भक्ति, ज्ञान और नैतिकता- को बनाए रखें ताकि यह केवल धन कमाने का जरिया न बनकर समाज को प्रेरित करता रहे।