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Electoral Bond स्कीम वैध या अवैध? Supreme Court ने Election Commission को दिया आदेश

हमें फॉलो करें Electoral Bond स्कीम वैध या अवैध? Supreme Court ने Election Commission को दिया आदेश
नई दिल्ली , गुरुवार, 2 नवंबर 2023 (22:14 IST)
Electoral Bonds Case Hearing  : सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को राजनीतिक दलों को फंडिंग मुहैया कराने वाली इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond ) स्कीम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को भारतीय निर्वाचन आयोग (Election Commission of India) को 30 सितंबर, 2023 तक चुनावी बॉण्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों को प्राप्त धन (चंदे) का ‘अद्यतन’ डेटा सीलबंद लिफाफे में पेश करने का निर्देश दिया।
 
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने 12 अप्रैल, 2019 को शीर्ष अदालत द्वारा पारित अंतरिम निर्देश का हवाला दिया, जिसमें राजनीतिक दलों को चुनावी बॉण्ड के माध्यम से प्राप्त धन का विवरण एक सीलबंद लिफाफे में आयोग को सौंपने का निर्देश दिया गया था।
 
संविधान पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे। पीठ ने कहा कि अप्रैल 2019 का आदेश उसी तारीख तक सीमित नहीं था जिस दिन इसे सुनाया गया था तथा यदि कोई अस्पष्टता थी, तो आयोग के लिए यह जरूरी था कि वह शीर्ष अदालत से स्पष्टीकरण मांगें।
 
संविधान पीठ ने राजनीतिक दलों के चंदे से संबंधित चुनावी बॉण्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दलीलें सुनते हुए कहा कि आयोग के पास अद्यतन डेटा होना चाहिए।
 
पीठ ने आदेश दिया कि किसी भी स्थिति में अब हम निर्देश देते हैं कि निर्वाचन आयोग 12 अप्रैल, 2019 को जारी अंतरिम निर्देश के संदर्भ में 30 सितंबर, 2023 तक अद्यतन डेटा पेश करेगा।
 
आदेश में कहा गया है कि यह प्रक्रिया दो सप्ताह के भीतर पूरी की जाए और डेटा सीलबंद लिफाफे में शीर्ष अदालत के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को सौंप दिया जाए।
 
संविधान पीठ ने तीन दिनों की सुनवाई के बाद बृहस्पतिवार को संबंधित चार याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर ली थी और फैसला सुरक्षा रख लिया था। इन याचिकाओं में कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) तथा गैर-सरकारी संगठन ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ (एडीआर) की याचिकाएं शामिल हैं।
 
संविधान पीठ ने सुनवाई के दौरान आयोग के वकील से चुनावी बॉण्ड की मात्रा के बारे में पूछा, जिसे ‘सब्सक्राइब’ किया गया है। इस पर आयोग के वकील ने कहा कि उनके पास सीलबंद लिफाफे में अप्रैल 2019 के आदेश के संदर्भ में कुछ डेटा है और वह इसे अदालत के समक्ष रख सकते हैं।
 
पीठ ने पूछा कि ‘क्या डेटा अद्यतन है, कम से कम मार्च 2023 तक?’’ इस पर वकील ने शीर्ष अदालत के अप्रैल 2019 के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि विवरण केवल 2019 तक का था।
 
पीठ ने कहा कि आपको डेटा एकत्र करना जारी रखना होगा।’’ इसने यह भी कहा कि अगर पहले के निर्देश के संबंध में कोई संदेह था तब भी निर्वाचन आयोग स्पष्टीकरण के लिए कभी अदालत के समक्ष नहीं आया।
 
संविधान पीठ ने आयोग के वकील से कहा कि जब आप अदालत आ रहे थे तो आपको डेटा मिलना चाहिए था... उस दिन हमने जोर दिया था और हम सभी ने विचार व्यक्त किया था तथा हमें उम्मीद थी कि आप डेटा लेकर आएंगे।
 
वकील ने कहा कि वह डेटा उपलब्ध करा सकते हैं और आयोग सभी राजनीतिक दलों से विवरण मांग सकता है।
 
पीठ ने कहा कि वह इस स्तर पर भारतीय स्टेट बैंक से दानदाताओं की पहचान उजागर करने के लिए नहीं कहेगी, लेकिन वह ‘सब्सक्राइब’ किए गए बॉण्ड की मात्रा के बारे में जानना चाहेगी।
 
शीर्ष अदालत ने पूछा कि वह समय सीमा क्या है, जिसमें हर साल डेटा देना होता है? क्या यह हर वित्तीय वर्ष में होता है? समय सीमा क्या है?
 
वकील ने अदालत को अवगत कराया कि वित्तीय वर्ष समाप्त होने के छह महीने बाद डेटा दिया जाता है।
 
न्यायालय ने चुनाव आयोग के वकील से कहा कि आपके पास डेटा होना चाहिए कि चुनावी बॉण्ड की कुल मात्रा और विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच उसका विभाजन क्या है? निर्वाचन आयोग को इसका मिलान करना होगा।
 
पीठ ने वकील से कहा कि 31 मार्च, 2023 तक का डेटा तैयार करें और हमें सौंपें। आप हमें 30 सितंबर, 2023 तक का डेटा भी दे सकते हैं।
 
शीर्ष अदालत ने अप्रैल 2019 में चुनावी बॉण्ड योजना पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था और यह स्पष्ट कर दिया था कि वह याचिकाओं पर गहन सुनवाई करेगी, क्योंकि केंद्र और निर्वाचन आयोग ने ‘महत्वपूर्ण मुद्दे’ उठाए थे, जिनका देश की चुनाव प्रक्रिया की शुचिता पर ‘व्यापक प्रभाव’ था।
 
सरकार की ओर से 2 जनवरी 2018 को अधिसूचित इस योजना को ‘राजनीतिक फंडिंग’ में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत विभिन्न दलों को दिए जाने वाले नकद चंदे के विकल्प के रूप में पेश किया गया था।
 
योजना के प्रावधानों के अनुसार, चुनावी बॉण्ड भारत के किसी भी नागरिक या भारत में निगमित या स्थापित इकाई द्वारा खरीदा जा सकता है। कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बॉण्ड खरीद सकता है।
 
केवल जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत राजनीतिक दल और लोकसभा या राज्य विधानसभा के पिछले चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल करने वाले दल चुनावी बॉण्ड प्राप्त करने के पात्र हैं।
 
अधिसूचना के अनुसार, चुनावी बॉण्ड को पात्र राजनीतिक दल द्वारा केवल अधिकृत बैंक के खाते के माध्यम से भुनाया जाएगा। एजेंसियां

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