सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को गुरुवार को बताया कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने करीब 23,000 करोड़ रुपए का कालाधन बरामद कर उसे वित्तीय अपराधों के पीड़ितों में वितरित किया है। शीर्ष विधि अधिकारी ने यह बयान प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति सतीशचंद्र शर्मा की विशेष पीठ के समक्ष दिया, जो शीर्ष अदालत के 2 मई के विवादास्पद फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर खुली अदालत में सुनवाई कर रही थी।
सुप्रीम कोर्ट ने 2 मई को भूषण स्टील एंड पावर लिमिटेड (बीएसपीएल) के लिए जेएसडब्ल्यू स्टील की समाधान योजना को खारिज करते हुए इसे दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) का उल्लंघन बताया था। उसने आईबीसी के तहत बीएसपीएल के परिसमापन का आदेश दिया। प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने 31 जुलाई को इस फैसले को वापस ले लिया था और इससे संबंधित पुनर्विचार याचिकाओं पर नए सिरे से सुनवाई करने का फैसला किया था।
इन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान एक वकील ने बीपीएसएल मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच का भी हवाला दिया। प्रधान न्यायाधीश ने इस पर चुटकी लेते हुए कहा कि ईडी यहां भी मौजूद है।
इसके जवाब में सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि मैं एक तथ्य बताना चाहता हूं जो किसी भी अदालत में कभी नहीं कहा गया और वह यह है कि... ईडी ने 23,000 करोड़ रुपये (काला धन) बरामद कर पीड़ितों को दिए हैं। विधि अधिकारी ने कहा कि बरामद धन सरकारी खजाने में नहीं रहता और वित्तीय अपराधों के पीड़ितों को दिया जाता है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि सजा की दर क्या है?
मेहता ने कहा कि दंडात्मक अपराधों में सजा की दर भी बहुत कम है और उन्होंने देश की आपराधिक न्याय प्रणाली की खामियों को इसका मुख्य कारण बताया। इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि भले ही उन्हें दोषी न ठहराया गया हो, लेकिन आप लगभग बिना किसी सुनवाई के उन्हें (आरोपियों को) सजा देने में वर्षों से सफल रहे हैं।
विधि अधिकारी ने कहा कि कुछ मामले ऐसे हैं जिनमें नेताओं के यहां छापे पड़े, वहां भारी मात्रा में नकदी मिलने के कारण हमारी (नकदी गिनने वाली) मशीनों ने काम करना बंद कर दिया... हमें नई मशीन लानी पड़ीं। उन्होंने कहा कि जब कुछ बड़े नेता पकड़े जाते हैं तो यूट्यूब कार्यक्रमों पर कुछ विमर्श गढ़े जाते हैं।
प्रधान न्यायाधीश बोले मैं समाचार चैनल नहीं देखता
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि हम विमर्शों के आधार पर मामलों का फैसला नहीं करते... मैं समाचार चैनल नहीं देखता। मैं सुबह केवल 10-15 मिनट अखबारों की सुर्खियां देखता हूं। विधि अधिकारी ने कहा कि उन्हें पता है कि न्यायाधीश सोशल मीडिया और अदालतों के बाहर गढ़े जा रहे विमर्शों के आधार पर मामलों के फैसले नहीं करते। शीर्ष अदालत की कई पीठ खासकर विपक्षी नेताओं से जुड़े धनशोधन के मामलों में प्रवर्तन निदेशालय की कथित मनमानी की आलोचना करती रही हैं। प्रधान न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने 21 जुलाई को एक एक अन्य मामले में कहा था कि प्रवर्तन निदेशालय सारी हदें पार कर रहा है। भाषा Edited by : Sudhir Sharma